बिरसा मुंडा जी के पिताजी जागरूक और समझदार थे. बिरसा जी की होशियारी देखकर उन्होने उनका दाखला, अंग्रेजी पढ़ाने वाली, रांची की, ‘जर्मन मिशनरी स्कूल’ में कर दिया. इस स्कूल में प्रवेश पाने के लिए ईसाई धर्म अपनाना आवश्यक होता था. इसलिए बिरसा जी को ईसाई बनना पड़ा. उनका नाम बिरसा डेविड रखा गया. किन्तु स्कूल में पढ़ने के साथ ही, बिरसा जी को समाज में चल रहे, अंग्रेजों के दमनकारी काम भी दिख रहे थे. अभी सारा देश १८५७ के क्रांति युध्द से उबर ही रहा था. अंग्रेजों का पाशविक दमनचक्र सारे देश में चल रहा था. यह सब देखकर बिरसा जी ने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी. वे पुनः हिन्दू बने. और अपने वनवासी भाइयों को, इन ईसाई मिशनरियों के धर्मांतरण की कुटिल चालों के विरोध में जागृत करने लगे.