और कितना भागेंगे..?

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उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की बुढाना तहसील में एक छोटा सा गांव है हुसैनपुर कला. यह गांव किसी जमाने में व्यापार का केंद्र रहा करता था, और इसीलिए वहां पर व्यापार करने वाले जैन समुदाय की संख्या ज्यादा थी. समय बदलता गया. हुसैनीपुर कला गांव में धीरे-धीरे मुस्लिम आबादी बढ़ती…

मोदी जी के पैर छुना… संस्कृति का गौरव

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इस समय, जब पूरब के एक छोर का छोटासा देश, 'पापुआ न्यू गिनी' गहरी निद्रा मे हैं, वहां के एक फोटो ने सारे भारत मे जबरदस्त हलचल मचा रखी हैं. सारे समाचार चैनल इसी समाचार को दोहरा रहे हैं. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, Forum for India-Pacific Islands Cooperation (FIPIC)…

डॉ. आंबेडकर जी से गद्दारी करने वाली कांग्रेस

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आज १४ अप्रैल. डॉ. बाबासाहब आंबेडकर जी की जयंती. अनेक राज्यों में चुनाव का माहौल हैं. कांग्रेस के नेता आज डॉ. आंबेडकर जी की प्रतिमा पर माला डालने अवश्य आएंगे. उन्हें रोकिये. उनका कोई अधिकार नहीं हैं बाबासाहब जी की प्रतिमा पर माल्यापर्ण करने का.. जिस कांग्रेस ने जीते जी…

अंग्रेजों ने की क्रूरता, पाशवीकता की सारी हदें पार

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१९१९ की १३ अप्रैल को बैसाखी थी. रविवार का दिन था. रौलेट एक्ट के विरोध में सारे देश में प्रदर्शन हो रहे थे. उसी शृंखला मे, जालियांवाला बाग में एक सभा आयोजित की गई थी. बैसाखी और छुट्टी के कारण, अमृतसर के आजू-बाजू के लोग भी जालियांवाला बाग पहुंच रहे…

श्रीराम : जन-जन में देवत्व का संचार करने वाले भगवान

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दुनिया चमत्कार को नमस्कार करती हैं. भगवान विष्णु के दस अवतारों में, श्रीराम का अवतार ही ऐसा अवतार हैं, जिसमे चमत्कार न के बराबर हैं. किन्तु फिर भी दुनिया प्रभु श्रीराम को ही पूजती हैं. संपूर्ण भारत में, भौगोलिक / भाषिक विभेदों से ऊपर उठकर श्रीराम पूजे जाते हैं. भारत…

डॉक्टर हेडगेवार जी का हिंदुत्व..!

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किसी व्यक्ति के कार्य का मूल्यांकन करना है, या उस व्यक्ति ने किये हुए कार्य का यश - अपयश देखना हैं, तो उस व्यक्ति के पश्चात, उसके कार्य की स्थिती क्या है, यह देखना उचित रहता हैं. उदाहरण हैं - छत्रपती शिवाजी महाराज. मात्र पचास वर्ष का जीवन. लगभग तीस…

हम में शिथिलता आ गयी और विघटन प्रारंभ हुआ !

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विश्वविख्यात अर्थशास्त्री प्रो. अंगस मेडिसन ने अपने “The History of World Economics” में प्रमाणों के आधार पर यह लिखा हैं की सन १००० में भारत विश्व व्यापार में सिरमौर था. पूरे दुनिया में व्यापार का २९% से ज्यादा भारत का हिस्सा था (यह इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं की आज विश्व…

गूढ़ार्थ के पर्यायवाची – भगवान शिवशंकर !

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सृष्टि में असीम आनंद का वातावरण हैं. वसंत की उत्फुल्लता चहुं ओर दृष्टिगोचर हो रही हैं. ऋतुओं के संधिकाल का यह महापर्व अपने पूरे यौवन पर हैं. वातावरण में बाबा भोलेनाथ के जयकारों की गूंज हैं. ‘कंकर – कंकर में शंकर’ की उक्ति पर दृढ़ श्रध्दा रखनेवाला हिन्दू समाज, उत्सव…

स्वामी विवेकानन्द जी की राष्ट्रीय प्रेरणा

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सन १८६३ के प्रारंभ में, १२ जनवरी को स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ हैं. उस समय देश की परिस्थिति कैसी थी? १८५७ के क्रन्तियुध्द की ज्वालाएं बुझ रही थी. यह युध्द छापामार शैली में लगभग १८५९ तक चला. अर्थात स्वामी विवेकानंद के जन्म के लगभग ४ वर्ष पहले तक. इस…

तकनीकी के साथ – योगी आदित्यनाथ !

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१९ मार्च, २०१७ को रविवार था।  भारतीय तिथि के अनुसार चैत्र कृष्ण सप्तमी थी।  इस दिन लखनऊ के काशीराम स्मृति उपवन में, एक भगवे वस्त्र पहने हुए ४४ वर्ष का युवा, भारत के सबसे बड़े राज्य, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहा था। भारतीय जनता पार्टी का,…

धरती आबा : जनजातीय गौरव

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बिरसा मुंडा जी के पिताजी जागरूक और समझदार थे. बिरसा जी की होशियारी देखकर उन्होने उनका दाखला, अंग्रेजी पढ़ाने वाली, रांची की, ‘जर्मन मिशनरी स्कूल’ में कर दिया. इस स्कूल में प्रवेश पाने के लिए ईसाई धर्म अपनाना आवश्यक होता था. इसलिए बिरसा जी को ईसाई बनना पड़ा. उनका नाम बिरसा डेविड रखा गया. किन्तु स्कूल में पढ़ने के साथ ही, बिरसा जी को समाज में चल रहे, अंग्रेजों के दमनकारी काम भी दिख रहे थे. अभी सारा देश १८५७ के क्रांति युध्द से उबर ही रहा था. अंग्रेजों का पाशविक दमनचक्र सारे देश में चल रहा था. यह सब देखकर बिरसा जी ने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी. वे पुनः हिन्दू बने. और अपने वनवासी भाइयों को, इन ईसाई मिशनरियों के धर्मांतरण की कुटिल चालों के विरोध में जागृत करने लगे.

पहचान हिंदुत्व की..! भाग – १

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संक्षेप में कहा जाए, तो यह बात वह समझ चुका था कि भले ही वह अमेरिकन हो, तथा भारत से पूरी तरह कट चुका हो, परन्तु फिर भी ‘हिन्दू’ के रूप में ही उसकी सच्ची पहचान है. आगे चलकर अरोरा ने भगवद्गीता खरीदी. उसने गीता पढ़ने का प्रयास किया. परन्तु गीता का अंग्रेजी अनुवाद उसे ठीक से समझ में नहीं आया. फिर वह वहां की स्थानीय विश्व हिन्दू परिषद् की शाखा के संपर्क में आया और वहीं से संघ की शाखा से. जब मेरी उससे भेंट हुई, तब वह प्रथम वर्ष शिक्षित संघ का स्वयंसेवक बन चुका था.

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