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गौरवशाली बिहारी

गौरवशाली बिहारी

by प्रशांत त्रिपाठी
in नवम्बर- २०१२, संस्कृति, सामाजिक
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बिहार का नाम आते ही हमारे मन में हिंसा, संस्थानिकीकरण, अपहरण, गुंडई, रंगदारी, पिछड़ापन, बेरोजगारी, उद्योग रहित और एक जातिग्रस्त राज्य की कल्पना मन में आती है। भारतीय रेलें बिहारी पहचान की सबसे बड़ी वाहक हैं। रेल गाड़ियों में ठूसे बिहार के कोने-कोने से देशभर में रोजगार की तलाश में भटकते उपेक्षा, अपमान और जलालत का दंश झेलते बिहारी मजदूरों से बिहार को पहचान मिलती है।

बिहार पर विमर्श, मात्र एक परिघटना पर विमर्श नहीं है, न ही यह एक विशेष भू-भाग, राजनीतिक क्षेत्र, सामाजिक जीवन, अर्थ व्यवस्था और संस्कृति पर चर्चा करने का विषय है। वास्तव में बिहार की इस देश में जो ऐतिहासिक स्थिति है, उसके अनुसार बिहार को राष्ट्रीय चर्चाओं में केंद्रीय स्थान प्राप्त हो जाता है, भले ही इसकी चाहे जितनी अनदेखी की जाये। बिहार में सवालों के जवाब मिलने मुश्किल हैं। हां, सवालों पर सवाल जरूर खड़े किये जा सकते हैं।

देश का यह भू-भाग प्राचीन काल से कला, संस्कृति, आध्यात्म, दर्शन, विद्या, शौर्य और अन्य सभी मानवोचित गुणों का केंद्र रहा है। प्राचीन काल से आज तक देश के इतिहास के हर मोड़ पर, हर अध्याय पर इसका प्रमुख स्थान रहा है। राजतंत्र से लेकर दर्शन और आध्यात्म तक में बिहार का जो योगदान भारत की संस्कृति, कला और अन्य क्षेत्रों के विकास में रहा है, उसका भारतीय इतिहास और भारत के विकास में बहुत ऊँचा स्थान है।

ग्रीक विजेता को रोक कर वापस जाने को बाध्य कर बिहार ने भारत की स्वतंत्रता को अक्षुण्य रखने का जो महत्वपूर्ण कार्य किया, वह नहीं होता तो पता नहीं देश के इतिहास का रूप आज क्या होता। अभी तक लिखे गये इतिहास के अनुसार बिहार लंबे समय तक भारतीय राष्ट्र के ऐतिहासिक अभ्युदय के केंद्र में रहा।

बिहार राष्ट्र का अर्थ ‘‘बौद्ध भिक्षुओं का निवास’’ होता है। इतिहासकारों के अनुसार इस क्षेत्र में बौद्ध बिहारों की संख्या काफी थी। बिहार शब्द ‘विहार’ का अपभ्रंश है। बिहार का प्राचीनतम वर्णन अथर्व वेद तथा पंचविश ब्राह्मण में मिलता है, जो संभवत: 8वीं -10वीं ई.पू. का काल था और उस समय बिहार को ब्रात्य कहा गया है, जबकि ऋग्वेद में बिहार और बिहार वासियों को ‘कीकर’ कहा गया है। प्राचीन ग्रन्थों में बिहार से अनेक राजाओं के नाम जुड़े हुए हैं। इनमें गांधार, शल्य, कैकय, कुरु, पांचाल, कोशल, विदेह आदि राजाओं का उल्लेख मिलता है।

बिहार गंगा नदी के दोनों किनारों पर बसा एक मैदानी इलाका है, जिसे गण्डक, कोसी, सोन, पुनपुन जैसी कई नदियां सींचती हैं। नादियों का ये राज्य भारत का सबसे उपजाऊ इलाका रहा है। शतपथ ब्राह्मण नामक उत्तर वैदिक ग्रंथ में यह उल्लेख आया है कि आर्यों का एक समूह सरस्वती नदी की धारा सूख जाने के पश्चात मध्य गंगा घाटी पार कर गण्डक नदी के तट तक पहुंचे। इस आर्य समूह के प्रमुख का नाम निमि विदेह था।

