आज सभी देशों की अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी के कारण तहस-नहस हो गई है, जिसमें भारत भी शामिल है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुसार वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही और आगामी तिमाहियों में नकारात्मक वृद्धि दर्ज होने के बावजूद भारत की विकास दर वर्ष 2021 में 11% रहने का अनुमान है।
आजादी के बाद भारत ने आर्थिक मोर्चे पर कई बार उतार-चढ़ाव देखा है। शुरुआत में आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने के लिए तत्कालीन सरकारों को काफी मशक्कत करनी पड़ी। बाद में भी भारतीय अर्थव्यवस्था को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। आज भी कोरोना महामारी की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुजर रही है। तमाम बाधाओं और चुनौतियों का डटकर सामना करने के कारण आज भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में तेजी से अग्रसर है।
भारत जब आजाद हुआ था, तब भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 2.7 लाख करोड़ रूपये था, जो वित्त वर्ष 2020-21 में बढ़कर 135.13 लाख करोड़ रूपए हो गया। वर्ष 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना शुरू हुई थी, लेकिन अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में यह बहुत सफल नहीं रही। हालांकि वर्ष 1961 से भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि दृष्टिगोचर होने लगी। वर्ष 1950 से वर्ष 1979 तक देश की जीडीपी औसतन 3.5% की दर से आगे बढ़ रही थी, जबकि वर्ष 1950 से वर्ष 2020 तक भारत की जीडीपी वृद्धि दर औसतन 6.15% रही। वर्ष 2010 की पहली तिमाही में जीडीपी दर 11.40% के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी, जबकि वर्ष 1979 की चौथी तिमाही में इसने 5.20 की सबसे कम वृद्धि दर्ज की थी।
अर्थव्यवस्था को मिली मजबूती
वर्ष 1960 में भारत की प्रति व्यक्ति आय 81.3 अमेरिकी डॉलर थी, जो अप्रैल 2021 में बढ़कर 7332.9 अमेरिकी डॉलर हो गई। देश में प्रति व्यक्ति आय की वार्षिक वृद्धि दर वित्त वर्ष 1980-81 से वित्त वर्ष 1991-92 के दौरान औसतन 3.1% रही, जो वित्त वर्ष 1992-93 से वित्त वर्ष 2002-03 के दौरान बढ़कर औसतन 3.7% के स्तर पर पहुंच गई, जो पुनः वित्त वर्ष 2003-2004 से वित्त वर्ष 2007-2008 के दौरान दोगुनी होकर औसतन 7.2 प्रति वर्ष के स्तर पर पहुंच गई। वर्ष 1980 का दशक युवाओं के लिए काफी महत्वपूर्ण रहा क्योंकि इस दशक में सरकार ने सूचना एवं प्रौद्योगिकी के विकास के लिए कई कदम उठाए, जिससे आगामी वर्षों में अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली। आज सूचना एवं प्रौद्योगिकी की मदद से कई फिनटेक कंपनियां अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने का काम कर रही है।
वर्ष 2015 में आया उछाल
भारत में वर्ष 1980 तक सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जीएनपी) की विकास दर कम थी, लेकिन 1981 में आर्थिक सुधारों के शुरू होने के साथ ही इसने गति पकड़ ली। वर्ष 1991 में इसमें उल्लेखनीय तेजी आई। वर्ष 1950 से वर्ष 1980 के दशकों में जीएनपी की वृद्धि दर सिर्फ 1.49% थी। कई उपक्रमों के राष्ट्रीयकरण के बाद विकास की गति में तेजी आई और अस्सी के दशक में जीएनपी वृद्धि दर बढ़कर प्रतिवर्ष 2.89% हो गई, जो नब्बे के दशक में बढ़कर प्रतिवर्ष 4.19% हो गई।
वर्ष 1991 से भारत सरकार ने आर्थिक सुधार करना शुरू किया, जो आज भी जारी है। वर्ष 1991 में विदेश व्यापार, वित्त, कर सुधार, विदेशी निवेश आदि क्षेत्रों में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए अनेक उपाय किए गए, जिनसे भारतीय अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ने में मदद मिली। सकल स्वदेशी उत्पाद की औसत वृद्धि दर (फैक्टर लागत पर) जो वर्ष 1951 से वर्ष 1991 के दौरान 4.34% थी, जो वर्ष 1991 से वर्ष 2011 के दौरान बढ़कर 6.24% हो गई। वर्ष 2015 में भारतीय अर्थव्यवस्था 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से आगे निकल गई थी।
कोरोना से डगमगाई अर्थव्यवस्था
