बॉलीवुड ने हमेशा हिन्दू धर्म को बदनाम किया है

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फहरान ने पूरी मक्कारी के साथ कप्तान का नाम बदल कर इस्तियाक रख दिया और कोच मुखर्जी को एक वेबड़ा दिखा दिया जो अपने घर पर पत्नी से पिटता है और दारू पीकर कहीं भी लोट जाता है। जबकि असलियत यह थी कि कोच मुखर्जी ने जिंदगी में कभी शराब नहीं पी और उससे भी बड़ी बात मुखर्जी ने कभी विवाह ही नहीं किया था। बहुत लोग कहेंगे तो क्या हुआ मूवी में तो यह सब चलता है, बस यहीं पर गड़बड़ है आज के पहले कितने लोग इन दोनों का नाम जानते थे? नई पीढ़ी तो बिल्कुल भी नहीं जानती, वह मूवी देख कर क्या जानेगी, यही न कि भारत के लिए पहला गोल्ड जीतने वाली टीम के कैप्टन इस्तियाक था और कोच वेबड़ा। फिर भी यदि लोग कहें कि क्या फर्क पड़ता है तो उनसे कहिएगा कि कल को तुम्हारे पोते को यह बताया जाए कि तुम्हारे दादा का नाम किशनलाल नहीं बल्कि इस्तियाक था तो उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी?

जिहाद की भेंट चढ़ा बॉलीवुड

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1983 से 2006 तक जावेद अख्तर ने 14 और फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखी लेकिन उन 14 फिल्मों में भी एक भी मुस्लिम किरदार को नेगेटिव नहीं दिखाया, यानी 1970 से 2006 तक कुल 38 फिल्मों में जावेद अख्तर के किस्सों में एक भी मुस्लिम किरदार को विलेन के तौर पर नहीं दिखाया गया। ध्यान रहे उनमें से लगभग 60% फिल्में शुद्ध अपराध की कहानियों पर आधारित थीं। उन दिनों मुंबई में मुस्लिम गुंडों, तस्करों, हत्यारों, आतंकवादियों का अपराध कहर ढा रहा था। जिसके बारे में पूरा देश जानता है लेकिन जावेद अख्तर की लिखी हर कहानी का खलनायक हमेशा हिंदू था।

राष्ट्रवाद की प्रखर आवाज मनोज मुन्तशिर!

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मनोज मुन्तशिर! मुम्बई की विवादित दुनिया में खड़ा एक ऐसा व्यक्ति जो अब भी अपने व्यवहार में भारतीय संस्कार और हृदय में धर्म ले कर जीता है। जिसकी कलम बाहुबली फ़िल्म में चीख कर कहती है, "स्त्री पर हाथ डालने वाले की उंगलियां नहीं काटते, काटते हैं उसका गला!" मनोज…

द कश्मीर फाइल्स के बाद ‘कार्तिकेय टू’ का कमाल

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झूठ आकर्षक होता है, लेकिन सत्य असरकारक। झूठ का आकर्षण एक सीमा के बाद स्खलित हो जाता है, सत्य स्थापित हो जाता है। "जहां शिव सरस्वती ऋषि कश्यप हुए वह कश्मीर हमारा है" कहकर पूरे हिंदी पट्टी को अनुपम खेर ने कश्मीर की पूरी फाइल्स देश दुनिया में सार्वजनिक कर दी। कितनी सरलता से उन्होंने साधारण से लेकर पढ़े-लिखे तक को कश्मीर के बारे में समझा दिया। दक्षिण में जाकर यही अनुपम खेर अब कह रहे हैं, "..उन्होंने जो धर्म बताया था वह धर्म नहीं हमारा जीवन है", फिर कृष्ण के किरदार को कई रूपों में बताने लग जाते हैं। ये टीजर है कार्तिकेय टू का। कमाल की बात है कि दी कश्मीर फाइल्स ने जिस तरह से एक प्रकार की क्रांति को पूरे हिंदी प्रदेश के चेतन में भर दिया, ठीक उसी प्रकार कार्तिकेय टू के माध्यम से पूरे दक्षिण को झकझोर रहे हैं।

रविश कुमार और बॉलीवुड के बुरे दिन

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रवीश कुमार का जो वर्तमान टाइमलाइन है, बॉलीवुड के वर्तमान टाइमलाइन से बिल्कुल मिलता जुलता है। रवीश कुमार को अब देखा जाए तो वह सरकार से प्रश्न करके थक चुके हैं। अब वे सरकार से प्रश्न नहीं करते। अब वे सीधे जनता से प्रश्न करते हैं। अर्जुन कपूर की तरह जनता को ही धिक्कारते हैं। जनता को ही कटघरे में खड़ा करते हैं। जनता को ही माननीय जनता कहकर चिट्ठी लिखते हैं। मतलब है कि रवीश कुमार अपने राजनीतिक आचरण की निकृष्ट सीमा को लांघ चुके हैं। यासीन मलिक को गांधी के रास्ते पर चलने वाला बताना और अफजल गुरु के लिए न्याय की मांग करना रवीश कुमार का अपना एआइबी शो था।

