हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
भारतबोध जागृत हो रहा है

भारतबोध जागृत हो रहा है

by pallavi anwekar
in अप्रैल -२०२२, विशेष, संपादकीय, सामाजिक
3

पिछले कुछ महीनों से भारतीय समाज में एक परिवर्तन दिखाई दे रहा है। इसे कुछ लोग सामाजिक ध्रुविकरण कह रहे हैं, कुछ लोग बंटवारे की राजनीति कह रहे हैं, कुछ लोग गंगा-जमुनी संस्कृति पर प्रहार मान रहे हैं। कर्नाटक में हिजाब प्रकरण के बाद हिंदू युवाओं द्वारा भगवा गमछे ओढ़ना, उत्तर प्रदेश में भगवाधारी संन्यासी को दोबारा मुख्य मंत्री बनाना या बिना खान गैंग के बनी कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्म का 100 करोड़ से अधिक का व्यापार करना; इन सभी को बहुसंख्य भारतीयों ने अपने सिर आंखों पर बिठाया है।

इसके पीछे कारण यह है कि भारतीय समाज के मनों में जो अंगारे धधक रहे थे, उन पर पिछले कुछ वर्षों में छद्म भाईचारे, तथाकथित सामाजिक सद्भाव और प्रतिकार न करने की राख जमा हो गई थी। हिजाब विवाद, उत्तर प्रदेश के चुनाव और द कश्मीर फाइल्स ने इस राख पर फूंक मारने का काम किया है। इस फूंक ने भारतीयों के मनों के अंगारों को न सिर्फ हवा दे दी है, बल्कि फूंक के कारण उड़ी राख कुछ लोगों के आंख की किरकिरी भी बन गई है। प्रतिकार करने वाला भारतीय समाज ऐसे लोगों को फूटी आंख नहीं सुहा रहा है। जबकि वास्तविकता यह है कि भारतीय समाज तो बस अपनी जड़ों की ओर लौट रहा है।

भारत की जड़ उसकी संस्कृति है। भारत एक सनातन राष्ट्र है। यहां की संस्कृति सनातन है, सभ्यता सनातन है, संस्कार सनातन है, धर्म-आस्था-निष्ठा सनातन है। विश्व के अन्य देशों के निर्माण या स्थापना के वर्ष गिनाए जा सकते हैं परंतु भारत कब बना इसका अनुमान लगाना कठिन है, क्योंकि मानवीय सभ्यता के उगम से भारत का अस्तित्व है और यह अस्तित्व आज भी कायम है।

यह अस्तित्व कायम क्यों है? क्यों हम कहते हैं कि कुछ बात हैं कि हस्ती मिटती नहीं हमारी? क्यों इतने आक्रमणों के पश्चात भी भारत, भारत ही रहा? इन सभी के मूल में एक ही भाव है कि भारतीय समाज के मन में हमेशा भारतबोध जागृत रहा। इतिहास साक्षी है कि हम हमेशा से ही सहिष्णु थे, पारसियों की तरह जो सभ्यताएं, जो समाज, भारतीय समाज में दूध में शक्कर की तरह घुल मिल गया, जिसने भारत के विकास में अपना योगदान दिया, उसे भारतीयों ने अपने हृदय में स्थान दिया। परंतु जिन लोगों ने जोर-जबरदस्ती से हमारा अधिकार छीनने की कोशिश की, जिन्होंने हमारे अस्तित्व पर आक्रमण करने शुरू कर दिए, उन्हें हमने भी समय-समय पर उत्तर दिया। भारतीय समाज की सहिष्णुता को उसकी कमजोरी मानने का दुस्साहस करने वालों को मुंह की खानी पड़ी।

