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संवेदनशील  भारत की  सेवागाथा

संवेदनशील भारत की सेवागाथा

by हिंदी विवेक
in अक्टूबर-२०२१, साहित्य
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कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए प्रधानमंत्री ने रविवार 22 मार्च 2020 को जनता कर्फ़्यू का आवाहन किया और 25 मार्च को सारे देश में लॉकडाउन की घोषणा हुई।

ऐसी परिस्थिति में अनेकों को बहुत कष्ट हुए। बड़े शहरों में रहने वाले विद्यार्थी, श्रमिक एवं प्रवासी इन लोगों के सामने भोजन का संकट आ गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ऐसी विषम और संकटकालीन स्थिति में संपूर्ण देश के उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम छोर तक चट्टान के भांति सामान्य लोगों के लिए खड़ा रहा। पूरे देश में संघ की शाखाओं का एक मजबूत तंत्र है।

अनेक संस्थाओं ने रचे कीर्तिमान

संकट की इस घड़ी में यह तंत्र अत्यंत प्रभावी सिध्द हुआ। स्वयंसेवक भाव का विस्तार हुआ और देखते-देखते समाज सक्रिय हुआ। इसके साथ ही समाज की ‘विराटता’ का दर्शन भी हुआ। आपदा की इस घड़ी में सारा समाज एक साथ खड़ा होकर एक-दूसरे की सहायता कर रहा था, जो अत्यंत सकारात्मक था। समाज में काम करने वाली अनेक संस्थाओं ने इस कोरोना काल में सेवा के अलग-अलग कीर्तिमान रचे।

देशभर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ ही अनेक संस्थाओं ने लगभग सभी प्रान्तों में ‘हेल्पलाइन’ की सेवा तुरंत शुरू की। सामान्य व्यक्ति की समस्या एवं आवश्यकता समझने के लिए इन हेल्प लाइन्स का प्रयोग अत्यधिक सफल रहा। संक्रमितों का मिलना केरल से प्रारंभ हुआ था इसलिए लॉकडाउन प्रारंभ होने से पहले ही वहां हेल्पलाइन की व्यवस्था प्रारंभ हो गई थी। इस सेवा के द्वारा जरूरतमंदों को ढूंढने में मदद हुई।

अप्रैल में विभिन्न स्थानों पर अटके हुए प्रवासी श्रमिक अपने गावों की ओर जाने के लिए निकले। सार्वजनिक परिवहन के सभी साधन बंद थे इसलिए श्रमिक साइकिल से या पैदल ही निकल पड़े। ये श्रमिक जहां-जहां से निकले उन सभी रास्तों पर संघ के स्वयंसेवक, अनेक सामाजिक संस्थाओं के कार्यकर्ता, मठ, मंदिर, गुरुद्वारे सारी व्यवस्थाओं के साथ तैयार थे। इन श्रमिकों को मात्र भोजन-पानी ही नहीं बल्कि उनके स्नान-विश्राम आदि की व्यवस्था भी की गई। अनेकों के पैरों में जूते-चप्पल पहनाए गए। ये सारे प्रसंग भावविभोर करने वाले थे। देश में एक उदात्त भावना जागृत हुई थी। बंधुता, समता और समरसता का यह दृश्य अद्भुत था। संघ स्वयंसेवकों के साथ सारा समाज, पुलिस और प्रशासन खड़े थे।

स्वयंसेवकों ने दिया लगन का परिचय

इस विपदा की घड़ी में प्रशासन पर बहुत ज्यादा बोझ था क्योंकि एक ओर कोरोना के संसर्ग का खतरा, तो दूसरी ओर कर्तव्य की पुकार। प्रशासन के इस तनाव को कम करने के लिए अनेक स्थानों पर संघ के स्वयंसेवक आगे आए। घर-घर जाकर कोरोना की जांच करने से लेकर, कोरोना रोगियों की सेवा करने से लेकर तो कोरोना पीड़ित मृत व्यक्तियों के शवों को दहन करने तक, सभी कार्यों में संघ के स्वयंसेवक, सेवा भारती तथा अन्य सामाजिक संस्थाओं के कार्यकर्ता, प्रशासन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे थे। अनेक स्थानों पर स्थानीय प्रशासन ने महत्वपूर्ण और बड़ी ज़िम्मेदारी संघ के स्वयंसेवकों को सौंपी। स्वयंसेवकों ने भी वे काम अत्यंत विश्वास, लगन और मेहनत से पूर्ण किए। इस दौरान संघ के स्वयंसेवक अनेक गांवों, छोटी छोटी बस्तियों और समाज के उपेक्षित समूहों के पास भी गए तथा उनकी आवश्यकता समझी और उसी प्रकार से उन्हें मदद कर ढाढ़स बंधाया। पशु-पक्षियों को पानी पिलाने, खाना खिलाने के काम भी स्वयंसेवकों ने अनेक संस्थाओं के सहयोग से किए। यह सारे कार्य अत्यंत सहज और निरपेक्ष भाव से किए गए। सेवा कार्य में लगे संघ के अनेक स्वयंसेवक कोरोना से संक्रमित हुए। वहीं कुछ कार्यकर्ता कार्य करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए किन्तु कोई भी कार्य रुका नहीं। संघ की शाखाओं में सिखाएं जाने वाले अनुशासन से सभी कार्य सुसूत्रता से एवं निर्विघ्नता से पूर्ण हुए। इस कोरोना काल में सरकारी तंत्र खड़ा हो रहा था लेकिन देश केवल सरकारी तंत्र से नहीं चलता। एक सौ तीस करोड़ की जनता इस देश की ताकत है। ऐसे ही प्रसंगों में साबित होता है कि यह मात्र नदी, नालों, पहाड़ों, मैदानों, खेतों, खलिहानों का देश नहीं बल्कि एक जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।

कोरोना के इस वैश्विक आपदा के समय, कोरोना की पहली लहर में, इस राष्ट्रपुरुष के जागने की गाथा, अर्थात यह पुस्तक।

 

 

Tags: bharatheritagehindivivekindian cultureindian languagesindian traditionlanguagelearningsanskritsocial

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Comments 1

  1. I hear u says:
    4 years ago

    Thanks for sharing

    Reply

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