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गोवंश आधारित शाश्वत खेती और अर्थव्यवस्था

गोवंश आधारित शाश्वत खेती और अर्थव्यवस्था

by गिरीश शाह
in अगस्त-२०२१, संस्था परिचय, सामाजिक
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गोवंश आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए समस्त महाजन संस्था और भारत सरकार के जीव जंतु कल्याण बोर्ड देश भर में गोपालन और गोवंश के संरक्षण व संवर्धन के लिए विशेष तौर पर कार्यरत है और भारत के पूर्वजों की परम्परा व धरोहर को आगे बढ़ा रही है। समस्त महाजन संस्था के नेतृत्व में जैन धर्म से जुड़े बहुतायत लोग जीवदया मामले में उल्लेखनीय कार्य कार्य रहे है जो समाज के लिए अनुकरणीय है और एक आदर्श भी है।

गाय और भारत का आदिकाल से अटूट नाता रहा है। गोवंश के महत्व को सर्वप्रथम दुनिया में भारत के ऋषि मुनियों ने पहचाना और उन्हें योग्य आदर सत्कार दिया। गोवंश का लाभ प्रत्येक भारतीय को मिले इसलिए गाय को धार्मिक मान्यता भी दी गई। भारत में धर्म सर्वोपरि माना जाता रहा है, जो मानवता के हित में हो और धारण करने योग्य हो उसे धर्म कहा जाता है। गोवंश के वैज्ञानिक गुणों का लाभ भारतीयों को सदैव मिलता रहे इसलिए उसे धर्म से जोड़ दिया गया। हालांकि हमारे देश में गाय को धर्म का ही दूसरा रूप मानकर उसकी श्रद्धापूर्वक पूजा भी की जाती है। गोवंश आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए समस्त महाजन संस्था और भारत सरकार के जीव जंतु कल्याण बोर्ड देश भर में गो पालन और गोवंश के संरक्षण व संवर्धन के लिए विशेष तौर पर कार्यरत है और भारत के पूर्वजों की परम्परा व धरोहर को आगे बढ़ा रही है। समस्त महाजन संस्था के नेतृत्व में जैन धर्म से जुड़े बहुतायत लोग जीवदया मामले में उल्लेखनीय कार्य कार्य रहे है जो समाज के लिए अनुकरणीय है और एक आदर्श भी है।

बंजरभूमि और खाद्यान्न संकट

रसायन युक्त खाद से अधिकतर भूमि बंजर होती जा रही है। यदि रासायनिक खाद पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया तो भारत की सभी खेती की जमीन बंजर हो जाएगी और हमारे सामने खाद्यान्न का संकट खड़ा हो जाएगा। सवा अरब की आबादी के लिए भोजन का प्रबंध कैसे होगा ? इतने गंभीर समस्या के प्रति हम उदासीन बने हुए है। क्षणिक लाभ के लिए खेतो में अधिक मात्रा में यूरिया का उपयोग करते है जिससे जमीन का स्वास्थ्य धीरे-धीरे बद से बदतर होता जा रहा है और उसकी उपज क्षमता घटती जा रही है। जो आनेवाले समय में खतरे की घंटी है।

रसायन मुक्त जैविक खेती ही एकमात्र उपाय

गाय के गोबर द्वारा जैविक खेती करने से पुन: बंजर भूमि को स्वस्थ बनाया जा सकता है और खेती के व्यवसाय के सुनहरे दिन वापस आ सकते हैं। भारत में खेती का व्यवसाय अति प्राचीन है। लगभग 5 हजार वर्षों से यह व्यवसाय अविरत जारी है, इसका मतलब व्यावहारिक दृष्टि से यह मुनाफे में चलता होगा इसलिए भारत कृषि प्रधान देश आज भी बना हुआ है। स्वस्थ भारत मिशन को साकार करने के लिए यह अनिवार्य है कि हमारे देश में जैविक पारम्परिक खेती को बढ़ावा दिया जाए। यही एकमात्र उपाय है जिससे किसानों के फिर से अच्छे दिन आ सकते है।

