नेहरू से नरेंद्र तक

यह एक संयोग ही कहा जाएगा कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू की पचासवीं पुण्यतिथि की पूर्व संध्या में भारत की प्रथम शुद्ध गैर-कांग्रेसी सरकार के मुखिया के रूप में श्री नरेंद्र मोदी का शपथ ग्रहण समारोह भारत के राजनीतिक इतिहास की यह एक युगांतरकारी घटना थी। सामान्य रूप से किसी को यह अहसास भी नहीं होगा कि भारत का यह सोलहवां आम चुनाव इस तरह का जनादेश देगा, जिसमें भारत पर नेहरू-गांधी परिवार के शासन की समाप्ति का आलेख लिखा होगा। भारत की स्वतंत्रता के बाद से निरंतर 66 वर्षों तक (बीच के कुछ वर्षों को छोड़कर) शासन करने वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को भारत की जनता इस प्रकार से नकार देगी।

16 मई से पहले इसकी कल्पना किसी को नहीं थी। तथापि, 26 मई, जिस दिन भारत के पंद्रहवें प्रधानमंत्री के रूप में श्री नरेंद्र मोदी ने शपथ ली थी। वह देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की पचासवीं पुण्यतिथि की पूर्व संध्या थी। यह मात्र संयोग था; तथापि वैचारिक और सैद्धांतिक मतभेदों के बावजूद प्रधानमंत्री के रूप में श्री नेहरू की भावाभिव्यक्ति की साम्यता अवलोकनीय है।

उस दिन एक और उल्लेखनीय बात यह भी हो रही थी कि देश में पहली बार एक ऐसी गैर-कांग्रेसी सरकार और वह भी ऐसे दल की सरकार भारत के शासन-प्रशासन की कमान संभाल रही थी, जिसका जन्म भारत की आजादी के बाद हुआ है और जिस सरकार के अधिकांश मंत्री भारत की आजादी के बाद पैदा हुए हैं। अपने चुनाव अभियान के दौरान श्री नरेंद्र मोदी ने हमेशा जनता का ध्यान इसी ओर आकृष्ट किया था कि पहली बार नई सरकार का गठन ऐसे लोगों द्वारा होगा जिनका जन्म आजादी के बाद के वर्षों में हुआ है। श्री मोदी ने आगे यह भी कहा था कि उन लोगों को शायद भारत की आजादी के लिए संघर्ष करने और अपने जीवन को न्यौछावर करने का अवसर न मिला हो, लेकिन आजाद भारत को श्रेष्ठ, समृद्ध भारत बनाने के लिए कुछ कर दिखाने का अवसर अवश्य मिलेगा। श्री मोदी का वह स्वप्न उक्त कथन उस दिन आकार ले रहा था जिस दिन पचास वर्ष पहले पं. जवाहर लाल नेहरू अपने महाप्रयाण की तैयारी कर रहे थे। अत: टेलीविजन पर श्री नरेंद्र मोदी को भारत के पंद्रहवें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेते देखते हुए ही देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू का स्मरण स्वाभाविक ही था।

