भारत ख़डा हो रहा है

संघ के एक वरिष्ठ अधिकारी से भाजपा के विजय के संदर्भ में चर्चा हुई। जो परिवर्तन हुआ उसके लिए उन्होंने एक शब्द का प्रयोग किया-Paradigm shif. अंग्रेजी भाषा का यह अत्यंत अर्थपूर्ण शब्द है। जब किसी रचना अथवा संस्था या रचना अथवा संस्था के विचारों के स्थान पर पूर्णत: नवीन रचना या विचार आता है तोParadigm shif. शब्द का प्रयोग किया जाता है।

नरेंद्र मोदी और भाजपा की विजय के कारण भारतीय राजनीति मेंParadigm shif. हुआ है। अर्थात नए विचार और उसके अनुसार नवीन रचना में भारत प्रवेश कर रहा है। सीधी भाषा में इसे मूलगामी परिवर्तन कहा जा सकता है।
इस मूलगामी परिवर्तन की ओर भारत के सेक्युलर पंडितों ने ध्यान नहीं दिया। ये पंडित स्वयं निर्माण किए हुए वैचारिक सपनों के महल में रहते हैं। वे इस अहंकार में जीते हैं कि भारत के लोगों का मार्गदर्शन करना उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। इनमें प्रकाश कारत, सीताराम येच्ाुरी, अमर्त्य सेन, मणिशंकर अय्यर, शशी थरूर आदि लोगों का नाम लिया जा सकता है।
लंदन से प्रकाशित होने वाले एक अखबार ’ढहश र्ॠीरीवळरप’ ने भारत में हुए इस मूलगामी और मौलिक परिवर्तन की ओर इशारा किया है। उसका 18 मई को प्रकाशित हुआ संपादकीय भारत के सेक्युलर पंडितों की आंखें खोलने वाला है। संपादकीय का पहला परिच्छेद ही क्रिकेट की भाषा में सिक्सर मारने वाला है। अपने संपादकीय में वह कहता है।’Today, 18 May 2014, May well go down in history as the day when Britain finally left India. Narendra Modi’s victory in the elections marks the end of a long era in which the structures of power did not differ greatly from those through which Britain ruled the subcontinent. India under the congress party was in many ways a continuation of the British Raj by other means. The last of mid-nights children are now a dwindling handful of almost 70-year-olds, but it is not the independece generation that makes the difference.’ इसका भावार्थ यह है कि 18 मई 2014 का दिन इतिहास में ‘अंतत: अंग्रेजों ने भारत छो़ड दिया’ के रूप में वर्णित किया जाएगा। जिस प्रकार अंग्रेज भारत पर राज करते थे उसी प्रकार कांग्रेस ने भारत पर शासन किया। अंग्रेजों का राज अलग तरह से भारत पर चल रहा था। यह चमत्कार स्वतंत्रता के बाद की पी़ढी ने कर दिखाया है।

संपादकीय का दूसरा परिच्छेद भी इसी तरह अत्यंत महत्वपूर्ण है। उसका भावार्थ यह है कि अंग्रेजी बोलने वाले मुट्ठीभर लोगों ने भारतीय महिलाओं और पुरुषों को सांस्कृतिक रूप से कैद करके उन पर राज किया। बहुजनों की ओर देखने का उनका दृष्टिकोण कभी दया का रहा तो कभी शोषण का। उन्होंने कभी भी बहुजनों को सहभागी नहीं बनने दिया। मतदान का अधिकार तो उन्हें मिला, परंतु उनकी आवाज को दबा दिया गया। 1977 में इस आवाज का विस्फोट हुआ था परंतु वह फिर से शांत हो गया। अब एक बार पुन: यह आवाज सुनाई दी है। नरेंद्र मोदी के नाम पर लोगों ने मुहर लगाई है। नरेंद्र मोदी पिछ़डी जाति के हैं। पहले के राजनेताओं की तरह वे अंग्रेजी नहीं बोलते। उनका सेक्युलर और समाजवादी परंपरा से कोई संबंध नहीं है। एक नवीन भारत का उदय हो रहा है।