भारत की शाश्वत खेती परंपरा

1960 तक हमारी कृषि व्यवस्था आत्मनिर्भर थी। खेती के सारे काम गोवंश आधारित होते थे। बैलगाड़ी से जमीन की निगरानी की जाती थी। ट्रैक्टर के स्थान पर बैलों से खेती का काम लिया जाता था। घास ज्यादा मात्रा में उपलब्ध होने से पशुओं के लिए चारा पानी की कोई दिक्कत नहीं थी। गौचरण भूमि नंदन वन जैसी थी। जहां पर गोवंश चराने में असीम शांति का अनुभव होता था। गोवंश की संख्या अधिक होने से गोबर का खीद हर साल घर से ही उपलब्ध हो जाती थी। जैविक खेती से अच्छी किस्म की फसलें उत्पन्न होती थी। उसके ही बीज से पुन: खेती की जाती थी। फसलों में कीटनाशकों का छिडकाव नहीं किया जाता था। आवश्यकता  होने पर गोमूत्र, तम्बाखू, छाछ, हल्दी जैसे घरेलू चीजों का औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता था। कुल मिलाकर कहा जाए तो खेती के लिए बाहर से कोई भी साधन की आवश्यकता नहीं होती थी। यदि कभी अकाल का भी सामना करना पड़ता तो किसान आसानी से अपना गुजर बसर कर लेते थे और अगले वर्ष फिर से खेती के कामों में लग जाते थे। खेती के लिए अलग से उन्हें पूंजी की आवश्यकता नहीं होती थी इसलिए कहा जाता है कि भारतीय खेती शाश्वत होती थी।

गोबर से खाद, बायोगैस, जनरेटर आदि उत्पाद संभव

मैंने अपने एक कार्यक्रम के दौरान सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि देशी गाय के गोबर के महत्व को देखते हुए हमारे पूर्वजों ने बहुत ही पहले कह दिया था कि ‘गोमय वसते लक्ष्मी’ अर्थात गोबर में लक्ष्मी का वास होता है। जिसके सही उपयोग से धन लाभ भी अर्जित किया जा सकता है। जो आज के समय में 100 प्रतिशत सत्य साबित हो रहा है। गोबर से खाद बनाई जा सकती है उससे जैविक खेती की जा सकती है। बैलों से खेती के काम लिए जा सकते हैं। इससे खेती के लिए किसानों को पैसों की आवश्यकता नहीं होती। गोबर से बायोगैस बनाया जाता है जिससे ईंधन प्राप्त होता है। रोज का ताजा गोबर पानी में मिलाकर बायोगैस के इनलेट में डालने से मीथेन गैस ईंधन के लिए आसानी से प्राप्त होती है। यह गैस अत्यंत प्रमाणिक व सुरक्षित है। इसमें किसी प्रकार की दुर्गन्ध भी नहीं आती और पर्यावरण के लिए भी अनुकूल है, इससे प्रदूषण भी नहीं होता। सनद रहे कि सभी ग्रामीण क्षेत्रों में और खेतों के आसपास जो बस्तियां होती हैं, वहां इंधन की बड़ी किल्लत होती है। प्रत्येक घर में रसोई बनाने के लिए बड़े पैमाने में लकड़ी का उपयोग किया जाता है। जिससे पर्यावरण की क्षति होती है। साथ ही ईंधन जुटाने के लिए परिवार के एक व्यक्ति का बहुत समय व्यर्थ में बर्बाद हो जाता है। बायोगैस से समय, मानवशक्ति और लकड़ियों की बचत होगी। चूल्हे के धुंए से महिलाओं की आंखों को होनेवाली पीड़ा से भी बचाव होगा। जिन घरों में 20 से अधिक गोवंश होगा उनके घर में बायोगैस पर जनरेटर भी चल सकेगा। उसमें 20% डीजल और 80% मीथेन गैस का उपयोग किया जाता है। कई जगहों पर इसका सफल प्रयोग किया गया है।

बायोगैस आधारित बिजली का दिया (लैंप)

देश में आज भी अनेक राज्यों में लोड शेडिंग की जाती है जिससे छात्रों को पढाई के लिए दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। उर्जा क्षेत्र में भारत आज भी पूरी तरह से आत्मनिर्भर नहीं बना है। जहां पर आज भी बिजली की कटौती की जाती है उन स्थानों पर बायोगैस पर चलने वाला दिया लगाना लाभदायक पर्याय है। इसके अलावा गोवंश के अनेक प्रकार के उत्पाद है जो आज बाजार में बहुतायत संख्या में आसानी से उपलब्ध है। एक तरह से देखा जाये तो गोवंश आधारित पूरी अर्थव्यवस्था भी फिर से निर्मित की जा सकती है, जिससे प्रत्येक परिवार आत्मनिर्भर हो सकते है। भारत के हर गांव को गोवंश के आधार पर गोकुल बनाने की जरूरत है जहां पर दूध, दही की नदियां बहे और मक्खन, पनीर, घी, आदि गौत्पद का सेवन कर हमारे बच्चे बड़े होकर स्वस्थ भारत और समर्थ भारत का सपना साकार कर सके।

 

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Tags: agriculturegovanshheritagehistoricalindependence dayindian economynationfirstparyavaranpragatirashtrasampadkiyasanskritispeechswabhashaswadeshitirangatrendingvikasvirasat

गिरीश शाह

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