औरंगजेब-टीपू सुल्तान से मुसलमानों को हमदर्दी क्यों?
क्या यह अच्छा नहीं होता कि औरंगज़ेब और टीपू सुल्तान जैसे कट्टर एवं मतांध शासकों को नायक के रूप में स्थापित करने या ज़ोर-जबरदस्ती से बहुसंख्यकों के गले उतारने की कोशिशों की बजाय मुस्लिम समाज द्वारा रहीम, रसखान, दारा शिकोह, बहादुर शाह ज़फ़र, अशफ़ाक उल्ला खां, खान अब्दुल गफ़्फ़ार खान, वीर अब्दुल हमीद एवं ए.पी.जे अब्दुल कलाम जैसे साझे नायकों व चेहरों को सामने रखा जाता? इससे समन्वय, सहिष्णुता एवं सौहार्द्रता की साझी संस्कृति विकसित होगी। कट्टर एवं मतांध शासकों या आक्रांताओं में नायकत्व देखने व ढूँढ़ने की प्रवृत्ति अंततः समाज को बाँटती है। यह जहाँ विभाजनकारी विषबेल को सींचती है, वहीं अतीत के घावों को कुरेदकर उन्हें गहरा एवं स्थाई भी बनाती है।