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने भारतीय राजनीति तथा शासन प्रणाली पर अमिट छाप छोड़ी है। उनका व्यक्तित्व, मोहक अंदाज, बच्चों में चाचा नेहरू के रूप में लोकप्रिय, साहित्य, इतिहास तथा चिंतक के रूप में प्रतिष्ठित पं. नेहरू ने महात्मा गांधी की छत्रछाया में सरदार पटेल के साथ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व किया था और भारतीय संविधान के निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दिया था जिसके आधार पर ही पिछले 66 वर्षों से भारत की शासन व्यवस्था निर्बाध रूप से चल रही है। संविधान की इस सर्वोच्चता को श्री नरेंद्र मोदी ने अपने कई वक्तव्यों में स्वीकार भी किया है। अपने चुनाव प्रचार के दौरान भी श्री नरेंद्र मोदी हमेशा उसी भारत के संविधान के आधार पर भारत के शासन को चलाने का संकल्प लेते हुए दिखाई देते थे जिसकी प्रस्तावना पं. नेहरू ने लिखी थी। संविधान की इसी संक्षिप्त प्रस्तावना को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णयों में भारतीय शासन-प्रशासन की प्राणशक्ति माना है। भारत की संविधान सभा ने इसे 26 नवंबर, 1949 को स्वीकार किया था। यह भारतीय संविधान की प्रस्तावना ही है, जिसमें भारत सरकार के लक्ष्य और उद्देश्य स्पष्ट किए गए हैं। श्री नेहरू जी द्वारा लिखित भारत के संविधान की प्रस्तावना घोषित करती है- हम भारत के लोग, भारत को सर्व प्रभुसत्ता संपन्न लोकतांत्रिक, पंथनिरपेक्ष, समाजवादी गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके सभी नागरिकों को न्याय, आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक स्वतंत्रता, विचार अभिव्यक्ति, विश्वास, पंथ और उपासना, पद और अवसर की समानता तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा एवं राष्ट्र की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने वाली बंधुता के लिए एतदर्श इस संविधान को हम अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं। तथापि, इस प्रस्तावना में पंथनिरपेक्ष तथा समाजवादी शब्द नेहरू ने नहीं बाद में श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा जोड़े गए थे।

श्री मोदी द्वारा अपने चुनाव अभियान के बीच मंत्र ‘सबका विकास और सबका साथ’ की बार-बार चर्चा संविधान की प्रस्तावना में वर्णित भावना की ही अभिव्यक्ति थी जिसमें भारत के लोगोें को न्याय, स्वतंत्रता, समानता तथा बंधुता की गारंटी की बात कही गई है। यह बात अलग है कि पं. नेहरू स्वयं तथा बाद में उन्हीं की वंश परंपरा के लोग, जिन्होंने 66 वर्षों तक देश का शासन चलाया, उक्त घोषणा पर अमल करने में बहुत हद तक विफल रहे। आजादी के 67 साल के बाद का एक रोचक तथ्य देखिए कि श्री नरेंद्र मोदी की विरासत में मिली देश में गरीबों की संख्या आज उतनी ही है जितनी श्री नेहरू के समय देश की कुल जनसंख्या थी अर्थात 36 करोड़। आज निरक्षरों की संख्या भी लगभग उतनी ही है, जितनी आजादी के समय देश की जनसंख्या थी। गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा, बेरोजगारी तथा चिकित्सा सुविधओं का अभाव आज भी देेश की सबसे गंभीर समस्या है और सामाजिक स्तर पर भी संप्रदाय, पंथ, जाति, लिंग के आधार पर भेदभाव वैसा ही जैसा आजादी की प्राप्ति के समय था। समाज की इस अवस्था का उल्लेख श्री नेहरू ने प्रथम स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से दिए गए अपने भाषण में किया था और तब उस समय उन्होंने देश के प्रत्येक गरीब की आंखों से आंसू पोछने का संकल्प लिया था।
इसी प्रकार 14 अगस्त, 1947 की आधी रात को संविधान सभा के सदस्यों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था- ‘बहुत वर्ष हुए हमने अपनी नियति का साक्षात्कार किया था और अब उस संकल्प को पूरा करने का अवसर आ गया है। पूरे तौर पर या जितना चाहिए उतना तो नहीं, फिर भी बहुत हद तक, जब आज आधी रात के घंटे बजेंगे, जब सारी दुनिया सो रही होगी, उस समय भारत जागृत होकर अपना जीवन और स्वतंत्रता प्राप्त करेगा। एक ऐसा क्षण जो इतिहास में कभी-कभी आता है, उस समय हम पुराने को छोड़ कर नए जीवन में प्रवेश करते हैं। एक युग का अंत होता है तब राष्ट्र की चिर दलित आत्मा का उद्धार होता है। अंत में उन्होंने कहा था कि यह उचित है कि इस अविस्मरणीय क्षणों में हम भारत और उसके लोगों के प्रति किंतु उससे भी बढ़कर मानवता के हित के लिए स्व-अर्पण की शपथ लें।

