भारतीय संस्कृति में दिए जलाना सिर्फ एक त्यौहार नहीं बल्कि एक श्रद्धा और आदर का भाव होता है। हम दिए सिर्फ बाहर प्रकाश या दिखावे के लिए नहीं जलाते हैं बल्कि इससे मन के अंधकार को भी कम करते है। तेजी से बदलते परिवेश में दिए की जगह को अब लाइट से पूरा किया जा रहा है लेकिन यह ठीक नहीं हैं इसलिए हमें बिजली बल्ब की जगह दिवाली पर दिए जलाने चाहिए और भगवान व प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करना चाहिए। जीवन वही सार्थक है जिसका आधार सत्य है, ऐसा यत्नपूर्वक जीवन जीने वाला व्यक्ति ही अंधकार को समाप्त करने का सामर्थ्य रखता है और जब अंधकार मिटता है, तो वास्तविक दीपावली मनायी जाती है।

हिन्दू धर्म में कई त्योहार होते है जिसे लोग बहुत ही खुशी से मनाते भी है हालांकि समय के साथ साथ इसके चलन में थोड़ा परिवर्तन भी देखने को मिल रहा है लेकिन अगर हम सवाल करें कि हम अपने इस त्योहार से क्या सीखते हैं तो शायद बहुत की कम लोगों के पास उत्तर होगा। त्योहार पर नये कपड़े पहनना, फोटो खीचना और घूमना क्या हमारा त्योहार यही है? बिल्कुल नहीं। हिन्दू धर्म में जितने भी त्योहार हैं वह सभी हमारे लिए कुछ संदेश देते हैं जिसे हमें अपने जीवन में उतारना चाहिए। हमारी भारतीय संस्कृति सदियों से हमें बहुत कुछ सिखाती आई है। भारत के विभिन्न भागों में मनाए जाने वाले विभिन्न त्योहार भी इसी का एक प्रतीक है। भारत में त्यौहार केवल त्यौहार नहीं तो पूरे परिवार का एक सामूहिक मिलन, अनेकता में एकता के सूचक और हमारी दैनंदिन जिंदगी के लिए मिलने वाली छोटी-छोटी सीख का दूसरा नाम है।
त्योहार के खास दिन पर घर के बड़े बुजुर्ग कुछ ज्ञान देते हैं जो हमारे जीवन को निखारने का काम करते हैं और यही छोटी छोटी बातें पूरे जीवन में काम आती है। त्योहार में परिवार के साथ मिलन होता है जो खुद में एक बहुत खुशी देता है। जब तक परिवार का साथ न हो तब तक कोई त्यौहार त्यौहार नहीं होता। हर धर्म में परिवार को सबसे अधिक मान्यता दी गयी है हालांकि तेजी से हो रहे शहरीकरण में परिवार टूट रहा है और लोग अलग अलग रहने को मजबूर हो रहे हैं।