कोरोना संकट के दौरान मोदी का नेतृत्व अमृतमय अवदान

नयन बोल नहीं पाते और कलम देख नहीं पाती। वरना जो दृश्य इस स्तंभ को लिखते समय मन में कोलाहल निर्मित कर बैठे, वे कागज पर उतर आते।

एक श्रमिक महिला को कोरोना काल में पैदल अपने गांव जाते हुए प्रसव पीड़ा हुई और मार्ग में ही
शिशु का जन्म हुआ। नवजात शिशु का प्रथम रुदन मां ने आंसुओं में छुपा, उसे गोदी में संभाल 160 (एक सौ साठ) कि.मी. की यात्रा पूरी की।

दूसरा दृश्य बैलगाड़ी से अपने गांव, कुछ सौ किलोमीटर जाने वाले परिवार में पति-पत्नी और दो बच्चे, मार्ग में
बैलगाड़ी खींच रहे दो बैलों में से एक की मृत्यु हो गई, आपदा ऐसे ही आती है। उस बैल को मार्ग में अंतिम विदा दे, किसान पति- पत्नी दूसरे बैल की जगह जुए में (जो बैल के कंधे पर रख बैलगाड़ी हांकी जाती है) बारी बारी से खुद जुतने और गाड़ी खींचते देखे गए। गाड़ी के पहिए, वीडियो क्लिप में टेढ़े-मेढ़े, अलग हुए जा रहे थे, इस कारण गाड़ी खींचना और ज्यादा कठिन हुआ होगा।

यह आज का भारत है, सदियों विदेशी हमले झेले, लूट और अपमान झेला, खण्डित आजादी मिली, सात दशक बाद भी गरीबी के भयावह, हृदय द्रावक दृश्य, कोरोना काल में और ज्यादा उजागर हुए।

भारत में धन और वैभव के द्वीप, मध्य वर्गीय बढ़ रही समृद्धि, प्रगति की गाथाएं इस मार्मिक सत्य को ढक नहीं सकती कि शहरी और ग्रामीण अंचलों में आज भी बेहद गरीबी, शोषण और असहायता का विराट व्याप है।

कोरोना ने एक नई विेश रचना प्रारंभ की और भारत भी उससे अछूता नहीं रहा। कार्य के तरीके, रिश्तों का समन्वय, उद्वेग, आतुरता को विराम, मन के भीतर संवेदना और रिश्तों की ऊष्मा को नई अभिव्यक्ति कोरोना काल की पहचान बनीं। एक अदृश्य, अजनबी शत्रु है कोरोना, धनी, निर्धन, प्रभावशाली, प्रभावहीन सबको एक समान देखता है, तो भारत जैसा देश जहां सामाजिक- आर्थिक विषमताएं अपार हैं, इस विषाणु आक्रमण के काल में अपना राजधर्म कैसे निभाए? और वह भी उस परिदृश्य में जब विपक्ष, एक नकारात्मक विषाणु की तरह कुछ भी अच्छा, सही या देश हित में सोचने, बोलने से इनकार करता हो? जब मीडिया का एक वर्ग, वामपंथी, जिहादी इकोसिस्टम के साथ स्वदेश और स्वबंधुओं पर झूठी खबरों, विद्वेष भरी टिप्पणियों और नकली वीडियो क्लिपों के हमले कर रहा हो?

तब एक ही राजधर्म सामने दिखता है, सेवा और नागरिकों की जीवन रक्षा को सर्वोच्च महत्व देते हुए यथा संभव एकजुटता बनाए रखकर आर्थिक सहायता की प्राण वाहिनी जीवित रखना।

सौभाग्य से भारत को ऐसे संकट काल में नरेन्द्र मोदी का नेतृत्व काल के कराल गाल में जा रहे गजेन्द्र की दैवी रक्षा के समान अमृतमय अवदान सिद्ध हुआ। जब अमेरिका, यूरोप, ईरान जैसे देश कोरोना को हल्के ले रहे थे, जब ब्रिटेन और वाशिंगटन के अखबार कोरोना से बचाव हेतु लॉकडाउन को गैरजरूरी समझ रहे थे, तब नरेन्द्र मोदी ने पहले जनता कर्फ्यू और फिर 25 मार्च को लॉकडाउन घोषित कर दिया। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आई.सी.एम.आर.) के अध्ययन के अनुसार यदि भारत ने सबसे पहले लॉकडाउन घोषित न किया होता तो आठ लाख भारतीय मृत्यु का शिकार हो सकते थे। नरेन्द्र मोदी सरकार ने भारतीयों का जीवन, अन्य सभी बिन्दुओं से ऊपर और प्रमुख रखा।

अब आगे का मार्ग नवीन भारत के उदय का है, आत्मनिर्भर, स्वावलंबी स्वदेशी अपनाने वाला भारत जो विेश में अपनी ‘आभा’ (आत्मनर्भर-भारत) से नवीन, सात्विक ऊर्जा का केन्द्र बन सकता है।

इस दिशा में 13 मई को प्रधानमंत्री के दृष्टि- पत्र के ये बिन्दु प्राणवान ऊर्जा भरे हैं।