यही बात 15 अगस्त 1947 को श्री नेहरू ने प्रेस को संबोधित करते हुए भी कही थी। उन्होंने कहा था, ‘भविष्य हमें संकेत कर रहा है कि हमें किस दिशा में चलना है। हमारा संकल्प है, भारत के मजदूरों, किसानों और आम आदमी को स्वतंत्रता और उसे विकास का अवसर प्रदान करना, देश में व्याप्त अज्ञान, गरीबी और बीमारी से लोगों को मुक्त करना, एक समृद्ध, लोकतांत्रिक तथा प्रगतिशील समाज के लिए ऐसे सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक तंत्र का निर्माण करना, जहां जबको न्याय मिले और हर पुरुष और महिला अपने जीवन को भरपूर जी सके’। कहने की आवश्यकता नहीं कि श्री नरेंद्र मोदी ने भी अपनी सरकार की प्राथमिकताओं में अपनी सरकार को गरीबों की, गरीबों के लिए ही समर्पित बताया था। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी सरकार युवाओं के सपनों को साकार करने वाली और महिलाओं के सम्मान को अक्षुण्ण बनाने के लिए प्रतिबद्ध होगी। नरेंद्र ने यह भी कहा कि देश का आम आदमी सम्मानजनक जीवन जी सके, भय, भूख और भ्रष्टाचार से मुक्त भारत स्वयं समर्थ और समृद्ध बने, यह उनका प्रथम कर्तव्य होगा। 26 मई 2014 और 15 अगस्त, 1947 के दोनों प्रधानमंत्रियों की शब्दावलियों में कोई बहुत अंतर नहीं है। कारण यही है कि 1947 से लेकर 2014 तक के 66 वर्षों में देश जन जीवन में बदलाव लाने और समाज को खुशहाल बनाने के लिए ईमानदार प्रयत्नों का सदैव अभाव रहा। इसलिए भारत के भाग्य को संवारने की जो बात 1947 में श्री नेहरू ने कही थी, वही बात फिर से वर्ष 2014 में श्री नरेंद्र मोदी को दोहरानी पड़ रही थी।

20 मई को जब श्री नरेंद्र ने अपने विशिष्ट अंदाज और अभिव्यक्ति से पूरे देशवासियों को आंदोलित किया था। संसद के केंद्रीय कक्ष में भाजपा तथा राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के नव निर्वाचित सांसदों की बैठक संसदीय दल का नेता चुनने के लिए बुलाई गई थी। श्री नरेंद्र का संसद भवन में आगमन हुआ और उन्होंने संसद की चौखट पर जब अपना माथा टेक कर संसद को प्रणाम किया, वह क्षण भारतीय गणतंत्र एवं लोकतंत्र के लिए अविस्मरणीय बन गया था। संभवत: भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास में यह पहली बार था जबकि संसद के नेता के रूप में चुने जाने से पहले किसी राजनेता ने देश की लोकतांत्रिक परंपरा को इस प्रकार अपनी श्रद्धा निवेदित की हो। इसी संदर्भ में 67 वर्ष पहले संविधान सभा में लोकतांत्रिक गणराज्य की महत्ता की व्याख्या करते हुए नेहरू ने कहा था कि हम तब तक लोगों की आशा और आकांक्षा को पूरा नहीं कर सकते और देश के सामान्यजन को न्याय, समानता स्वतंत्रता का अवदान नहीं दे सकते, जब तक हम पूरी तौर पर लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नहीं होंगे। उस समर्पण और प्रतिबद्धता को 67 वर्षों के बाद संसद की चौखट पर अपना माथा टेक कर नरेंद्र रेखांकित कर रहे थे और देश की जनता उनको साधुवाद दे रही थी। नेहरू और उनके शब्द हमारे स्मृतिपटल पर उभर रहे थे।

