‘आदर्श’ की तरह प्रस्तुत हों आदर्श
कहा जाता है कि सिनेमा समाज को दर्पण दिखाता है परंतु यदि उसे माध्यम बनाने वालों का ध्येय शुद्ध ना हो तो वे समाज को गलत इतिहास और कथावस्तु से परिचित कराने का प्रयास करते हैं। तथ्यों से अपरिचित किशोर और युवा उसी असत्य को सत्य मानकर आचरण करने लगते हैं।