हवा का भोजन कर जीवित रहीं अहल्या
वाल्मिकी रामायण के अनुसार गौतम ऋषि पत्नी अहल्या के चरित्र पर शंका कर उसे हवा पीकर, अदृश्य रहने का श्राप देते हैं। केवल हवा पीकर जीवित रहने वाली इसी स्त्री को अन्य रामायणों में शिला की उपमा दी गई है। इस स्थिति में पुत्र शतानंद व चिरकारी तथा पुत्री अंजनी अहल्या की सेवा में रहते हैं। अर्थात हमारे ऋषि हवा से भोजन बनाने की तरकीब न केवल जानते थे, बल्कि विपरीत परिस्थितियों में उसका सेवन भी किया जाता था।