’ढहश र्ॠीरीवळरप’ का संपादकीय प़ढने के बाद मुझे सर्वप्रथम मा. सुदर्शनजी का स्मरण हुआ। वे संघ बौद्धिक वर्गों में और सार्वजनिक भाषणों में कई बार एक विषय रखते थे कि हमारे देश पर मार्क्स-पुत्र और मैकाले-पुत्र राज कर रहे हैं। देश पर काले अंग्रेजों का राज है। एक ही देश में दो देश हैं। एक भारत और दूसरा इंडिया। इंडिया के लोग अंग्रेजी बोलते हैं। वे पाश्चात्य देशों की नकल करने वाले हैं। भोगवादी हैं। ऐसे लोगों को सुदर्शनजी युरांडी अर्थात यूरोप की नकल करने वाले कहते थे। ‘सन 2013-14 में युग परिवर्तन होगा‘, यह वाक्य वे इतनी बार कह चुके थे कि कार्यकर्ता ऊब गए थे। यह प्रश्न अनेक कार्यकर्ताओं के मन में उठता था कि सुदर्शनजी ऐसा क्यों कह रहे हैं। सन 2014 में हुए झरीरवळसा ीहळष के कारण सुदर्शनजी की बात पूर्णत: सत्य निकली। इसे कहते हैं दूरदृष्टि। उस समय मेरी तरह ही कई लोगों को यह बात समझ में नहीं आई। हमारी विचारशक्ति की मर्यादा खुलकर सामने आ गई।

सुदर्शनजी ने जो कहा वही ’ढहश र्ॠीरीवळरप’ के संपादक को कहना प़डा। भाषा में भी कोई फर्क नहीं था। सुदर्शनजी की भाषा में कहा जाए तो अब युरांडपंथी कहेंगे कि ’ढहश र्ॠीरीवळरप’ का भी भगवाकरण हो गया है। एक अंग्रेज पत्रकार को भारत में हुआ परिवर्तन अच्छी तरह से समझ में आ गया। वे यह समझ चुके हैं कि अंग्रेजों का अर्थात काले अंग्रेजों का राज समाप्त होकर अब भारतीयों का राज शुरू हुआ है। सुदर्शन जी का कथन सत्य हुआ।

भारत पर पिछले दस सालों से मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी राज कर रहे थे। सोनिया गांधी को एक भी भारतीय भाषा नहीं आती। मनमोहन सिंह हिंदी नहीं पढ़ सकते। संजय बारू की किताब में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है। जिनको देश के लोगों की भाषा नहीं आती वे देश पर राज कर रहे थे। देश की भाषा न समझने का अर्थ है देश की संस्कृति न समझना। हमारी संस्कृति रामायण, महाभारत से बनी है, भगवान महावीर, गौतम बुद्ध, गुरु नानक से बनी है। राम, कृष्ण, शिव, दुर्गा भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं। यह सब भारतव्यापी हैं। इनके बिना भारत नहीं। इन प्रतीकों को समझने के लिए, भारतीय संस्कृति को समझने के लिए भारतीय भाषा का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है। भाषा न समझना भी अज्ञानता ही है। ऐसे अज्ञनी ही हम पर राज कर रहे थे।

भारतीय जनता के संबंध में उनकी भावना कैसी थी? सोनिया गांधी कभी भी अपने राजमहल को छो़डकर दिल्ली की झोप़डपट्टियों में नहीं गईं। साइकल रिक्शा चलाने वाले के दुख, कष्ट क्या हैं, यह कभी भी उन्हें पता नहीं चला। लोगों के सामने आते समय सोनिया गांधी सा़डी पहनकर आती हैं। उनकी बेटी प्रियंका भी सा़डी पहनकर आती हैं। जब वे निजी कार्यों के लिए घूमती होंगी तो उनका पोशाक क्या होता होगा? विदेशों में निजी यात्राओं के दौरान उनका पोशाक या रहन-सहन कैसा होगा? वह कभी भी भारतीय नहीं होगा।

