होली के सप्तरंगी नुस्खे

वसन्त आते ही मन ‘फागुन-फागुन’ होने लगता है। प्रकृति की एक-एक रचना में उल्लास फूट पड़ता है और रंग-गुलाल से सराबोर अंग-अंग दमकने लगता है। मन्सारा भी इन दिनों ‘फाग का राग’ छेड़ते, बालों में चमेली का तेल डाले वसन्ती बयार में निमग्न थे। आज सुबह से तो कुछ और ही खुले-खुले से लग रहे थे। घर से कार्यालय तक प्रफुल्लित मन से होली के गीत गुनगुनाते रहे। हमेशा गम्भीर मुद्रा में रहने वाले मन्साराम आज चहक-चहक कर फुलझड़ियां बिखेर रहे थे। कार्यालय में अपनी जगह पर बैग रखकर वे सीधे गुनवन्ती के पास जा पहुंचे। बिना प्रणाम अभिवादन किए सीधे बोल पड़े, ‘‘जानती हो गुनवन्ती, वसन्त आ गया है।’’ यह कहते हुए ऐसा भाव प्रकट किया कि जैसे वसन्त कहीं से निकलकर सीधे उनके कार्यालय में पहुंच गया है।

गुनवन्ती कौतुक से उनकी ओर देखती हुई बोली, ‘‘अच्छा, मुझे तो पता ही नहीं चला। कब आया, कहां पर है?’’

‘‘ऊं हूं! अरे भाई, मैं वसन्त ऋतु की बात कर रहा हूं। देखती नहीं चारों ओर कितना सुहाना मौसम है। फाल्गुन की रौनक देखते ही बनती है। इस बार मैं जमकर होली खेलूंगा। तुम्हारे यहां भी आऊंगा। इस बार हमने होली के कुछ नये नुस्खे खोजे हैं। अब तुमसे क्या छिपाना। तुम भी जान लो।’’
गुनवन्ती अब तक सहज हो गयी थी। मुस्कराते हुए उसने भी सुनने-जानने का भाव प्रकट किया। मन्साराम लगे बताने-

‘‘एक– होली खेलने के लिए कभी अधेले का रंग-गुलाल भी नहीं खरीदना चाहिए। जैसे ही कोई रंग लगाने आये, मौके का पूरा लाभ उठाते हुए तपाक से उसी का रंग-गुलाल उसे लगा दीजिए। और यदि बन पड़े तो अगले आक्रमण के लिए भी इसी समय रंग की व्यवस्था कर लीजिए। इससे दो लाभ होंगे-एक तो आपके पैसे बचेंगे, ऊपर से उसी का रंग प्रयोग करके ‘इदन्नमम् राष्ट्राय’ का आदर्श भी कायम रखेंगे।

दो– होली के एक दिन पहले से ही घर में खाने से परहेज करिए। होली के दिन सुबह होते ही अपना घर छोड़ दीजिए और किसी मित्र के यहां पहुंच जाइये। यह बात सर्वोच्च गोपनीय होनी चाहिए, और ध्यान रहे कि यह सूत्र आप पर ही कोई प्रयोग न कर बैठे। यदि रास्ते में एक-दो परिचित या मित्र मिल जाएं तब तो बात ही क्या? मित्र के घर पहुंचते ही भाभी जी की पाककला का गुणगान कर दीजिए। फिर देखिए, रसोई की सारी गुझिया, शंकरपारी, पापड़, लड्डू सब हाजिर। बस, पूरी कर लीजिए सारी कसर एक बार में ही। ऐसा आप कई जगह पर कर सकते हैं। इससे आपकी दो दिन की भूख तो मिटेगी ही, आपके मित्र भी आपके कौशल की प्रशंसा करने लगेंगे।

तीन– फाग गाते समय कोई-न-कोई वाद्य यन्त्र अपने साथ अवश्य रखिए, भले ही बजाना न आता हो। समूह में सुर के साथ सुर मिलाते हुए बाजे को पीटते रहिए। और साथ में बेसुरा ही सही गला फाड़-फाड़कर गाने कर स्वांग करते रहिए। इस तरह के अभिनय से आपके जैसे ही कई अन्य लोग भी इकट्ठा हो जाएंगे। और फिर आप का रंग जमने में देर नहीं लगेगी।

