सिद्धि और साधना का पर्व शारदीय नवरात्र

केरल में नवरात्रि देवी सरस्वती के सम्मान के रूप में  मनायी जाती है। इन नौ दिनों को केरल में सबसे शुभ माना जाता है। तमिलनाडु में नवरात्रि के समय गुड़ियों का एक प्रसिद्ध त्योहार मनाया जाता है, जिसे बोम्मई कोलू कहा जाता है। राजस्थान में भी नवरात्र के दसवें दिन का महत्व है, जहां दशहरे का मेला लगता है और सभी क्षेत्रों के लोग यहां हिस्सा लेने आते हैं। इस प्रकार नवरात्रि केवल किसी एक राज्य का पर्व नहीं है अपितु यह पर्व पूरे भारत देश में नाना प्रकार से मनाया जाता है।

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।

शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते॥

मां भगवती की उपासना का पर्व नवरात्र है। हिंदू धर्म के अनुसार एक वर्ष में चार नवरात्रि होती है। वर्ष के प्रथम माह अर्थात चैत्र में प्रथम नवरात्रि होती है, चौथे माह आषाढ़ में दूसरी नवरात्रि, माघ मास में तीसरी नवरात्रि और अश्विन मास में चौथी नवरात्रि मनाई जाती है।

इनमें आषाढ़ और माघ मास के नवरात्रि को गुप्त नवरात्र कहते हैं। चैत्र के नवरात्र को वासंतिक नवरात्र एवं पितृ पक्ष के बाद जो नवरात्रि आती है, उसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। शारदीय नवरात्रि की अपनी अलग ही महिमा है। शारदीय नवरात्रि सिद्धि व विजय दिलाने वाली होती है। पूरे देश भर में इन नवरात्रि की रौनक देखने योग्य होती है। आदि शक्ति मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना का पर्व शारदीय नवरात्र हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। शारदीय नवरात्र  के विषय में एक श्लोक उल्लेखनीय है-

शरत्काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी।

तस्यां ममैतन्मात्म्यं श्रुत्वा भक्ति समन्विताः॥

सर्व बाधा विनिर्मुक्तो धन धान्यं सुतान्वितः।

मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः॥

अर्थात शरद ऋतु में जो वार्षिक पूजा की जाती है, उस अवसर पर जो मेरे महात्म्य (दुर्गा सप्तशती) को श्रद्धा भक्ति के साथ सुनेगा वह मनुष्य मेरी अनुकंपा से सब बाधाओं से मुक्त होकर धन-धान्य एवं पुत्र पौत्र आदि से संपन्न होगा। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। शास्त्रों में नवरात्रि पर्व मनाए जाने की एक पौराणिक कथा आती है। कथा के अनुसार महिषासुर नाम का एक राक्षस था, जिसने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके एक वरदान प्राप्त कर लिया। वरदान में उसे कोई देव, दानव या पृथ्वी पर रहने वाला मनुष्य मार नहीं सकता था। वरदान प्राप्त करते ही वह बहुत निर्दयी हो गया और तीनों लोकों में आतंक मचाने लगा। उसके आतंक से परेशान होकर देवी-देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु, महेश के साथ मिलकर मां शक्ति के रूप में दुर्गा जी को प्रकट किया। मां दुर्गा और महिषासुर के बीच 9 दिनों तक भीषण युद्ध हुआ। दसवें दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया। अतः इस दिवस को विजयदशमी भी कहा जाता है।

घरों में विराजती हैं माता

सिद्धि और साधना की दृष्टि से शारदीय नवरात्र को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। यह शारदीय नवरात्र देशभर में अलग-अलग ढंग और रीति-रिवाजों के साथ मनाए जाते हैं। ब्रज में नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना की जाती है। घरों में चौकी सजाकर उस पर कलश स्थापित किया जाता है, जो मिट्टी का होता है। उसे पानी से भर कर उसके ऊपर अशोक के पत्ते और नारियल से सुसज्जित किया जाता है। साथ ही रेत और मिट्टी के मिश्रण में जो बोए जाते हैं। इसके उपरांत दीपक जलाकर प्रतिदिन घरों में गाय के गोबर के उपले पर हवन सामग्री, कपूर और लोबान आदि से जोत की जाती है। भक्त नौ दिनों तक भगवती के नौ स्वरूपों की घरों और मंदिरों में पूजा करते हैं। यह नौ रूप-

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी,

तृतीयं चन्द्र घंटे कूष्माण्डेति चतुर्थकम्

पंचम स्कंदमातेति षष्ठं कार्यनीति च

सप्तमं कालरात्रि महागौरीति च अष्टम

नवम सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता:

