सवाल नाक का नहीं, राष्ट्रहित का है!

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गुरु नानक जयंती पर सम्पूर्ण राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले तो देश को शुभकामनाएं दीं और फिर देश से क्षमा मांगते हुए जो कहा उसका आशय यह था कि केंद्र सरकार कृषि कानून वापिस ले रही है क्योंकि वह कुछ किसानों को कृषि कानून…

अनुदान बहुत हुआ अब श्रमदान करें

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महाराष्ट्र के वर्तमान मा. राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी उत्तराखंड के पूर्व मुख्य मंत्री भी रह चुके हैं। उत्तराखंड के गठन से उनकी सक्रीय राजनीति में अहम भूमिका रही है। उन्होंने उत्तराखंड के विकास के लिए कई योजनाएं बनाईं थीं। अब 21 वर्षों के उपरांत प्रदेश की प्रगति के संदर्भ में उन्होंने हिंदी विवेक से विशेष बातचीत की। प्रस्तुत हैं उसके कुछ प्रमुख अंश-

भारत में आतंकवाद का पुनर्प्रवेश?

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धारा 370 को खत्म हुए कुछ ही वर्ष हुए हैं। अत: यह समझ लेना बड़ी भूल होगी कि कश्मीर से आतंकवाद समाप्त हो गया है। अगर अफगानिस्तान में 20 वर्षों के बाद पुन: तालिबानी कब्जा कर सकते हैं तो भारत में कश्मीर या अन्य राज्यों में भी पुन: आतंकवादी गतिविधियां हो ही सकती हैं। बानगी हम कश्मीर में देख ही चुके हैं।

बस एक क्लिक की बात है…

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मानव ने अपनी सुविधा के लिए इंटरनेट का आविष्कार किया है। इसके आधार पर नित्य नूतन आविष्कार हो रहे हैं परंतु अगर मनुष्य इसकी मर्यादा भूलकर स्वयं को उसके अधीन कर दे तो निश्चित ही समस्या का सामना करेगा। इंटरनेट के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने या कुछ देर के मनोरंजन तक उसे सीमित कर दें, उसे अपने ऊपर हावी न होने दें, क्योंकि बात केवल एक क्लिक की है जो या तो हमारे ज्ञान में वृद्धि करेगी या हमें उस्तरा थामने वाला बंदर बनायेगी।

भारत की कूटनीति रंग लाएगी?

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वर्तमान में भारत ‘वेट एण्ड वॉच‘ की नीति अपना रहा है जो कि सही भी है क्योंकि ऊंट किस करवट बैठेगा, कहा नहीं जा सकता। भारत को तालिबान की शत्रुता को आमंत्रित नहीं करना चाहिए और न ही अमेरिका का मोहरा बनना चाहिए।

भारत को बचना होगा तालिबानी सोच से

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अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों में भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ अफगानिस्तान के लोग शरणार्थी बनकर जा सकते हैं। क्योंकि पाकिस्तान की हालत किसी से छुपी नही है और चीन सांस्कृतिक दृष्टि से और सीमाओं की दूरी की दृष्टि से अफगानिस्तान से इतना दूर है कि वहां जाना अफगानिस्तान के लोगों को नहीं सुहाएगा। ऐसे में उन्हें भारत आना ही सबसे आसान लगेगा।

आत्मनिर्भर भारत का सपना होगा पूरा – स्मृति ईरानी-(केन्द्रीय कपड़ा मंत्री)

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हमारे पारंपरिक उत्पाद जो है इसे आज बहुत बड़ा घरेलु बाजार भी मिल सकता है। धीरे-धीरे यह संवेदनशीलता हमारे देश में विकसित हो रही है। मैं आशावादी हूं चाहे वह मैन मेड फाइबर से बना हुआ कपड़ा हो अथवा कॉटन या फिर सिल्क से बना हुआ कपड़ा हो, उपभोक्ताओं की संकल्पना जैसे-जैसे हमारे देश में बढ़ेगी इसका फायदा जरूर होगा। प्रधानमंत्री मोदी जी का आत्मनिर्भर भारत बनाने का जो सपना है उसे पूर्ण करने के लिए जनता जनार्दन पूर्ण रूप से सहयोग देगी तो हम घरेलु बाजार को भी हमारे उत्पादन के लिए बहुत ही सशक्त होते हुए देख रहे हैं।

परमाणु हथियारों का ‘नो फर्स्ट यूज’

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भारत के अमेरिका और इजराइल से घनिष्ठ होते सम्बंधों को देख कर पाकिस्तान और चीन भारत से खार खाए बैठे हैं। चूंकि वैश्विक दबाव के चलते खुले आम भारत पर हमला करना संभव नहीं होगा; अत: वे आत्मघाती मानवी परमाणु बम का उपयोग करने में भी नहीं हिचकिचाएंगे। ‘अ

विरासत के आधार पर स्वतंत्र भारत का विकास

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स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में अगर हर भारतीय यह निश्चय कर ले कि वह अपनी हर कृति के केंद्र में अपने राष्ट्र को रखेगा, उस कृति का परिणाम अगर राष्ट्रहित में नहीं है तो वह कृति नहीं करेगा तो भारत को विकसित और सुखी राष्ट्र बनने से कोई नहीं रोक सकता।

समन्वय व समरसता का महाकुंभ

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सिंधु दर्शन यात्रा इस वर्ष अपने 25 वर्ष पूर्ण कर रही है। अतः इसे सिंधु कुंभ के रूप में आयोजित किया जा रहा है। कोरोना को ध्यान में रखते हुए इस बार सिंधु कुंभ में कुछ विशेष व्यवस्थाएं भी होंगी। इन्हीं मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की है मु. रा. मं. के मार्गदर्शक तथा सिंधु दर्शन यात्रा के संस्थापक सदस्यों में से एक इन्द्रेश कुमार जी से। प्रस्तुत हैं उस चर्चा के प्रमुख अंश-

मूल संस्कृति से जोड़नेवाली – सिंधु दर्शन यात्रा

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अपनी पारमार्थिक उन्नति के लिए आध्यात्मिक यात्राएं करना जितना आवश्यक है, उतनी ही आवश्यक है अपने देश की भौगोलिक संरचना, उसका इतिहास और अपनी संस्कृति को जानने के लिए यात्रा करना। सिंधु दर्शन यात्रा की गिनती इसी यात्रा के रूप में की जानी चाहिए और प्रत्येक भारतीय को इसका अंग बनने का प्रयत्न करना चाहिए।

परिवर्तन के शिल्पकार

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अब परिवर्तन की गति भी तेज हो गई है। पहले जहां 10-15-20 सालों में परिवर्तन होते थे, वहीं आज हर दिन कुछ न कुछ नया देखने को मिलता है और अच्छी बात यह है कि अब भारतीय समाज का मानस भी परिवर्तनों को सहज स्वीकार करने का आदी होने लगा है। भारत ने परिवर्तन को स्वीकार करके उसके अनुरूप ढलना तो सीख लिया है। अब इसके आगे उसे स्वयं को परिवर्तित करके दुनिया के परिवर्तन का शिल्पकार बनने की ओर बढ़ना होगा।

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