चार– होली के दिन पहनने के लिए कुछ कपड़े पहले से ही सम्हाल कर रख लीजिए। होली के दिन उसे पहनने से दिल फेंक होली खेलते समय कपड़े फटने की चिन्ता नहीं रहेगी। होली खेलते समय उसे जान-बूझकर फाड़ने का प्रयत्न करिए। यदि किसी और से फट जाए तो उसके प्रति ऐसा व्यवहार करिए कि जैसे कपड़े फटने की आपको कोई चिन्ता ही नहीं। ठीक है, ठीक है, कोई बात नही कहते हुए उसके प्रति अपनत्व का दिखावा कीजिए। ऐसा करने से सबके मन में आपके अच्छे व्यक्ति होने की छवि बन जाएगी।

पांच– आजकल होली प्रायोजित की जाती है। निमंत्रण देकर सबको होली खेलने के लिए सादर आमंत्रित किया जाता है। इधर-उधर से किसी होली के खिल्लाड़ से आमंत्रण-पत्र का जुगाड़ कर लीजिए। ऐसी होली में जाने-माने लोग आते हैं। फोटो खींचे जाते हैं। उनका टी. वी. पर प्रसारण भी होता है। कोशिश करें कि हमेशा कैमरे के सामने ही रहें। किसी भी बड़े व्यक्ति को रंग लगाकर उसका पैर छूना न भूलें। वह व्यक्ति विनम्रता से आपको उठाकर गले लगाएगा, भले ही वह आपसे अपरिचित हो। ऐसे मौके का फोटो देखकर लोग आपकी वाह-वाह कर उठेंगे। भला प्रसिद्ध लोगों के साथ आप अपनी घनिष्ठता सबको बतायेंगे ही।

छ:– कुछ लोग मिलकर सामूहिक होली का आयोजन करते हैं। इसके लिए चन्दे एकत्रित किए जाते हैं। अपने आस पास के कुछ जेब से कड़के और सड़क छाप लोगों को साथ लेकर आप भी एक ऐसा ही आयोजन अपने मुहल्ले में कर डालिए। चन्दा इकट्ठा कीजिए। लोगों को खेलने के लिए घर-घर जाकर बुला लाइये। खूब हुड़दंग कीजिए। इस व्यवस्था से आपकी अपनी संस्कृति के प्रति निष्ठा भी प्रकट होगी और एक-दो महीने के लिए जेब की कड़की भी दूर हो जायेगी।

सात– होली मनमुटाव दूर करने का त्योहार है। प्रेम-बन्धुत्व की गांठ को मजबूत करने का त्योहार है। यदि किसी से अनबन हो या सम्बन्धों में खटास आ गयी हो तो उसे मधुर बनाने का सबसे अच्छा अवसर मिलता है। बस, आपको थोड़ा सा प्रयास करके आगे बढ़कर पहले उस व्यक्ति को रंग-अबीर लगा देना होगा। किन्तु इस तरह का अभिनय करना होगा कि जैसे सब अनजाने में हो गया। बस, फिर देखते जाइये, वह व्यक्ति कितनी गर्मजोशी से आपसे मिलता है। सारे गिल-शिकवे दूर। प्रेम ही प्रेम।

मन्साराम होली खेलने के सप्तरंगी नुस्खे बताते-बताते उल्लास से एकदम भर गये। गुनवन्ती भी उनका उत्साह देखकर बहुत प्रसन्न थी। कार्यालय के अन्य कर्मचारी भी मन्साराम की बातें सुनकर आनन्द ले रहे थे। उनकी बात समाप्त होते ही सबने उन्हें उठा लिया। गुनवन्ती हर्षित मन से उनकी ओर देखकर बोली, ‘‘मन्साराम, तुम इस बार इन नुस्खों को आजमाने के लिए होली के दिन मेरे घर अवश्य आना। गुझिया-लड्डू बनाकर तुम्हारी मित्र मण्डली को अवश्य भरपेट खिलांगी।’’

गुनवन्ती का निमंत्रण पाकर मन्साराम का मन एक बार फिर फागुनमय हो गया।

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