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अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक पर छिड़ी बहस

अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक पर छिड़ी बहस

by हिंदी विवेक
in राजनीति, विशेष, सामाजिक
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जब से कश्मीर फाइल्स फिल्म रिलीज हुई है तब से बहुत सारे प्रश्न सामाजिक विमर्श में उभर आए हैं तथा आम जनमानस उन प्रश्नों के उत्तर की तलाश कर रहा है ।

एक प्रश्न यह भी है कि अल्पसंख्यकों को विशेष अधिकार क्यों , भारत में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक शब्द की क्या आवश्यकता है , अगर किसी भी तरह की कोई विशेष सुविधाएं देनी हो तो उसे धर्म , जाति , समूह , भाषाई और समुदाय के आधार पर ना देकर आर्थिक आधार पर ही देनी चाहिए ।

इसी तरह का एक प्रश्न है कौन अल्पसंख्यक है, इसकी क्या परिभाषा है , भारत का मूल संविधान इस बारे में मौन है , अर्थात संविधान में अल्पसंख्यक की किसी भी तरह से कोई परिभाषा नहीं दी गई है ।

संविधान के अनुच्छेद 30(1) के तहत अल्पसंख्यक समूह को अपने स्वायत्त शिक्षा संस्थान चलाने की स्वतंत्रता दी गई है , जिसमें वह अपने धर्म की शिक्षा भी दे सकते हैं तथा इन संस्थानों का संचालन , प्रबंधन तथा प्रशासन बिना राज्यों के हस्तक्षेप के कर सकेंगे तथा राज्यों द्वारा इसे वित्त पोषित भी किया जा सकता है ।

इसका एक अर्थ यह भी होता है कि बहुसंख्यक समुदाय अर्थात हिंदू समुदाय द्वारा इस तरह की शिक्षण संस्थाओं का संचालन नहीं किया जा सकता तथा वह अपने धर्म की शिक्षा नहीं दे सकता लेकिन अगर वह किसी भी तरह से इस तरह की संस्थाओं का संचालन करता है तो उसे राज्य के हस्तक्षेप को सहना होगा तथा उसे किसी भी तरह का वित्तपोषण राज्यों के द्वारा नहीं मिलेगा ,यह एक तरह से संविधान की धारा 14 जो की समानता का अधिकार देता है उसका स्पष्ट उल्लंघन भी है ।

लेकिन संविधान के अनुच्छेद 29(2) में यह व्यवस्था भी दी गई है अल्पसंख्यक समुदाय अपने उन सभी शिक्षा संस्थान जो कि राज्य द्वारा वित्त पोषित है , में किसी भी व्यक्ति को धर्म जाति , लिंग और समुदाय के आधार पर भेदभाव ना करके ऐसे सभी व्यक्ति जो उन शिक्षा संस्थानों में प्रवेश लेना चाहते हैं , प्रवेश देना होगा अर्थात एक गैर मुस्लिम व्यक्ति भी सरकार द्वारा वित्त पोषित मदरसों में प्रवेश ले सकता है ।

संविधान में अल्पसंख्यकों को दो भागों में विभाजित किया गया है धार्मिक और भाषाई लेकिन सरकारों द्वारा व्यवहार में केवल धार्मिक अल्पसंख्यको को ही सारी सुविधाएं दी जा रही , भाषाई अल्पसंख्यकों का संज्ञान सरकारों द्वारा नहीं लिया जा रहा ।

क्योंकि संविधान में अल्पसंख्यक शब्द अपरिभाषित है अतः भारत सरकार ने नेशनल कमिशन फॉर माइनॉरिटी एक्ट 1992 बनाया तथा इसकी धारा 2 ( c) के आधार पर 23 अक्टूबर 1993 को मुस्लिम, सिख ,ईसाई, बौद्ध और पारसी को अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित किया लेकिन आश्चर्यजनक रूप से जैन समुदाय को छोड़ दिया गया , इन्हें 2014 में अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित किया गया ।

यह प्रश्न हमेशा सामाजिक विमर्श में रहा है कि अल्पसंख्यकों का आधार राष्ट्रीय स्तर पर इनकी जनसंख्या को माना जाए या राज्य स्तर पर उनकी जनसंख्या को माना जाए ।

इस प्रश्न का उत्तर इसलिए भी जरूरी है कि 9 ऐसे राज्य या केंद्र शासित प्रदेश हैं जहां पर संख्या में हिंदू समुदाय अल्पसंख्यकों की श्रेणी में आता है , लेकिन उन्हें अल्पसंख्यक नहीं माना गया तथा इन्हें अल्पसंख्यकों को मिलने वाली सरकारी सुविधाओं से वंचित रखा गया है , ये 9 राज्य है कश्मीर , लद्दाख , त्रिपुरा , अरुणाचल प्रदेश ,नागालैंड, मिजोरम , मणिपुर , लक्ष्यदीप और पंजाब ।

सन 1976 तक शिक्षा राज्य का विषय था लेकिन 42 वें संविधान संशोधन विधेयक के बाद शिक्षा राज्य और केंद्र दोनों का विषय हो गया है , यह विषय संविधान की समवर्ती सूची में शामिल हो गया है ।