शशी थरूर मंत्री बने, उन्हें रहने के लिए बंगला नहीं मिला। कुछ समय तक वे हॉटल में रहे। दूसरे दर्जे से यात्रा करना उन्हें इतना अपमानजनक लगा कि उन्होंने इसे कैटल क्लास अर्थात जानवरों का दर्जा कह दिया। अंग्रेजी भाषा बोलने वालों की नजरों में हम जानवर ही थे। जनवरों को चारा-पानी देना प़डता है। यह चारा-पानी देने की व्यवस्था उन्होंने अन्न सुरक्षा के नाम पर कर दी। अन्न की आवश्यकता सभी को होती है। परंतु भारतीय संस्कृति मेहनत की रोटी खाने में है, मुफ्त की रोटियां तो़डने में नहीं। लोगों को मेहनत करने का अवसर देकर उनके हाथ में पैसे देना आवश्यक था। परंतु उनमें तो हम आप पर उपकार कर रहे हैं, आपका पालन-पोषण कर रहे हैं यह अभिमान झलकता था। इसे ही काले अंग्रेजों की भावना कहा जाता है।
मणिशंकर अय्यर काले अंग्रेजों के शिरोमणि हैं। आदरभाव से उनका उल्लेख करना माता सरस्वती का अपमान करने जैसा है। इस काले अंग्रेज ने अंडमान की सेल्युलर जेल में लगाई गई स्वातंत्र्यवीर सावरकर की काव्य पंक्तियों को हटा दिया। इस गुनाह के लिए उस निकृष्ट को सेल्युलर जेल की धानी में कोल्हू का बैल बनाकर भेज दिया जाना चाहिए। चिदंबरम वित्तमंत्री थे, परंतु वे गलती से भी किसी गरीब बस्ती में नहीं गए। गरीबों के अर्थशास्त्र को उन्होंने कभी समझा ही नहीं।

इन अंग्रेजों की औलादों का राज अब समाप्त हो गया है। अब वह दुबारा नहीं आएगा। इंडिया अब समाप्त हो रहा है। भारत का उदय हो रहा है। दुनिया अब यह देख भी रही है और समझ भी रही है। अमेरिका ने नरेंद्र मोदी को वीसा देने से मना कर दिया था। बराक ओबामा ने नरेंद्र मोदी को फोन किया और उन्हें अमेरिका आने का न्यौता दिया। व्हाइट हाउस का निमंत्रण कुछ इस प्रकार है ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ काम करने के क्षण का हम इंतजार कर रहे हैं। भारत और अमेरिका के बीच अनेक विषयों पर द्वीपक्षीय सहयोग ब़ढाने की आवश्यकता है।’ अमेरिका के विदेश मंत्री जॉन एफ कैरी ट्विटर पर कहते हैं कि हम आपके साथ काम करने के लिए उत्सुक हैं। विश्व के सबसे ब़डे लोकतांत्रिक देश के साथ समृद्धि और सुरक्षा हेतु सहकार्य करने में हमें खुशी होगी।

विश्व के प्रमुख देशों ने नरेंद्र मोदी की विजय को संज्ञान में लिया है। अमेरिका के बाद कनाडा के प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर ने मोदी का अभिनंदन किया है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरून ने भी अभिनंदन किया। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री टोनी अबॉट ट्विटर पर कहते हैं कि मैंने नरेंद्र मोदी से फोन पर बात की, उनका अभिनंदन किया। ऑस्ट्रेलिया और भारत के संबंध अधिक मजबूत करने की ओर ध्यान देने का समय आ गया है। इजराइल के प्रधानमंत्री बेनजामिन नेत्तानहू कहते हैं कि साथ में काम करना अच्छा लगेगा और दो देशों के संबंध दॄढ करने चाहिए।

विदेशों के अलग-अलग समाचार पत्रों ने नरेंद्र मोदी की विजय को महत्व दिया है। न्यूयार्क टाइम्स कहता है, ‘कांग्रेस ने पराजय स्वीकार कर ली है। भारत का मोदी को समर्थन तथा मोदी की विजय राहुल गांधी की अपमानजनक हार है। प्रियंका लाओ, कांग्रेस बचाओ के नारे दिल्ली में लगाए जा रहे हैं। वाशिंगटन पोस्ट अपने लेख में कहता है कि हिंदू राष्ट्रवादी नरेंद्र मोदी की भारतीय चुनावों में विजय हुई है। खलिज टाइम्स ने भी मोदी की विजय का स्वागत किया है। सी.एन.एन. अपने समाचार में कहता है कि गुजरात की विकास दर चीन जैसी है। अन्य राज्यों को उससे ईर्ष्या होती है। विकास का गुजरात मॉडल अर्थात मूलभूत सुविधाएं, शहरीकरण और लालफीताशाही की उपेक्षा।