संसदीय दल के नेता के रूप में नव निर्वाचित सांसदों को नरेंद्र का अभिभूत करने वाला संबोधन भी हमें नेहरू की याद दिला रहा था। नरेंद्र कर रहे थे भारत की जनता ने एक बड़ी जिम्मेदारी हम सबको दी है, जिसे पूरा करना जनता के विश्वास को जीत कर आए हुए हम सब लोगों का कर्तव्य है। स्वतंत्रता तभी सार्थक होगी, जब लोगों को सुराज और सुशासन मिलेगा। लोकसभा के चुनाव में जनता ने अपना जो प्रचंड विश्वास दिया है, वह सकारात्मक है और विकास के लिए है। यह जनादेश एक श्रेष्ठ, समृद्ध और स्वावलम्बी भारत के निर्माण के लिए है। हम सबको अपनी मातृभूमि से जो कुछ मिला है उस ऋण को चुकाने और देश की सेवा करने का हम सबको अवसर मिला है यह हमारा भाग्य है। वे आगे कह रहे थे, ‘मां की सेवा करना क्या मां पर अहसान करना होता है … कतई नहीं, अच्छी संतान वह है जो समर्पित भाव से अपनी मां की सेवा का संकल्प कर स्वयं धन्यता का अनभुव करे। भारत हमारी मां है और उसकी समर्पण भाव से सेवा करना और उसे विश्व पटल के सर्वोच्च आसन पर स्थापित करना हम सभी भारतीयों का कर्तव्य है। उस समय श्री नरेंद्र मोदी का एक एक शब्द भाजपा के सभी नव निर्वाचित सांसदों को सेवा का सार्थक संदेश दे रहा था। एक अप्रतिम भारत के निर्माण करने की अदम्य आकांक्षा सभी के मन में हिलोरे ले रही थी। तालियों की गड़गड़ाहट थमने का नाम नहीं ले रही थी और दूरदर्शन पर यह दृश्य देखने वाले करोड़ों भारतवासी भी सजल नेत्रों से नरेंद्र की वक्तृता से भाव विभोर हो रहे था। ऐसा ही कुछ देश के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू ने भी यही कहा था कि हमें कठिन परिश्रम करना है और हम तब तक चैन से नहीं बैठेंगे, जब तक हम अपने संकल्प को पूरा नहीं कर लेते। हमें इस महान देश के नागरिक के रूप में, इस देश के सामान्य लोगों के भाग्य को बदलने के लिए अनथक प्रयत्न करना होगा और अपने जीवन में अपने कार्यों से उच्च मानदंडों को स्थापित करके एक नए भारत का निर्माण करना है, भारत माता हमारी ममतामयी मातृभूमि है, जो पुरातन, सनातन तथा चिर नूतन है। हम सबके लिए यह गौरव के क्षण हैं जब हम विनम्र भाव से स्वयं को अपनी मातृभूमि की सेवा करने के लिए समर्पित कर रहे हैं।

नेहरू से नरेंद्र तक की यह 66 वर्षों की भारतीय लोकतंत्र की यात्रा अद्भुत है। वैचारिक और सैद्धांतिक मतभेदों के बावजूद दोनों प्रधानमंत्रियों के वक्तव्य में मातृभूमि की सेवा का जो संकल्प दृष्टिगोचर होता है, वह महत्वपूर्ण है। पं. नेहरू तथा उसके बाद अधिकांश समय उनकी वंश परम्परा के लोगों द्वारा भारत के शासन में चाहे जितनी भी खामियां रही हों, राजनीतिक मूल्यों और कार्य प्रणाली में कितना भी अवमूल्यन हुआ हो, किंतु एक बात निश्चित है कि हमारा लोकतंत्र अक्षुण्ण रहा और इस बार 16 वीं लोकसभा के चुनावों में वह अधिक मजबूत होकर उभरा है। जब लगभग 60% लोगों नें शांतिपूर्वक मतदान करके एक नए इतिहास की रचना की है और सत्ता का अद्भुत परिवर्तन किया है।

अब श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में शुद्ध भारतीय विचारधारा पर आधारित सुशासन की श्रेष्ठता और सफलता का निर्णय तो भविष्य करेगा, किंतु जो सत्य है वह यह कि नेहरू से नरेंद्र तक की भारतीय लोकतंत्र की यह यात्रा भारत की जनता के जनतांत्रिक परंपराओं में अविचल विश्वास की विजय गाथा है, जिसे केवल विनय भाव से प्रणाम किया जा सकता है।

Leave a Reply