भारतवर्ष में ऐसे तमाम देवी-देवताओं और राजाओं ने जन्म लिया है जिन्हे युगों युगो तक याद किया जाता रहेगा। ऐसे युगान्तर राजा के बताए मार्ग पर लोग आज भी चल रहे हैं। ऐसे लोगों को उनके सेवाभाव, प्रेम और उनकी नीति के लिए जाना जाता है। महाराजा अग्रसेन भी ऐसे लोगों में से यह थे। महाराजा अग्रसेन का जन्म द्वापर के अंत काल में हुआ था उन्होंने महाभारत की लड़ाई भी पांडवों की तरफ से लड़ी थी और उसके बाद कलयुग प्रारंभ हुआ। महाराजा अग्रसेन का जन्म क्षत्रिय कुल में एक राजा के घर में हुआ था। इनके पिता सूर्यवंशी राजा वल्लभसेन और माता श्रीमती भगवती देवी थी।
महाराजा अग्रसेन का जन्म अश्विन (आषाढ़) मास के शुक्ल प्रतिपदा को हुआ था। इस बार इनका जन्म दिवस 7 अक्टूबर गुरुवार को मनाया जा रहा है।इनका जन्म द्वापर के अंत और कलयुग के शुरुआती दौर में हुआ था। राजा अग्रसेन उन महान लोगों में से एक थे जिनसे जनता को शिकायत नहीं होती थी। उस दौर में जनता और राजा के बीच एक अटूट विश्वास होता था जिसे राजा हमेशा बनाए रखता था। महाराजा अग्रसेन ने करीब 108 वर्षों तक राज किया इस दौरान उन्होने कई कीर्ति हासिल की, उन्होंने कभी भी धर्म और परंपरा से हट कर काम नहीं किया लेकिन समाज में व्याप्त कुरीतियों को समय समय पर खत्म करते रहे।
राजा अग्रसेन का दिल बहुत ही करुणामयी और उदार वाला था इसलिए ही उनके मन में मनुष्य, पशु और पक्षी सभी के लिए समान भाव था। ऐसा भी कहा जाता है कि गर्ग ऋषि ने अग्रसेन के पिता वल्लभ से जन्म के समय ही कहा था कि अग्रसेन बहुत महान राजा बनेगा जिसकी ख्याति युगो युगों तक याद रखी जायेगी।
एक समय की बात है महाराजा अग्रसेन समृद्धि और वैभव के लिए यज्ञ कर रहे थे। उस समय के राजाओं के लिए यज्ञ करना जरूरी भी था। यज्ञ में बलि देने के लिए जिस घोड़े को लाया गया था वह काफी डरा हुआ राजा को नजर आया, राजा ने बहुत देर तक विचार करने के बाद घोड़े की बलि देने से इंकार कर दिया। राजा के इस फैसले से सभी बहुत चिंतित हुए क्योंकि ऐसा करना अपशगुन माना जाता है लेकिन राजा ने किसी की बात नहीं सुनी और कहा कि किसी निर्दोष की जान लेकर सुख और समृद्धि कभी नहीं आ सकती है। इस फैसले के बाद से ही राजा ने पशुओं की बलि पर रोक लगा दी। महाराजा अपने अंतिम समय में कुलदेवी की आज्ञा के बाद घर छोड़ दिया और तपस्या के लिए वन को चले गये।
अग्रवाल जाति की उत्पत्ति भी राजा अग्रसेन के द्वारा ही हुई है। महाराजा ने अपने राज्य को 18 गणों में विभाजित कर 18 गुरुओं के नाम पर 18 गोत्र की उत्पत्ति की थी। इस तरह अलग गोत्र होने के बाद भी यह सभी एक ही परिवार के अंग माने जाते हैं। अग्रवाल के 18 गोत्र-
01. ऐरन 02. बिंसल 03. बिंदल 04. भंदल 05. धारण 06. गर्ग 07. गोयन 08. गोयल 09. जिंदल 10. कंसल 11. कुच्छल 12. मधुकुल
13. मंगत 14. मित्तल 15. नागल 16. सिंघल 17. तायल 18. तिंगल