मोदी की ऐतिहासिक जीत पर ब्रुकिंगस इंडिया प्रोजेक्ट संस्था ने अमेरिका में 19 मई को विशेषज्ञों की एक बैठक बुलाई थी। इनमें विभिन्न विशेषज्ञों ने जो विचार सामने रखे वे कुछ इस प्रकार थे। तन्वी मदान संस्था की डायरेक्टर हैं। वे कहती हैं, ‘ये चुनाव परिणाम चार कारणों से ऐतिहासिक हैं। 1) 1977 से शासन कर रही सरकार को हटाकर नया शासन आएगा। 2) भाजपा को बहुमत मिलने के कारण गैर कांग्रेसी और बिना गठबंधन की सरकार का शासन होगा। 3)एक राज्य का मुख्यमंत्री देश का प्रधानमंत्री बनेगा, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। 4)देश में पहली बार स्वतंत्रता के बाद जन्मा व्यक्ति प्रधानमंत्री होगा।
कार्नेजी एंडोवमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के मिलान वैष्णव ने कहा, ‘66% मतदान हुआ। इस पर गर्व होना चाहिए। इसके कारण राजनैतिक नक्शा बदला है। बीजेपी और एनडीए को 336 सीटें मिलीं। यह आंक़डा मस्तिष्क को सुन्न करने वाला था। यूपीए को केवल 60 सीटें मिलीं। यह उनके लिए हताशा जनक बात थी। भाजपा के विजय के तीन कारण हैं। 1)शहरी भागों से समर्थन में वृद्धि। 2) युवकों का मतदान 3) ओबीसी मतदान में वृद्धि।

अमेरिकन एंटरप्राइजेस के सदानंद धुमे ने भी चार मुद्दे बताए। 1)यह चुनाव भारत के पहले अध्यक्षीय चुनाव थे, जो नरेंद्र मोदी चाहिए या नहीं, इस मुद्दे पर ल़डे गए थे। 2) भारत की राजनैतिक संरचना निर्णायक रूप से दाहिनी ओर झुक गई। (अर्थात हिंदुत्व की ओर मतदान हुआ। समाज के सभी स्तरों से और भौगोलिक दृष्टि से सभी ओर से एनडीए को मतदान किया गया। 3) कांग्रेस और गांधी परिवार के सामने संकट ख़डा हो गया है। कांग्रेस को 44 सीटें मिली हैं उसे विपक्ष का दर्जा भी नहीं मिल पाया। कांग्रेस के नेतृत्व के संदर्भ में गंभीर संकट ख़डा हो गया है। 4) कम्युनिस्ट पार्टियां लगभग धुल चुकी हैं। उनके अस्तित्व के सामने भी संकट ख़डा है।

जर्मन मार्शल फंड के जयशंकर ध्रुव ने विदेश नीति से संबंधित भाषण दिया। उन्होंने कहा, ‘मोदी का यह मत है कि विदेश नीति की शुरुवात देश में ही होती है। भारत की अर्थव्यवस्था सशक्त हुई तो उसकी विदेश नीति भी सशक्त होगी। अत: भारत का पहला कदम भारत को मजबूत करना होगा।’

अंत में भारत का दीर्घकालीन मित्र रूस भी मोदी की विजय की ओर किस दृष्टि से देखता है यह भी समझना आवश्यक है। पीटर टॉपीचकनाव कहते हैं कि भारत के संसदीय चुनावों ने भारत का भूदृष्य बदल दिया है। रूस को यही अपेक्षित था। 2004 से 2014 तक रशिया ने भारत से मधुर संबंध रखने का प्रयत्न किया। रशिया के भारतीय राजदूत अलेक्जेंडर कडालिन लाल कृष्ण आडवाणी के 85वें जन्मदिन के अवसर पर उनसे मिलने गए थे। तब उन्होंने आडवाणी को झुककर प्रणाम किया। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने भी नरेंद्र मोदी की विजय के लिए उनका अभिनंदन किया है। सन 2000 में वाजपेयी-पुतिन के बीच परस्पर फायदे का करार किया गया था। इस आधार पर भविष्य में भी दोनो देशों के बीच सहकार्य निर्माण किया जा सकेगा। ऐसा करने के लिए दोनों देशों के राजनेताओं की इच्छाशक्ति और अकादमिक व नागरी संस्थाओं में योग्य परिवर्तन करना आवश्यक है। ये नरेंद्र मोदी और भाजपा की विजय पर की गई थो़डी सी प्रतिक्रियाएं हैं। विश्व की राजनीति जमीन पर पैर रखकर होती है। नवीन भारत ख़डा हो रहा है, इस पर पूरी दुनिया बारीक नजर रखे हुए है। अत: मुझे लगता है कि हार के कारण खिसियाए हुए हमारे यहां के पंडित क्या कहते हैं, इसकी अपेक्षा दुनिया भारत की ओर किस दृष्टि से देखती है, यह अधिक महत्वपूर्ण है।

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