आज सभी देशों की अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी के कारण तहस-नहस हो गई है, जिसमें भारत भी शामिल है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुसार वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही और आगामी तिमाहियों में नकारात्मक वृद्धि दर्ज होने के बावजूद भारत की विकास दर वर्ष 2021 में 11% रहने का अनुमान है। गौरतलब है कि दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत एकमात्र ऐसा देश है, जिसकी वृद्धि दर वर्ष 2021 में दो अंकों में रहने का अनुमान है। आईएमएफ के मुताबिक चीन 81% की वृद्धि दर के साथ दूसरे, स्पेन 59% की वृद्धि दर के साथ तीसरे और फ्रांस 55% की वृद्धि दर के साथ चौथे स्थान पर रह सकता है।
15 अगस्त, 2021 को लाल किले की प्राचीर से देशवासियों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को अमलीजामा पहनाना सरकार द्वारा उठाया गया एक एतिहासिक फैसला था। इससे कर चोरी को रोकने में सरकार को बड़ी सफलता मिली है। सरकार की इस पहल से धीरे-धीरे जीएसटी संग्रह में तेजी आ रही है। जून महीने में ई-वे बिल की कुल मात्रा में मासिक आधार पर 37.1% का उछाल आया, जबकि सालाना आधार पर इसमें 26% की बढ़ोतरी हुई।
पहली बार वर्ष वित्त वर्ष 1989-90 में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का (बीएसई) सूचकांक 1000 के अंक के स्तर को पार कर गया। वित्त वर्ष 1992-93 में हर्षद मेहता द्वारा किए गए घोटाले की वजह से शेयर बाजार की साख पर प्रतिकूल असर पड़ा, लेकिन जल्द ही शेयर बाजार इस झटके से उबर गया। वर्ष 2006 में शेयर बाजार का सूचकांक 10,000 अंक के स्तर को पार कर गया फिर वित्त वर्ष 2014-15 में शेयर बाजार का सूचकांक 30,000 अंक के स्तर को और वित्त वर्ष 2018-19 में 40,000 अंक के स्तर को पार कर गया, और वर्ष 2021 में यह रिकॉर्ड 55,000 अंक के स्तर को पार किया।
केंद्र सरकार का संतोष
आर्थिक क्षेत्र में सरकार द्वारा किए जा रहे सुधारों का ही नतीजा है कि वित्त वर्ष 2021 के पहले दो महीनों में केंद्र सरकार का कर संग्रह संतोषजनक रहा। अप्रत्यक्ष कर संग्रह में तेजी आने के कारण वित्त वर्ष 2021 में कुल कर संग्रह 20.16 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो पिछले वित्त वर्ष के 20.05 लाख करोड़ रुपये से कुछ अधिक रहा। गौरतलब है कि प्रत्यक्ष कर संग्रह में 10% कमी आने के बाद भी कुल कर संग्रह अधिक रहा। अप्रत्यक्ष कर में जीएसटी, उत्पाद शुल्क एवं सीमा शुल्क आते हैं। वित्त वर्ष 2021 में सीमा शुल्क के रूप में 1.32 लाख करोड़ रुपये वसूले गए, जो पिछले वित्त वर्ष के 1.09 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले 21% अधिक है। केंद्रीय उत्पाद शुल्क एवं सेवा कर (बकाये) से होने वाला संग्रह भी आलोच्य अवधि के दौरान 58% बढ़कर 3.91 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया।
नेशनल रियल स्टेट डेवलपमेंट काउंसिल (नारडेको) द्वारा हाल में कराये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार देश का रियल सेक्टर वर्ष 2025 तक 650 अरब डॉलर के स्तर तक पहुंच जाएगा। वर्ष 2028 तक इसका आकार बढ़कर 850 अरब डॉलर, जबकि वर्ष 2030 तक एक ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।
आजादी के 75 सालों में देश ने आर्थिक मोर्चे पर अनेक उपलब्धियां हासिल की हैं। भारत की अर्थव्यवस्था के आकार में और प्रति व्यक्ति आय में कई गुना इजाफा हुआ है। मोदी सरकार देश की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन की बनाना चाहती है, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से इस संकल्पना को पूरा करना फिलहाल संभव नहीं है। इस संकट की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार भी कम हुआ है और वर्ष 2021 में देश में प्रति व्यक्ति आय 5.4% कम होकर औसतन 1.43 लाख रूपये रहने का अनुमान है। बावजूद इसके यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत जल्द ही अर्थव्यवस्था की राह में आए गतिरोधों को खत्म करने में सफल रहेगा और दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने में भी कामयाब होगा।