विदेह, राजा इक्ष्वाकु के पुत्र थे। इसी वंश के दूसरे राजा मिथि जनक विदेह ने मिथिलांचल की स्थापना की। इस वंश के 25वें राजा सिरध्वज राजा जनक थे। विदेह की राजधानी मिथिला थी। माता सीता का जन्म इसी विदेह राज्य में हुआ। महर्षि वाल्मीकि ने बिहार में रहकर ही ‘‘रामायण’’ महाकाव्य की रचना की। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विहार का सांस्कृतिक भूगोल अत्यंत महत्वपूर्ण है। नैमिषारण्य (वर्तमान सारण) एवं धर्मारण्य (गया) तपोभूमि के रूप में विख्यात रहे। उल्लेखनीय है कि विदेह राजतंत्र से बदलकर छठीं शती में गणतंत्र हो गया था। यही बाद में लिच्छवी संघ के नाम से विख्यात हुआ।
इतिहास के सबसे बड़े साम्राज्य मौर्य का केन्द्र बिहार ही था। मगध साम्राज्य भी बिहार की जमीन पर ही बढ़ा और संपन्न हुआ। इसी दौरान पाटलिपुत्र अस्तित्व में आया, जिसे आज हम पटना कहते हैं। मौर्य साम्राज्य का राजनैतिक केन्द्र पाटलिपुत्र ही था। पटना का इतिहास काफी पुराना है, जो पवित्र नदी गंगा के किनारे बसा हुआ है। पटना भारत के गौरवशाली शहरों में से एक है। लोक-कथाओं के अनुसार राजा पत्रक को पटना का जनक कहा जाता है, जिसने अपनी रानी पाटलि के लिए इस नगर का निर्माण किया, इसी कारण नगर का नाम पाटलिग्राम पड़ा और फिर पाटलिपुत्र पड़ा। पुरातात्विक अनुसंधानों के अनुसार पटना का इतिहास 490 ईसा पूर्व से शुरू होता है, जब हर्यक वंश के शासक अजातशत्रु ने अपनी राजधानी राजगृह से बदलकर यहां स्थापित की। मौर्य साम्राज्य के उत्कर्ष के बाद पाटलिपुत्र सत्ता का केन्द्र बन गया। चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य बंगाल की खाड़ी से अफगानिस्तान तक फैल गया था।

बिहार के ऐतिहासिक योगदान का सबसे प्रभावशाली पक्ष है, छठीं शताब्दी ईसा पूर्व से छठीं सदी अर्थात बारह सौ साल तक भारतीय राजनीति में अग्रगामी भूमिका का निर्वाह। इस काल खंड में बिहार ने केवल चंद्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक, बिम्बिसार, अजातशत्रु, पुष्यमित्र शुंग, समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त विक्रमादित्य, स्कंदगुप्त जैसे यशस्वी शासक ही नहीं दिये, अपितु ‘आसेतु हिमालयात्’ अर्थात समुद्र से हिमालय पर्यंत शासन की स्थापना कर भविष्य के अखंड भारत का आधार भी निर्मित किया। ये बारह सौ वर्ष भारतीय संस्कृति के पुष्पित, पुल्लवित होने का काल है। पतंजलि का महाभाष्य, पाणिनी की अष्टाध्यायी और कौटिल्य का अर्थशास्त्र जैसे अपूर्व ग्रंथ इसी काल के हैं। बौद्ध और जैन साहित्य में भी बिहार के ऐतिहासिक स्त्रोत और महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन मिलता है।

