चालाक चोर

विमलापुर नामक एक नगर था, जो बहुत खुशहाल था; लेकिन नगर में कभी-कभी चोरी की घटनाएँ हो जाया करती थीं। करिया उसी नगर का एक चोर था। जो बहुच चालाक था। उसे कोई पकड़ नहीं पाता था। वह छोटी-मोटी चोरियाँ करके भागने में हर बार कामयाब हो जाता था।

एक दिन रात को जब वह किसी के यहाँ चोरी करने के इरादे से निकला था, तो रास्ते में एक अजनबी मिला। करिया समझ गया कि वह चोर ही होगा। बातचीत के दौरान दोनों समझ गए कि दोनों का एक ही काम (चोरी) है। अजनबी का नाम भैरव था। करिया ने भैरव से कहा, ‘‘उस टोपीवाले आदमी को देखो। वह बहुत अमीर लगता है। मैं उसके पास जाकर देखकर बताता हूँ कि उनकी जेब में क्या है और उसे पता तक नहीं चलेगा।’’
इतना कहकर वह वहाँ से गायब हो गया और थोड़ी देर बाद जब वापस आया तो उसके हाथ में एक बटुआ था। बटुआ खोलकर देखा गया, उसमें सोने के दस सिक्के थे।

यह देखकर भैरव ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘मैं तो इससे भी बढ़कर काम करके दिखा सकता हूँ। मैं मालिक को भी चोर साबित कर सकता हूँ।’’ उसने सोने के सिक्कों में से दो सिक्के निकाल लिये और उनके स्थान पर ताँबे के दो सिक्के रख दिए। उसके बाद वह वहाँ से गायब हो गया।

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