धन का भजन

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 इस रंग बदलती दुनिया में धर्म के बजाय धन का महत्व सभी सीमाएं पार कर रहा है। जैसे बहुत-से गुंडे नेताओं को हटा कर देश सेवा की कुर्सी फर बैठ गये हैं, उसी तरह एक दिऩ धन भी धर्म को हटा कर उसकी गद्दी फर बैठ जाएगा। धन की फूजा तो अब भी होती है, फिर तो बाकायदा फ्रार्थना शुरू हो जाएगी। मैंने भी उसकी एक स्तुति लिखी है। आफको जम जाए तो याद करके रख लीजिए, किसी दिन काम आएगी।

सुभाष अवचट: भगवा रंग के कुण्ड में कूद पड़ने की नियति

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उससे और उसके चित्रों से साबका साल-दर-साल होता रहा। उसके चित्रों की प्रदर्शनियां भी विशाल-से-विशालतर होती गईं। कई बार जहांगीर कला दीर्घा की पूरी की पूरी वातानुकूलित गैलरी तो कभी ऑडिटोरियम में।

बाल गंधर्व का अंदाजे-बयां क्या करें

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उन्नसवीं सदी के मध्य काल संगीत नाटकों का काल माना जाता है। मराठी रंगमंच ने बाल गंधर्व के रूप में ऐसा कलाकार दिया जिसका जादू आज भी कम नहीं हुआ है। उनकी स्त्री भूमिकाएं इतनी सजीव हुआ करती थीं कि महिलाओं में उन्हीं की शैली फैशन बन जाती थी। हाल में उन पर मराठी में एक फिल्म भी बनी है।

शगुन शगुन बरखा बरसे

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मध्य युग में उत्तरी भारत के किसानों के सर्वप्रिय मौसमी विज्ञानी कवि घाघ और भड्डरी थे। आज भी उत्तर प्रदेश और बिहार के ग्रामीण जनों में घाघ की तथा पंजाब और राजस्थान में भड्डरी की कहावतें प्रचलित हैं।

अभूतपूर्व

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सुना है भारत सरकार फिल्म वालों से नाराज है। नाराजगी का कारण यह बताया जाता है कि गत वर्ष एक फिल्म में भारत की गरीबी को व्यापक रूप से दिखाया गया। सरकार को लगता है कि इससेे विदेशों में भारत की छवि खराब होती है। लेकिन मेरी समझ में यह असली कारण नहीं है-

बडे दिल की बडी बात

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हाल ही में फाकिस्तानी क्रिकेट टीम के कपतान शाहिद अफ़रीदी ने बताया कि हिंदुस्तानियों के दिल फाकिस्तानियों जितने बडे नहीं होते। इस बात से कई हिंदुस्तानी बहुत नाराज़ हो गय।

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