प्राचीन साहित्य में बिहार को मगध राज्य भी कहा गया है। मगध उत्तर भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली महाजनपद था। मगध की प्राचीन राजधानी राजगृह थी। यह गौरवमयी इतिहास और राजनीतिक एवं धार्मिकता का विश्व केन्द्र बन गया था। ब्रहद्य्र वंश यह मगध का सबसे प्राचीनतम राजवंश था। इस वंश में दस राजा हुए जिसमें ब्रहद्य्र पुत्र जरासंध प्रतापी सम्राट था। भगवान श्री कृष्ण की सहायता से भीम ने जरासंध को द्वंद्व युद्ध में मार दिया था।

गुप्त काल को भारतीय इतिहास का स्वर्णिम काल भी कहते हैं। इसी काल में शांति के उपदेशक जैन और बौद्ध पंथ का उद्भव और प्रसार विश्व के अन्य भागों तक हुआ। इसी दौरान नालंदा विश्वविद्यालय का निर्माण हुआ था, जो दुनिया का पहला अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय था।
महात्मा बुद्ध को बिहार में ही महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई थी और बिहार को बौद्ध धर्म का केन्द्र भी माना गया है। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर की जन्म भूमि बिहार ही है। इसी जमीन पर उन्हें निर्वाण की प्राप्ति हुई। सिक्खों के 10वें गुरु गोविंद सिंह जी भी पटना में पैदा हुए और यहीं पर उन्होंने दीक्षा ली। पटना का मशहूर गुरुद्वारा हर मंदिर साहिब उन्हीं की याद में बनाया गया था। हर मंदिर साहिब सिक्खों का दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है।

बिहार का मध्य कालीन युग 12वीं शताब्दी के प्रारम्भ से माना जाता है। बिहार का मध्य कालीन इतिहास का प्रारम्भ उत्तर पश्चिम सीमा पर तुर्कों के आक्रमण से हुआ। मध्य कालीन काल में भारत में किसी की भी मजबूत केन्द्रीय सत्ता नहीं थी। पूरे देश में सामन्तवादी व्यवस्था चल रही थी। सभी शासक छोटे-छोटे क्षेत्रीय प्रशासन में विभक्त थे। 12वीं सदी में बख्तियार खिलजी ने बिहार पर अपना आधिपत्य जमा लिया और कई आध्यात्मिक प्रतिष्ठानों को ध्वस्त कर डाला, जिसमें नालंदा और औदत्तपुरी विश्वविद्यालय का विध्वंस प्रमुख है। नालन्दा विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए विश्वभर से छात्र आते थे। मुगल साम्राज्य के पतन के साथ ही यह बिहार-बंगाल के नवाबों के शासनाधीन हो गया।

बिहार का आधुनिक इतिहास 16वीं शताब्दी से प्रारम्भ माना जाता है। इस समय बिहार का शासक नवाब अली वर्दो खान था। 1765 ई. में बक्सर के युद्ध के बाद बिहार अंग्रेजों के आधीन हो गया। बिहार में 1765 ई. से ही ि ब्रिटिश साम्राज्य विरोधी संघर्ष प्रारम्भ हो गया था। बिहार के स्थानीय लोगों द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ संगठित या असंगठित रूप से विद्रोह चलता रहा। सोनिया विद्रोह, लोटा विद्रोह, छोटा नागपुर का विद्रोह, कोल विद्रोह, भूमिज विद्रोह, चेर और संथाल आदि विद्रोह हुए। ये सारे विद्रोह अंग्रेजों द्वारा आदिवासियों के क्षेत्रों में प्रवेश करने व उनकी परम्पराओं में हस्तक्षेप करने के विरुद्ध हुए। इनमें सबसे प्रसिद्ध विद्रोह मुण्डा विद्रोह है, जिसमें पहली बार जनजातियां संगठित होकर 1895 से 1901 ई.तक अंग्रेजों से लोहा लेते रहे, जिसका नेतृत्व बिरसा मुण्डा ने किया था। बिरसा मुण्डा ने पारम्परिक भू-व्यवस्थ और जमींदारी व्यवस्था को धार्मिक एवं राजनीतिक आन्दोलनों का रूप प्रदान किया। बिरसा मुण्डा ने अपनी सुधारवादी प्रक्रिया को सामाजिक जीवन में एक आदर्श प्रस्तुत किया। उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के अस्तित्व को नकारते हुए अपने अनुयायियों को अंग्रेजों को लगान न देने का आदेश दिया।