इन नवरात्रों में कुछ लोग 9 दिनों तक केवल फलाहार करते हैं। कुछ लोग एक समय अन्न खाते हैं और कुछ लोग एक लौंग के जोड़े से नवदुर्गा का व्रत रखते हैं। ब्रज में कुछ लोगों के घरों में सप्तमी की पूजा की जाती है। कुछ घरों में अष्टमी और कुछ में नवमी की पूजा होती है, जिसमें कन्या, लांगुरों को हलवा चना के विशेष प्रसाद के साथ भोजन कराकर दक्षिणा और उपहार भी दिए जाते हैं और भगवती से अपनी मनोकामना सिद्धि की प्रार्थना की जाती है। नवरात्रि का त्योहार संपूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है। अतः उसकी विविध शैलियां भी हैं। उदाहरण के लिए- महाराष्ट्र में महिलाएं तांबे या पीतल के घड़े में पानी भरकर उसे चावल के ढेर पर रखती हैं, जिसे लकड़ी की चौकी पर सुसज्जित किया जाता है। उसके बगल में एक दीपक रखा जाता है। विज्ञान और समृद्धि का प्रतीक दीपक एवं घड़े को कृषि कल्याण का प्रतीक मानते हैं।

अन्य राज्यों में नवरात्रि पूजा

गुजरात की नवरात्रि अपनी अलग ही विशिष्टता के साथ मनाई जाती है। यहां नवरात्रि में पारंपरिक पारंपरिक नृत्य गरबा का आयोजन पूरे 9 दिनों तक किया जाता है। यहां के लोग इस त्यौहार को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। भक्त गार्वो नामक एक प्रतीकात्मक मिट्टी के बर्तन की पूजा करते हैं, जो पूरे ब्रह्मांड में एक परिवार का प्रतिनिधित्व करता है। महिलाएं पूरे दिन यथाशक्ति व्रत विधान करती हैं और शाम को पंडालों में पारंपरिक परिधान पहनकर वहां का लोक नृत्य गरबा करती हैं। इस नृत्य में बच्चे एवं पुरुष भी पारंपरिक वेशभूषा में सहभागिता करते हैं।

पंजाब में भी देवी पूजा का विशेष महत्व है। यहां महिलाएं एवं पुरुष सात दिनों तक व्रत जोत आदि करते हैं और अष्टमी को यह उपवास तोड़ा जाता है। यहां नौ युवा कन्याओं को आमंत्रित कर भोजन कराया जाता है। साथ ही यहां प्रतिदिन जगराते किए जाते हैं, जिनमें भक्त पूरी रात भगवती की भेंट गाते एवं सुनते हैं और रात्रि भर भगवती की उपासना करते हुए जागते हैं। बंगाल में सप्तमी, अष्टमी, नवमी एवं दसवीं का अत्यधिक महत्व है।

यहां पांडालों में बड़ी प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं और दसवीं को उनका विसर्जन किया जाता है। विसर्जन के समय सभी एक दूसरे को गुलाल लगाते और झूमते गाते मां की शोभायात्रा निकालते हुए विसर्जन को लेकर जाते हैं एवं एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं। इसके अगले दिन शांति पाठ कर पूजा को विराम दिया जाता है। पांडालों में शाम को पारंपरिक नृत्य धूमची करते हैं, जिसमें मिट्टी के पात्र में धूनी जलाकर नृत्य किया जाता है।

हिमाचल प्रदेश में नवरात्रि का उत्सव दसवें दिन होता है, जिसे कुल्लू दशहरा के रूप में जाना जाता है। यह अयोध्या में भगवान राम की वापसी का प्रतीक माना जाता है। इस दौरान कुल्लू घाटी को चमकदार रंगों से सजाया जाता है। यहां देवी की मूर्तियों के साथ विशाल जुलूस निकाला जाता है और व्यास नदी के किनारे लंका दहन के प्रसिद्ध प्रदर्शन के बाद नृत्य और अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं।

केरल में नवरात्रि देवी सरस्वती के सम्मान के रूप में  मनायी जाती है। इन नौ दिनों को केरल में सबसे शुभ माना जाता है। तमिलनाडु में नवरात्रि के समय गुड़ियों का एक प्रसिद्ध त्योहार मनाया जाता है, जिसे बोम्मई कोलू कहा जाता है। राजस्थान में भी नवरात्र के दसवें दिन का महत्व है, जहां दशहरे का मेला लगता है और सभी क्षेत्रों के लोग यहां हिस्सा लेने आते हैं। इस प्रकार नवरात्रि केवल किसी एक राज्य का पर्व नहीं है अपितु यह पर्व पूरे भारत देश में नाना प्रकार से मनाया जाता है।

या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

 

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