आज भी जब-जब सहिष्णुता का गलत तरीके से लाभ उठाने के विरोध में भारतीय समाज आवाज उठाता है, उस पर तुरंत असहिष्णु होने का ठप्पा लगा दिया जाता है। अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण, कश्मीर से धारा 370 का हटाना, बाबा विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण आदि ने बहुसंख्य भारतीय समाज के मन पर किसी औषधि की तरह काम किया है। आक्रांताओं के द्वारा दिए गए घाव और उनके द्वारा बनाए गए मकबरों को आज तक भारतीय समाज ढ़ो रहा था। स्वतंत्रता के पश्चात भी उसी गुलाम मानिसकता का अनुसरण करने वाले और भारत को सदैव गुलामी की मानसिकता के साथ जीता हुआ देखने की इच्छा रखने वाले छद्म इतिहासकारों, थिंक टैंकों और मनोरंजन जगत के लोगों ने इतने सालों तक ऐसा सामाजिक विमर्श खड़ा किया जिसके पार जाकर सोचना समाज के लिए दूभर हो गया था।

परंतु अब बहुसंख्य भारतीय समाज की सोच बदल रही है। वह इन इतिहासकारों से पूछने लगा है कि बाबर-अकबर को महान बताकर पाठ्यक्रमों में उनका पाठ पढ़ानेवाले छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप, राजा छत्रसाल आदि के पराक्रम के बारे में क्यों नहीं बताते? क्यों उन्हें कश्मीरी आतंकवादी बुरहान वानी से लगाव है पर कश्मीरी पंडितों के दर्द उन्हें अपने नहीं लगते? क्यों वे विद्यालयीन छात्रों के मनों में धार्मिक अलगाव फैलाने की कोशिश में लगे हैं?

भारतीय समाज संविधान, नियम, कानून, समाज व्यवस्था को मानने वाला है। समान नागरिक अधिकार, सभी के लिए समान नियम-कानून, अपराधी को उसकी जाति, वर्ण, लिंग का भेद किए बिना दंड यह सभी भारतीय समाज व्यवस्था का मूल अंग हैं। इस व्यवस्था को पिछले कुछ वर्षों तक अपने राजनीतिक स्वार्थ और अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की नीति के कारण सरकारों ने अपनी सुविधा के अनुसार तोड़ा-मरोड़ा था। परंतु जब भारतीय बहुसंख्य समाज ने यह जान लिया कि अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के कारण समाज व्यवस्था बिगड़ रही है, तो उन्होंने ऐसे राजनेताओं के हाथों से शासन की डोर खींचकर उन राजनेताओं के हाथ में दे दी, जिन्हें भारतबोध अभिप्रेत है।

भारतीय बहुसंख्य समाज के माध्यम से चुनी गई ये सरकारें समाज को न सिर्फ अपनी जड़ों की ओर वापिस लौटाने में मदद कर रही हैं, बल्कि उनका नेतृत्व भी कर रही हैं। भारत क्षेत्रफल और जनसंख्या की दृष्टि से बहुत विस्तीर्ण देश है। उसके एक क्षेत्र से उठे जागरण के स्वर धीरे-धीरे पूरे देश में पहुंचते हैं। आज जिन क्षेत्रों में यह भारतबोध जागृत नहीं है या कहें कि मुखर नहीं है, वहां जल्द ही जागरण होगा और अपनी स्वाधीनता के अमृत महोत्सव को सम्पूर्ण देश भारतबोध के साथ मनाएगा।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: bharatchangecultureheritagehindi vivekindiaindian mindsetnew indiasocial changestraditions

pallavi anwekar

Next Post
गोरखनाथ मंदिर हमला: मुर्तजा का आतंकी कनेक्शन!

गोरखनाथ मंदिर हमला: मुर्तजा का आतंकी कनेक्शन!

Comments 3

  1. Anonymous says:
    3 years ago

    बहुत सटीक लिखा है!

    Reply
  2. Anonymous says:
    3 years ago

    बहुत सुंदर वर्णन

    Reply
  3. Anonymous says:
    3 years ago

    अति सुन्दर समकालीन लेख।

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0