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महिलाएं क्यों रखती हैं हरितालिका तीज का निर्जला व्रत?

महिलाएं क्यों रखती हैं हरितालिका तीज का निर्जला व्रत?

by हिंदी विवेक
in ट्रेंडींग, महिला, संस्कृति, सामाजिक
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उत्तर भारत में ‘तीज’ के नाम से महिलाओं का बहुत ही प्रचलित व्रत होता है हालांकि यह काफी कठिन होता है क्योंकि इस दिन महिलाओं को बिना अन्न व जल के पूरा दिन और रात रहना होता है। सूर्योदय के बाद से अगले सूर्योदय तक व्रत करने वाली महिला अन्न-जल का सेवन नहीं करती है। इसलिए ही इसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। महिलाएं यह व्रत अपने पति की लम्बी उम्र के लिए रखती है। 
 
तीज के व्रत को हरतालिका तीज कहा जाता है यह हर साल भादो (भाद्रपद) माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनायी जाती है इसे तीजा के नाम से भी जाना जाता है। इस साल यह व्रत 9 सितंबर दिन गुरुवार को पड़ रहा है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत करती है और शिव-पार्वती की पूजा करती है। इस पूजा से पति की आयु लम्बी होती है और वैवाहिक जीवन सुखमय होता है। इस व्रत को लेकर एक पौराणिक कथा यह भी है कि एक बार माता पार्वती की सखियों ने उनको उनके ही पिता के घर से उठा कर जंगल ले गयी जहां पार्वती जी ने कठोर तपस्या की और भगवान शंकर को वर के रूप में प्राप्त किया। 
 
हरतालिका तीज का महत्वः
हरतालिका तीज का व्रत सुहागिन महिलाएं और कुंवारी कन्याएं दोनों रखते है ऐसा मान्यता है कि सुहागिन महिलाओं के पति की उम्र लंबी होती है जबकि कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर मिलता है। तीज व्रत पर भगवान शिव व माता पार्वती की पूजा की जाती है क्योंकि इस दिन ही भगवान शिव व माता पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था और पार्वती ने अपनी कठोर तपस्या के बल पर ही भगवान शिव को वर के रूप में प्राप्त किया था। इस व्रत पर महिलाएं सोलह श्रृंगार कर पूजा करती हैं। 
हरतालिका तीज के व्रत के नियमः
इस व्रत के दौरान महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की मिट्टी की मूर्ति तैयार करती है और उसकी पूजा करती है जबकि कुछ महिलाएं मंदिर में जाकर भी पूजा करती है। इस व्रत में अन्न व जल ग्रहण नहीं किया जाता है इसलिए ही इसे निर्जला व्रत कहा जाता है। व्रत के सभी आठों पहर में पूजा करने का विधान है जबकि रात्रि में भजन-कीर्तन व शिव पार्वती के मंत्रों का जाप करने का भी नियम है। व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पानी पीकर यह व्रत तोड़ा जाता है। जो भी महिला इस व्रत को एक बार शुरू करती है तो उसे पूरा जीवन इस व्रत को करना पड़ता है। 

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