1856 ई. का विद्रोह अंग्रेजों के खिलाफ भारतवासियों का प्रथम सशस्त्र विद्रोह था। 1856 ई. की क्रांति की शुरुवात बिहार में 12 जून 1856 को देवधर जिले के रोहिणी नामक स्थान से हुई थी। बिहार में 1856 की क्रांति के नायक जगदीशपुर के जमींदार वीर कुँअर सिंह थे। कुँअर सिंह ने नानासाहेब के साथ मिलकर आजमगढ़ में अंग्रेजों को हराया। स्वतंत्रता आंदोलन काल की विरासतों से भी बिहार भरा पड़ा है। सन 1912 बिहार राज्य की स्थापना के कुछ वर्ष बाद से ही यह राज्य भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष की धुरी बन गया। 1916 का चंपारण में महात्मा गाँधी का नील आंदोलन, जो कि महात्मा गाँधी द्वारा भारत में सत्याग्रह का पहला प्रयोग था। 1922 का गया में कांग्रेस का अधिवेशन, 1929 की बिहार प्रांतीय किसान सभा, 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन जैसी घटनाएं तो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में मील का पत्थर बन गईं। बिहार इस काल में न केवल गाँधी एवं नेहरू द्वारा संचालित काँग्रेस के आंदोलन का केन्द्र था, बल्कि सुभाष चंद्र बोस की राजनीतिक सफलता के पीछे भी बिहार की जनसभाएं थीं। आधुनिक भारत के तीन बड़े आंदोलनकारी सहजानंद सरस्वती, महात्मा गाँधी और जयप्रकाश नारायण सभी को बिहार ने आधारभूत समर्थन प्रदान किया।

स्वतंत्रता के बाद बिहार देश का सबसे व्यवस्थित राज्य था, लेकिन धीरे-धीरे जाति आधारित राजनीति ने पकड़ बना ली और राज्य की हालत बिगड़ गयी। इंदिरा गाँधी की तानाशाही का सबसे पहले विरोध बिहार में ही हुआ। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में 1974 में हुआ आंदोलन इंदिरा सरकार की कुनीतियों के खिलाफ एक मोर्चा था। अद्वितीय एवं गौरवशाली इतिहास की परंपरा को फिर जीवित करने यह प्रयत्न कुछ हद तक सफल रहा।

बिहार की राजनीति दृढ़ नेतृत्व के अभाव में जातीय कुचक्र में फंसती रही। परिणाम था निर्धनता, कुपोषण, जातीय द्वंद्व, नक्सलवाद, हिंसा एवं आर्थिक पिछड़ापन। स्वतंत्रता के बाद सन 2000 में बिहार राज्य का एक और विभाजन हुआ और नया झारखंड राज्य बना।

राज्य में अब भले ही विकास का सारा ताना-बाना सड़क एवं पुल निर्माण तक सीमित है, कुछ सामाजिक शैक्षणिक एवं स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं में ग्रामीण स्तर पर बेकार बैठे लोगों को अल्पकालिक ही सही, पर नौकरी का अवसर प्राप्त है। परिणाम तो लंबे काल के बाद दिखेगा। बिहार का उत्तरी भाग बाढ़ ग्रस्त है, तो दक्षिणी भाग सूखा पीड़ित है। काम अभी और बाकी है।