‘ कार्तिकेय 2’ की IMDb रेटिंग गिराने की साजिश

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उन्होंने ट्विटर पर फिल्म के IMDb पेज का लिंक शेयर करते हुए कहा, “हमारी फिल्म ‘कार्तिकेय 2’ को इतना सारा प्यार देने के लिए आप सब का आभार। कुछ असामाजिक तत्व इस मूवी को 1 स्टार देकर इसकी IMDb रेटिंग को गिराने की साजिश में लगे हैं। भगवान श्रीकृष्ण ही सत्य हैं और सत्य की हमेशा विजय होनी चाहिए, सबसे पहले सत्य ही होना चाहिए। IMDb पर वोट कर के फिल्म का समर्थन करें। देशद्रोही तत्व इस फिल्म के बारे में नकारात्मक दुष्प्रचार कर रहे हैं।”

RSS पर बनेगी फिल्म और वेब सीरीज

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उन्होंने कहा, “4 साल पहले मुझे RSS पर फिल्म लिखने को कहा गया। इसीलिए मैंने नागपुर जाकर मोहन भागवत से मुलाकात भी की। मैं वहाँ 1 दिन रुका और पहली बार देखा-समझा कि RSS क्या है और कैसे काम करता है। मुझे काफी पश्चाताप हुआ कि मैं इतने महान संगठन से अब तक परिचित नहीं था।" उन्होंने बताया कि अब वो RSS पर फिल्म और वेब सीरीज, दोनों ही बनाने जा रहे हैं।

बॉलीवुड की खुदकशी

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बॉलीवुड ने अपने निजी स्वार्थ के लिए पूरे भारत की परम्पराओं, रिवाजों को बूरी तरह नुकसान भी पहुंचाया और युवा पीढ़ी को नशा, वैश्यावृत्ति और अपराध की ओर धकेल दिया, लिहाजा बरसों से एक पीढ़ी के मन में दबी हुई पीड़ा जमा होने लगी और देखते ही देखते एक के बाद फिल्में धड़ाम होती जा रही हैं। आज बॉलीवुड हिकारत का नाम बन गया है। लोग फिल्मों के फ्लॉप होने का ज्यादा इंतजार करते नजर आते हैं। नवयुग के इस दौर में लोगों का प्यार दक्षिण भारतीय फिल्मों की तरफ मुड़ गया है। इसे समझने की बजाय अब भी अर्जुन कपूर और ऋतिक रोशन जैसे बिना फिल्मों के लोग हेकड़ी में ऊटपटांग बोलकर बॉलीवुड को ही खत्म कर रहे हैं। समय बदल गया है यह जितना जल्दी समझ जाए बेहतर है क्योंकि अब इस समाज का हीरो सेना, खेल और वैज्ञानिक होने लगे हैं, नकली नचनिए नहीं। मन, विचार और व्यवहार से भारतीय जनमानस ने बॉलीवुड को पूरी तरह नकार दिया है यह तवारिख भी लिख ले जरा। "दी एंड"

ईरान में 1969 में बनी “गऊ”(“The Cow”) फिल्म का मर्म

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दारिउश मेहरजुई के निर्देशन में बनी इस फ़िल्म में इजातोल्ला इंतेजामी ने मुख्य भूमिका निभाई है। ईरान के हुक्मरान अयातोल्ला खोमैनी को यह फ़िल्म बहुत पसंद थी। इस फिल्म को देखने के बाद उन्होंने ईरान में गो हत्या पर प्रतिबंध लगा दिया था जो आज तक लागू है।

विख्यात कलाकार सईद जाफरी जी की डायरी का एक पन्ना

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मैं 19 बरस का था, जब मेहरुन् निसा से मेरी शादी हुई और वह 17 बरस की थीं। जैसे-जैसे मैं बड़ा हुआ, औपनिवेशिक भारत के ब्रिटिश कल्चर से प्रभावित होता चला गया। मैंने धाराप्रवाह इंग्लिश बोलना सीख लिया, ग्रेसफुली सूट पहनना सीख लिया, संभ्रात लोगों वाले एटिकेट्स भी सीख लिए। लेकिन मेहरुन् निसा मुझसे बिल्कुल उलट थी, वो एक टिपिकल हाउसवाइफ थी

मार्च, 1995 में एक फिल्म रिलीज हुई थी ‘Bombay’

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अब 'तूफान' रिलीज हो रही है, जुलाई में  फरहान अख्तर की फिल्म है, और 'Love - Equation' ठीक रखा गया है मतलब लडका 'मुस्लिम' है, और लडकी 'हिन्दू' !

‘आदर्श’ की तरह प्रस्तुत हों आदर्श

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कहा जाता है कि सिनेमा समाज को दर्पण दिखाता है परंतु यदि उसे माध्यम बनाने वालों का ध्येय शुद्ध ना हो तो वे समाज को गलत इतिहास और कथावस्तु से परिचित कराने का प्रयास करते हैं। तथ्यों से अपरिचित किशोर  और युवा उसी असत्य को सत्य मानकर आचरण करने लगते हैं।

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