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हिंदू धर्म : पारम्परिक आर्थिक सुरक्षा का सबसे सशक्त आधार

हिंदू धर्म : पारम्परिक आर्थिक सुरक्षा का सबसे सशक्त आधार

by हिंदी विवेक
in आर्थिक, ट्रेंडींग, संस्कृति, सामाजिक
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एक ‘अखबार’ में एक खबर पढ़ी जिसके अनुसार आज मेरे शहर में अनुमानित रूप से ढ़ाई लाख झाङू बिकेंगे। अब आप सोचिए कि इसे बनाने के व्यवसाय में जो भी लोग संलग्न होते हैं वो आर्थिक और सामाजिक संरचना की दृष्टि से किस पायदान पर खड़े होते हैं।
इसी ‘दीवाली’ मिट्टी के दीप बिकते हैं जो एक पूरी जाति का आर्थिक रूप से उन्नयन कर देती है।  “धनतेरस” के दिन लोग सामर्थ्यानुसार सोने और चांदी के गहने या बर्तन खरीदते हैं और ये भी किसी न किसी का “आर्थिक उन्नयन” ही करती है।
इस त्योहार के बाद आता है “छठ” जो #वोकल_फॉर_लोकल का सबसे बड़ा उदाहरण है। क्योंकि इस त्योहार में जो भी उपयोग होता है कि वो स्थानीय होता है और स्थानीय स्तर पर ही खप जाता है। कोई कितना भी धनी क्यों न हो, भले ही वो छठ में सोने का सूप चढ़ाए पर अनिवार्य है कि वो बांस की बनी सूप पूजा में प्रयोग करेगा ही।
बिहार के बाहर के लोग शायद नहीं जानते होंगे पर बिहार में एक ऐसी जाति है जो वर्ष भर इस पर्व की प्रतीक्षा करती है क्योंकि बांस का बना दउड़ा और सूप बेचकर ही वो पूरे वर्ष भर के बराबर की कमाई कर लेते हैं। फलों की और उसमें भी सबसे अधिक स्थानिक फलों की बिक्री इस पर्व में होती है। हर बिहारी चाहे वो दुनिया में कहीं भी वो इस अवसर पर घर जरूर आता है और इसलिए इस त्योहार की रौनक में कभी कमी नहीं आती और साथ ही ये रौनक देती है उन सब घरों को जिनका आर्थिक उन्नयन इन दोनों पर्वों के माध्यम से जुड़ा है।
“हिंदू धर्म” सबकी “आर्थिक सुरक्षा” का सबसे सशक्त आधार है बशर्ते इसे उसी रूप में मनाया जाए जैसा हमारे पूर्वजों ने हमें सौंपा था।
एक बिहारी होने के नाते मुझे इस बात का गर्व है कि आधुनिकता और उपभोक्तावाद की आंधियों में भी हमने अपने इन दोनों पर्वों को उसके मूल स्वरूप में बचाकर रखा हुआ है जो मेरे विराट समाज के हर वर्ग की आर्थिक सुरक्षा का ध्यान रखती है और साथ ही इसे वर्ग संघर्ष और मतांतरण की चुनौतियों से भी बचाती है।
– अभिजीत सिंह

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Tags: biharcchath pujaDiwalieconomical growthhindi vivekhindi vivek magazinehindu festivaltraditionalvocal for local

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