आज फिर से जरूरत है उसी देश भक्ति और देश प्रेम की जिसमें आक्रोश था! गुस्सा था! गुलामी की जंजीरों को उखाड़ फेंकने का जज्बा था l हालांकि विद्रोह की आग तो 1857 से भड़कनी शुरू हो गई थी, और तमाम क्रांतिकारियों ने आजादी के इस यज्ञ में अपने जीवन की आहुतियां देनी शुरू कर दी थी। जैसे-जैसे देश के वीर सपूत शहीद होते जाते यह आग और भड़कती जाती। 1919 के जालियावाला बाग के जघन्य हत्याकांड के वीभत्स दृश्य को देख युवाओं का खून खोला उठा, और उनके अंदर बदले की भावना प्रज्वलित हो उठी। इसी आक्रोश ने आग में घी का काम किया।
युवाओं के लिए यह काफी लज्जाजनक था, कि मात्र 40,000 अंग्रेज 35 करोड़ हिंदुस्थानियों पर अपनी जुल्म की लाठी चला रहे हैं। और हम उसे सहते जा रहे हैं ….यहीं से क्रांति की आग ने विकराल रूप धारण किया और 1943 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की “आजाद हिंद फौज” ने आजादी की इस लड़ाई को अंतिम मुकाम पर पहुंचाया “आजाद हिंद फौज” के 60,000 सैनिकों ने युद्ध भूमि में अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया। 26,000 सैनिक इस युद्ध में शहीद हुए। आखिर अंग्रेजों को हमारा देश छोड़कर जाना पड़ा।
15 अगस्त 1947 के दिन हमारे देश को अंग्रेजों की क्रूरता से मुक्ति मिली मगर हमारे अपने ही देश में “बलात्कारियों की कौम ” से हमारी मासूम बेटियों को कब मुक्ति मिलेगी। काश बलात्कारियों कि इस कौम ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के उन दर्दनाक पन्नों को पढ़ा होता जिन्हें पढ़कर रूह कांप उठती है कि किस तरह 9 अगस्त 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का शंखनाद होने के बाद 60,000 आंदोलनकारियों को पकड़ लिया गया।
हजारों को जेलों में ठूंस दिया गया। अनगिनत लोगों पर गोलियां चलाई गई। अमानुषिक यातनाएं सहते हुए देश के आजादी का इतिहास रचा। आज उन शहीदों की आत्माएं कितनी तड़पती होंगी, जब बलात्कारियों के चंगुल में छटपटाती धरती मां की मासूम बेटियों की चीखें उन तक पहुंचती होंगी। क्या यही श्रद्धांजलि है.. हमारी अपने शहीदों के लिए ? कि उनके त्याग और बलिदान पर खड़ी आजादी का इस तरह दुरुपयोग हो रहा है। हम स्वतंत्र भारत में अपनी बेटियों की रक्षा भी नहीं कर पा रहे।
“नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो “की रिपोर्ट के मुताबिक 2001 में जहां देशभर में बलात्कार के कुल 16075 मामले दर्ज हुए थे, 2019 तक यह आंकड़ा 4 लाख 81 हजार 175 के पार हो गया। यह तो मात्र सरकारी आंकड़े हैं, जो दर्ज हुए हैं। इसके अलावा हजारों बलात्कार के केस ऐसे हैं जो दर्ज ही नहीं होते, क्योंकि ऐसे केस दर्ज होने के बाद लड़की और उसके परिवार को हर दिन इस बलात्कार की पीड़ा से गुजरना पड़ता है। कानून से तो न्याय की उम्मीद ही नहीं जा सकती …. हमारे देश का कानून ही इसका सबसे बड़ा अपराधी है! प्रशासन और कानून से जनता का विश्वास उठ चुका है।
दुबई सबसे बड़ा उदाहरण है जहां रेप का आंकड़ा शून्य है, क्या ऐसे देश से प्रेरित होकर हम अपने कानूनों में फेरबदल नहीं कर सकते …..?अब युवाओं को ही अपने भीतर के आक्रोश को बाहर निकाल एक ऐसी चिंगारी पैदा करनी होगी, जो सारे पापियों को भस्म कर दे। आज हमें अपने देश से बलात्कारियों की कौम को खत्म करने के लिए युद्ध की रणभेरी बजानी होगी। यह समाज का गैंग्रीन है इसे काट कर फेंकना होगा।
आज की युवा पीढ़ी यदि अपने शहीद भाइयों को सच्ची श्रद्धांजलि देना चाहती है, तो उन्हें अपनी बहन बेटियों की रक्षा का कवच बनना होगा और देश में फैली हुई इस गंदगी के ढेर को जलाकर भस्म करना होगा। तभी हम आजादी के 75 वें वर्ष “अमृत महोत्सव” को मनाने के संकल्प को पूरा कर सकेंगे। हमारे शहीदों ने जो स्वतंत्र भारत की बागडोर हमारे हाथ में सौंपी है, उसकी जिम्मेदारी को निभाना ही हमारा अपने शहीदों और राष्ट्रध्वज के प्रति सच्चा सम्मान होगा l
जय हिंद … जय भारत…