भारतीय संगीत शिक्षा तब और अब

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संगीत-शिक्षा संस्थाओं के प्रारंभ से पूर्व संगीत की तथा संगीतज्ञों की क्या स्थिति रही होगी, समाज के हृदय में संगीत के प्रति सम्मान भाव जागृत करने के लिए कैसी तपस्या करनी पड़ी होगी, यह जानना और विशेष रूप से उन महान संगीतज्ञो

विभिन्न प्रांतीय संगीत

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संगीत भारतीय जीवन की आत्मा है। यह संगीतमय भाषा अपने आप में पूर्ण है। यह अधिक सांस्कृतिक है। विभिन्न भाषी संगीत तो उस खूबसूरत रंगीन, सुगंधित फूलों का एक अनुपम गुलदस्ता है, जो विविध रूपों को एक साथ बांधे हुए है। भारतीय संस्कृति

जीवन में संगीत संस्कार

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सं स्कृत में प्रसिद्ध कहावत है, ‘संगीताद् भवति संस्कार :। ’ केवल मानवी जीवन में ही नहीं अपितु पशु -पक्षी, वनस्पति सहित संपूर्ण सृष्टि जीवन में संगीत का महत्व है। संगीत में रुचि न होनेवाले व्यक्ति को ’साक्षात् पशु : पुच्छविषाणहीन : ‘ ऐसा कहा जाता है।

बदलते साज

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;इलेक्ट्रोनिक इस्ट्रूमेंट या आधुनिक तकनीक हमारे वाद्यों के लिए, हमारे संगीत समाज के लिए बहुत ही खतरनाक है। दस इस्ट्रूमेंट बजा कर जो काम होता था वो आज एक मशीन करती है। इस कारण संगीत के क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ी है। वादकों की

समन्विन्त संस्कृति का केंद्र बिहार

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 बचपन में ही मुझे जानकर अच्छा लगा था कि मैं छपरा नगर का निवासी हूं, जहां सरयू तट पर पास के मुहल्ले में दधीचि मुनि का आश्रम था। आज उसे अहियांवा कहते हैं। नगर के पूर्व में चिरांद नामक ग्राम है जिसके आसपास सरयू और गंगा का संगम है।

क्या है बिहारीपन?

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     कई शब्दों के अर्थ समय के अनुसार बदलते रहते हैं। कभी ‘नेता जी’ शब्द का बड़ा सम्मान था, क्योंकि यह शब्द महान स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस के नाम के साथ जुड़ा था।

भोजपुरी भाषा, संस्कृति और समाज

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***विद्या सिन्हा ***        भोजपुरी भाषी प्रदेश का विस्तार हमें एक ओर बिहार में छपरा, सीवान, गोपालगंज, भोजपुर (आरा) रोहतास (सासाराम), डाल्टन गंज, पश्चिमी चंपारण (बेतिया) एवं उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर, वाराणसी, गाजीपुर, आजमगढ़,

बिहार का पुराना गौरव लौटा दो

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बिहार का अतीत बेहद गौरवशाली रहा है। मगर, आधुनिक भारत की जब हम बात करते हैं, तो बिहार की चर्चा एक पिछड़े प्रदेश के तौर पर होती है

नृत्य लालित्य

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  सिंधी लोकनृत्य भारत के अन्य नृत्यों से काफी मेल खानेवाले हैं। रामलीला, रासलीला, गरबा आदि लोकनृत्यों का उनके ऊपर बडा प्रभाव पाया जाता है। वैसे बदलते स्थानों के अनुरूप उनमें ऐसा साम्य होना सहज ही है। सिंधी लोकनृत्यों में विशेष रूप से तीन प्रकार के नृत्य हैं। वे हैं- छेज, टपरी और झुमरी।

ज्योतिषां ज्योति :

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दीपमालिका प्रकाश का पर्व है। घर-आंगन, गली और चौबारा-सर्वत्र दिये जलाकर आलोक के प्रति आस्था व्यक्त करने का यह पावन प्रसंग प्रतिवर्ष हमारे सम्मुख आता है और ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ (हे प्रभु! हमें अन्धकार से उजाले की ओर ले चलो -) की प्रार्थना अनायास मुखरित कर जाता है।

आदि शक्ति के अनेक रूप

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वैष्णो देवी- भारत के उत्तर में स्थित वैष्णो देवी का मंदिर विश्वप्रसिद्ध है। हर वर्ष लाखों की संख्या में भक्तगण वैष्णो देवी के दर्शन करने आते हैं। जम्मू के कटरा से लगभग 12 किमी की दूरी पर स्थित इस मंदिर तक पहुंचने का मार्ग बहुत कठिन है।

समाज मन में ‘दुर्गा शक्ति’ जागृत हो

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आज के संदर्भ में आदिशक्ति के उत्सव की ओर हमें ‘शक्ति के ऊर्जा-स्रोत’ के रूप में ही देखना चाहिए। इन उत्सवों के जरिए समाज में ऊर्जा संक्रमण होने की आवश्यकता है। मैं कौन हूं?, मेरा स्थान, कार्य, महत्व क्या है? राष्ट्र के रूप में, समाज के रूप में मेरा चिंतन क्या है और इस चिंतन के विषय क्या हैं? इन बातों को समझना ही उपासना है।

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