भारत के सकल घरेलू उत्पाद का दस प्रतिशत यानी बीस लाख करोड़ रूपए अर्थव्यवस्था, ढांचागत संरचनात्मक विकास, मांग व आपूर्ति, श्रमिकों, मध्यमवर्ग, लघु और मध्यम कुटीर उद्योग को आर्थिक सहारा देने के लिए निवेश किए जाएंगे। यह आज विेश में कोरोना के कारण आर्थिक संकट से उबरने का सबसे बड़ा कदम है।

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज में 1.70 लाख करोड़ दिए गए हैं, जिसमें प्रत्येक स्वास्थ्य कर्मी को 50 लाख का बीमा-रक्षा-कवच मिलेगा, अगले तीन महीने तक 80 करोड़ गरीब भारतीयों को 5 किलो गेहूं या चावल हर माह निशुल्क दिया जाएगा, जन धन खाता धारक 20 करोड़ महिलाओं को तीन माह तक निशुल्क गैस सिलेण्डर, 3 करोड़ वृद्ध, दिव्यांग व गरीब विधवा महिलाओं को एक-एक हजार का राहत अनुदान दिया जाएगा।

पी.एम. किसान योजना में 8.7 करोड़ किसानों को 2- 2 हजार रूपए राहत के और तीन करोड़ किसानों को चार लाख करोड़ रू. आसान ऋण के रूप में। 15 हजार करोड़ रूपए एमरजेंसी हैल्थ रिस्पांस पैकेज यानी आपात कालीन स्वास्थ्य व चिकित्सा संबंधी आवश्यकताओं के लिए दिए गए। ‘आभा’ (आत्मनिर्भर- भारत) संकटग्रस्त देश के पुनरोदय का मंत्र बना है। जिसने भी 12 मई को प्रधानमंत्री को सुना व 13 तथा 14 मई को श्रीमती निर्मला सीतारमण द्वारा 20 लाख करोड़ रूपए के भारत-पुनरोदय अनुष्ठान की व्याख्या सुनी वह रोमांचित तथा आशान्वित हो उठा। जो सावधानी भारत ने दिखाई, वह दुनिया में विशेष और प्रथम, जो आर्थिक पुनरूज्जीवन की तैयारी भारत ने दिखाई वह भी दुनिया में सबसे बढ़कर तथा प्रभावी
है। आज किसी को क्या दत्तोपंत ठेंगड़ी और उनका स्वदेशी आंदोलन याद आ रहा होगा?

कर्मचारियों के वेतन, मध्यम कम्पनियों, उद्यमों हेतु ग्लोबल टैण्डर की पूंजी सीमा में छूट, स्वास्थ्य कर्मियों पर हमला करने, उनसे दुर्व्यवहार पर कड़ी सजा का रातों-रात लाया गया अध्यादेश, ऐसे हजारों नए कदम अहर्निश कार्यरत, अहर्निश भारत-वासी -सेवारत प्रधानमंत्री ने उठाए।

आर्थिक पैकेज का मोल मालूम कर सकते हैं, लेकिन जो आत्मविेशास आत्मनिर्भरता के लिए चाहिए उसका मोल क्या होगा? यही राजधर्म की परीक्षा का काल होता है। नरेंद्र मोदी के बीस लाख करोड़ से ज्यादा महत्व का है मोदी द्वारा देश के लोगों में भरा गया आत्मविेशास। द्वितीय विेश युद्ध में इंग्लैंड चारों ओर से घिर गया था, प्रधानमंत्री चैम्बरलेन और विदेश सचिव हैलीफैक्स मुसोलिनी के माध्यम से हिटलर के साथ समझौते की बात कर रहे थे, उस समय चर्चिल ने संधि को नकारा, युद्ध को स्वीकारा और द डार्केस्ट ऑवर भाषण दिया जिसमें कहा कि मैं इंग्लैंड वासियों को सिर्फ रक्त, पसीना, कड़ी मेहनत और आंसू ही दे सकता हूं, लेकिन हिटलर के आगे घुटने नहीं टेकूंगा। पूरा इंग्लैंड चर्चिल के साथ खड़ा हुआ, हार के जबड़े से जीत लेकर चर्चिल ने अंधकार के काल को स्वर्णिम काल में बदल दिया।

वीर सावरकर ने हर ऐसे चुनौती काल को जब काले बादल मंडरा रहे हो, बिजलियां चमक रही हो, आशा के दीप मद्धिम कहीं टिमटिमा रहे हो, उस राष्ट्र और समाज के लिए स्वर्णिम काल कहा था क्योंकि ऐसे ही संकट काल में पता चलता है कि समाज के घटकों के रक्त का रंग लाल है या स़फेद।

वस्तुत: कोरोना के काल धर्म को राज्य-सत्ता का उत्तर सेवा धर्म है। काल धर्म के सापेक्ष सेवा-राजधर्म, जो एक नवीन भारत- विेश की पुन: सर्जना, ब्रह्मा की नवीन सृष्टि ही है।

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