राजनैतिक और ऐतिहासिक गौरव के अलावा अनोखे बिहार के और कई आयाम हैं। बिहार की संस्कृति मैथिली, गगही, भोजपुरी, बज्जिका तथा अंग संस्कृतियों का मिश्रण है। छठ, दीवाली, दशहरा, महाशिवरात्रि प्रमुख पर्व हैं। जातिवाद बिहार की राजनीति तथा आम जीवन का अभिन्न अंग रहा है। इस जातिवाद के दौर की एक खास देन है अपना उपनाम बदलना। जातिवाद केे दौर में कई लोगों ने अपने नाम से जाति स्पष्ट ने हो, इसके लिए अपने उपनाम बदलकर एक संस्कृत नाम रखना आरंभ कर दिया, जैसे प्रकाश, सुमन, प्रभाकर, रंजन, भारती इत्यादि। मुख्य धारा में हिन्दी फिल्मों के अलावा भोजपुरी फिल्मों का अपना अलग प्रभुत्व है। भोजपुरी फिल्मों को बढ़ावा देने का श्रेय हमारे पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू को ही जाता है। शादी-विवाह के दौरान शहनाई बजाने का प्रचलन है। इस वाद्य यंत्र को लोकप्रिय बनाने में बिस्मिल्ला खान साहब का नाम सर्वोपरि है। उनका जन्म बिहार में ही हुआ। बिहार अपने खान-पान की विविधता के लिए प्रसिद्ध है। खाजा, मोतीचूर के लड्डू, लिट्टी-चोखा यहां के स्थानीय खाद्य हैं।

बिहार की अर्थ व्यवस्था कृषि आधारित है। बिहार की लगभग 75ज्ञ् जनसंख्या कृषि कायार्ें से जुड़ी है। गत कुछ वर्षों में बिहार राज्य में विकास की गति बढ़ी है। बीमारू प्रदेश कहा जाने वाला बिहार आज विकास प्रदेश कहा जाने लगा है। 2007 के आँकड़ों के अनुसार बिहार की प्रति व्यक्ति आय बैंग्लोर और हैदराबाद जैसे विकसित शहरों से ज्यादा थी। ताजा आँकड़े बताते हैं कि बिहार राज्य में विकास की दर देश में सबसे ज्यादा है।

हमें इंतजार है उस गौरवशाली अनोखे बिहार की, जिसका नाम सामने आते ही भारत की संस्कृति, सभ्यता, इतिहास और ज्ञान-चिन्तन सामने आकर खड़ा हो जाता है। एक समय ऐसा था, जब शौर्य, नीति, धर्म, कला, विवेक, मर्यादा, संस्कृति, स्थापत्य सभी का केन्द्र यही था। जहां एक ओर भगवान महावीर इसकी गोद में पैदा होकर अपने ज्ञान से इसे गौरव मंडित कर रहे थे, वहीं गौतम की ज्ञानभूमि का श्रेय भी इसी धरती को प्राप्त है। एक ओर जहां महान खगोलशास्त्री आर्यभट्ट की जन्मभूमि यहीं थी, वहीं विश्व विख्यात चिकित्सक जीवक की धरती भी यहीं रही।

बिहार की धरती के साथ यह सौभाग्य मणि-कंचन योग बनकर जुड़ा रहा कि इसके इतिहास के समान ही इसका भूगोल भी महिमामय है, तभी तो किसी हिस्से में विश्वामित्र भगवान राम और लक्ष्मण को धनुर्धर बना रहे हैं, किसी हिस्से में राम अहिल्या का उद्धार कर रहे हैं। कहीं जगत जननी सीता लव-कुश के साथ वनवासिनी जीवन बिता रही हैं, कहीं विक्रमशिला के खंडहर विद्वता का जयघोष कर रहे हैं, कहीं नालंदा के स्तूपों से अभी तक जलने की धाह उठ रही है, कहीं अशोक की लाट उनके धम्मं शरणं गच्छामि का जय घोष कर रही हैं, तो कहीं नन्दनगढ़ विश्व विख्यात अर्थशास्त्री कूटनीतिज्ञ याज्ञवल्क्य की महिमा को अक्षुण्य बनाये हुए हैं।

बिहार के सांस्कृतिक वैभव का लेखा-जोखा किसी एक लेख में संभव नहीं, अत: आवश्यक है कि इसके लिए कोई एक बड़ा सा ग्रंथ लिखा जाये।

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