धीमी हो बदलाव की गति

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कुछ ही सालों के दौरान फिल्मों में जिस तरह तेजी से बदलाव आया यदि इसी तरह बदलाव आता रहा तो 2050 तक फ़िल्में कैसी होंगी? सकारात्मकता की ओर हम फिर लौटेंगे या नकारात्मकता अधिक बढ़ेगी? नई नई तकनीक हमें कहां ले जाएगी? हो सकता है कुछ सालों में ही हम चांद पर फिल्माई गई फिल्म देखें।

चटपटा नाश्ता

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गर्मियों के दिन हैं। बच्चों की छुट्टियां चल रही हैं। उन्हें शाम को भूख लग जाती है। कई बार शाम को मेहमान भी आ जाते हैं। हमेशा वही पोहा, उपमा, इडली, समोसा, वडा किसी को नहीं सुहाता। क्यों ना ऐसा चटपटा नाश्ता बनाया जाए जो नया हो बच्चों के साथ-साथ बड़ों को पसंद आए।

दाखिला अंग्रेजी स्कूल में

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“एक स्कूल में हम लोग गए तो शांत, सौम्य टीचर ने हमें ऐसे देखा जैसे अभी कह देगी कि जाओ जाकर कान पकड़ के बेंच पर खड़े हो जाओ। वैसे अगर वह ऐसा कह के भी एडमिशन दे देती तो हम पूरे दिन कान पकड़ कर बेंच पर खड़े होने को तैयार थे। बल्कि मुर्गा भी बन सकते थे।”

पी ले रे तू ओ मतवाला…

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१९३२ में 'मोहब्बत के आंसू' से अपना फ़िल्मी कैरियर शुरू करने वाले सहगल साहब को बड़ी पहचान मिली १९३५ में देवदास से. शरत बाबू के उपन्यास पर बनी यह फिल्म कुंदनजी की पहली बड़ी सुपरहिट फिल्म थी. फिर तो अगले ग्यारह साल के सुपरस्टार थे, सहगल बाबू. वैसे १९३४ में ही 'पूरन भगत' और चंडीदास' से ही लोगों को लग गया था कि बन्दे में पोटेंशियल है

भंसाली, पद्मावती और विवाद

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आम दर्शक सोलहवीं सदी के सूफी फकीर मलिक मोहम्मद जायसी के महाकाव्य ‘पद्मावत’ के पन्नों में चित्रित महारानी पद्मावती के सौंदर्य, वीरता और जौहर को सत्तर एमएम के पर्दे पर जरूर देखना चाहता है| लेकिन फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी के स्वप्न में रानी पद्मावती के आने  के कथित दृश्य को लेकर विवाद उपजा है| इस संबंध में जनभावनाओं को ध्यान में रखना जरूरी है|

बाहुबली भारतीय सिनेमा में नई क्रांति

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ऐसे समय में जबकि देश में राष्ट्रवादी विचारधारा का वर्चस्व अपने उरूज पर है, बाहुबली का इतना हिट होना एक और संकेत भी देता है। एक वरिष्ठ पत्रकार ने अपने फेसबुक पर लिखा ‘मनमोहन की जगह मोदी, अखिलेश की जगह योगी और अब दबंग की जगह बाहुबली, देश बदल रहा है।’ हम में से शायद ही कोई ऐसा शख्स हो जिसे बालीवुड और हालीवुड की फ़िल्में देखना न पसंद हो, मगर यदि आपको उनकी शूटिंग के पीछे की वास्तविक तस्वीर दिखा दी जाए तो आपका विश्वास उन फिल्मों पर से हट जाएगा। क्योंकि जो आप देखते हैं, असल में वैसा होता नहीं है। आ

वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी…

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बाजार की स्पर्धा ने मां-बाप और बच्चों के बीच दूरी पैदा कर दी है। बच्चे अकेले हो गए हैं। उनका अकेलापन मोबाइल, इलेक्ट्रानिक गेम और चैनल पूरा कर रहे हैं और हताशा में वे अनायास हिंसा को अपनाने लगे हैं। तितलियां अब भी गुनगुनाती हैं, आसपास मंडराती भी हैं, कागज भी है, कश्ती भी है, बारिश भी है; लेकिन बचपन खो गया है। कैसे लौटाये उस बचपन को? अखबारों में हमेशा की तरह खबरें पढ़ रहा था। ज्यादातर बेचैनी अखबारों से भी आती है। सामने आनेवाली खबर किस प्रकार से आपको बेचैन कर दे, कह नहीं सकते। ब्लू व्हेल गेम से सम्मोहित हो

पारंपरिक लोकनाट्य

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  उत्तर प्रदेश के इन लोकनाट्यों की चमक और आभा के कारण आज विश्व पटल पर हमारी एक विशेष पहचान है। ऐसे में हम सभी का यह कर्तव्य ही नहीं पूर्ण दायित्व है कि हम अपने इन अमूल्य लोकनाट्यों को संरक्षित कर प्रचार-प्रसार करते रहें। उत्तर प्रदेश भारत का एक ऐस

भारतीय चित्रपट संगीत

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भारतीय संगीत न केवल हमारी संस्कृति की अमूल्य निधि है वरन वह संगीत विश्व के इन सांगीतिक संस्कृतियों व कला संस्कृतियों की पोषक है; जिसने अपनी संवेदनाओं और मनोभावों को विभिन्न आयामों में प्रस्तुत किया। भारतीय संगीत बहुत व्यापक विषय है जिसने कई सांगतिक शैल

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