5 मई 1971 को सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की पीठ ने डीएवी कॉलेज विरुद्ध स्टेट ऑफ पंजाब में यह स्पष्ट रूप से उल्लेखित किया है कि अल्पसंख्यक दर्जा राज्य की जनसंख्या के आधार पर होना चाहिए ।

31 अक्टूबर 2002 को डॉक्टर टी एम ए पई फाउंडेशन और अन्य विरुद्ध स्टेट ऑफ कर्नाटक और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के 11 जजों की पीठ ने भी इसी आशय का निर्णय दिया कि अल्पसंख्यकों का आधार राज्यवार जनसंख्या हि होनी चाहिए ।

सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक निर्णय के बाद भी तत्कालीन सरकारों ने इसे लागू नहीं किया इसके आलोक में सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर इन सरकारों का नोटिस भी जारी किया पर अभी तक ये निर्णय लागू नहीं हो पाए।

साथियों सुप्रीम कोर्ट के इन स्पष्ट निर्णय को लागू नहीं करने का निर्णय विशुद्ध रूप से राजनीतिक ही है , इसमें किसी भी तरह के किसी भी अल्पसंख्यक वर्ग के कल्याण की कोई भी भावना निहित नहीं है ।

साथियों लेकिन एक प्रश्न जरूर मेरे और आपके मन में भी आता होगा कि भारत जो कि एक ऐसा देश है , जिसके बारे में कहा जाता है कि लगभग हर 100 किलोमीटर के बाद भाषा , खान-पान , परंपरा , रहन सहन और संस्कृति बदल जाती है ऐसे विविधता से परिपूर्ण देश में क्या नागरिकों को अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के रूप में बांटना उचित है ।

साथियों क्या यह कहना उचित है कि अल्पसंख्यक वर्ग का होने के कारण व्यक्तियों और समुदायों का विकास धीरे या नहीं होता है इसलिए उन्हें अतिरिक्त सुविधाएं देने की जरूरत है , मैं इसे बिल्कुल भी सत्य नहीं मानता क्योंकि भारत में जो सबसे सूक्ष्म अल्पसंख्यक है वो पारसी समुदाय है तथा वह भारत का सबसे संपन्न और विकसित समुदाय भी है ।

इसी तरह दूसरा सुक्ष्म अल्पसंख्यक समुदाय जैन समुदाय है , यह समुदाय भी सूक्ष्म अल्पसंख्यक होते हुए भी संपन्न , विकसित और रोजगार देने वाला समुदाय है ।

साथियों किसी भी व्यक्ति , समूह , धर्म और समुदाय का विकास इसलिए नहीं होता है कि वह बहुसंख्यक है ,बहुसंख्यको में भी कई व्यक्ति काफी गरीब है , अर्थात आर्थिक असमानता वहां पर भी है , किसी भी व्यक्ति का विकास व्यक्तिगत स्तर पर उसके पुरुषार्थ के आधार पर होता है , अगर आप किसी भी तरह का कोई पुरुषार्थ ना करें तो आप अपने विकास के बारे में सोच भी नहीं सकते ।

साथियों यह भी एक विमर्श का विषय हो सकता है कि आजादी के समय देश की बहुत सारी रियासतों मैं मुस्लिम शासक थे , बावजूद इसके अगर मुस्लिम आर्थिक , सामाजिक ,राजनैतिक और प्रशासनिक रूप से पिछड़ा है तो इसमें दोष किसका है ।

साथियों किसी भी अच्छे राष्ट्र में ऐसी नीतियां होनी चाहिए जो सभी व्यक्तियों को विकास के समान अवसर दें , अब यह उन व्यक्ति समूह और समुदाय पर निर्भर है कि , वह उन नीतियों का फायदा अपने हक में किस तरह से उठाते हैं , लेकिन अवसर समान ही होने चाहिए ना कि विभेदकारी ।

साथियों एक स्वस्थ , उन्नत और गतिशील राष्ट्र में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक जैसे शब्द नहीं होने चाहिए इसलिए हमारे संविधान में अल्पसंख्यक शब्द चार जगह उल्लिखित तो है लेकिन शायद उन्हें जानबूझकर परिभाषित नहीं किया गया ।

वर्ष 2005 में बाल पाटिल के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने यह कहा है कि देश में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का विभाजन खत्म कर देना चाहिए क्योंकि यह आगे जाकर देश में विभाजन की एक और नींव डालेगा ।

और साथियों यह विभाजन तभी खत्म हो पाएगा जब देश में सभी के लिए समान कानून और समान अवसर उपलब्ध होंगे , जिस दिशा में अभी वर्तमान सरकार चल रही है उससे यह आशा जगती है कि बहुत जल्द देश में सभी के लिए समान कानून और समान अवसर उपलब्ध होंगे ।

साथियों हम सबकी वर्तमान सरकार से यह अपेक्षा रहेगी कि अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समुदाय के भेद को तुरंत खत्म करें लेकिन यह किसी कारण से अगर संभव नहीं है तो , सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए उपर लिखित निर्णयों के आलोक में देश में अल्पसंख्यकों की गणना राज्य की जनसंख्या के हिसाब से करने का आदेश तुरंत लागू करने का प्रयास करें ।

– सुरेश कुमार कोठारी

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