प्यार का भूत

प्रेम करना कोई गुनाह नहीं है, प्रेम में जाति-धर्म, ऊंच-नीच का भी बंधन नहीं है, पर जीवन भर के साथ के लिए जिंदगी में सही निर्णय लेना बहुत जरूरी है, जो तुम्हें लेना है। सच्चा प्यार, विश्वास, संस्कार, परिवार, रीति-रिवाज आदि ये सब वैवाहिक जीवन के आधार हैं।

अठारह वर्षीय सानवी झूमती-गुनगुनाती हुई कमरे में आई और अपनी मां आरती के गले लग गई। उसकी आंखों की मस्ती इश्क की दासतां बयां कर रही थी। उसकी अल्हड़ हंसी से पूरा कमरा गूंज उठा था। आरती मुस्कराते हुए बोली ‘क्या बात है बेटा, आज चेहरे पर कुछ अलग ही नूर है। मुझसे कुछ छुपा रही हो क्या?’

सानवी की आंखों में शर्म के बादल मंडराने लगे थे। उसके गालों की लालिमा ने मानों उसके दिल की बात बिना कहे ही कह डाली थी। आरती ने मुस्कराते हुए पूछा ‘वह कौन है बेटा? क्या नाम है उसका?’

सानवी आरती से लिपट गई और उसके कान में धीरे से बोली ‘मां शकील। वो मेरे साथ पढ़ता है।’
सानवी ने अपना पर्स उठाया और बोली ‘मम्मी, मेरी क्लास है, मैं जा रही हूं। आकर सब बताती हूं।’

शकील यह नाम सुनते ही आरती की मुस्कराहट चिंता में बदल गई। उसे अपना अतीत याद आ गया था। वह एकदम सिहर सी गई। कहीं इतिहास अपने को दुहरा तो नहीं रहा। क्या उसकी बेटी भी तो जज्बाती नहीं हो रही? वो अभी अपना भला बुरा कहां सोच सकती है? अठारह की उम्र होती ही क्या है? आरती सानवी के विषय में सोचते-सोचते अपनी ही दुनिया में खो गई थी। उसके सामने रिज़वान का चेहरा घूमने लगा था। वह भी तो तब अठारह वर्ष की ही थी और रिज़वान तीस का। रिज़वान की प्यार भरी बातों ने कैसे उसे पागल सा बना दिया था। वह बिना कुछ सोचे समझे उसकी दीवानी हो गई थी। रिज़वान आरती के हुस्न की तारीफ में न जाने कितने शेर एक के बाद एक पढ़ता और वह उसके आशिकाना मिज़ाज पर मर मिटती और रोज छुप-छुप कर मिलती।

एक दिन रिज़वान बोला था ‘अल्लाह ने हम दोनों की जोड़ी बना कर भेजी है। मैं तुम्हारे लिए ज़माने से लड़ जाऊंगा। जानु, तुम्हारे बिना मेरा कोई वज़ूद ही नहीं है।’

कहते हुए उसने आरती का हाथ पकड़ लिया, पर वह डर गई थी वह रिज़वान से अपने को दूर करने का प्रयास करती पर प्यार की कसक में दीवानी आरती अपने को लाख प्रयास करने पर भी न रोक पाती। वह घर के संस्कारों की ओर झुकना चाहती थी, पर कम्बखत इश्क के सामने उसे कुछ दिखाई नहीं देता।

एक दिन रिज़वान ने कहा ‘अब नहीं रहा जाता तुम से दूर। मुझसे शादी कर लो न।’
वह रिज़वान से बोली ‘यह नहीं हो सकता। मेरे मम्मी, पापा कभी तुमसे मेरा विवाह नहीं करेंगे। मैं ब्राह्मण और तुम मुसलमान।’
‘तो फिर क्या करें? ज़िन्दगी भर छुप कर मिलते रहें? कभी पकड़े जाएं तो घरवालों से मार खाएं। आख़िर क्या चाहती हो तुम? कुछ तो तय करना ही होगा।’ रिज़वान ने खीजते हुए कहा था।

आरती ने रिज़वान के हाथ से अपना हाथ खींच लिया और बड़े दुखी मन से बोली ‘ठीक है आज से हम अपनी दोस्ती यहीं ख़तम करते हैं। जो संभव नहीं, उसे क्यों बढ़ाना?’

रिज़वान उसके करीब आकर उसकी आंखों में आंखें डाल कर बोला ‘आरती, क्या तुम मेरे बिना रह लोगी? मैं तो तुम्हारे बिना मर ही जाऊंगा।’
आरती उसका स्पर्श पाकर फिर उसके प्यार में गोते लगाने लगी थी। रिज़वान ने उसे कहा ‘आरती, क्यों न हम यह शहर छोड़ कर मुम्बई भाग चलें। वहां मेरा एक दोस्त है। वह हमारे रहने का सब इंतजाम कर देगा। हम लोग कोर्ट मैरिज कर लेंगे।’
‘नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकती। मैं अपने माता-पिता को धोखा नहीं दे सकती।’ आरती ने घबराते हुए कहा था।

रिज़वान ने थोड़ा बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा ‘ठीक है! मैं जिन्दा रहूं या न रहूं, तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। जाओ तुम अपने मम्मी, पापा की गोद में जा कर बैठो। मैं चलता हूं।’

आरती सकपका गयी थी और धृष्ट बनकर कह उठी ‘नहीं! ऐसा कुछ नहीं है। अच्छा बताओ क्या करना है।’
रिज़वान ने उसे कहा ‘कल शाम तुम मुझे यहीं पर मिलो। मैंने कुछ रुपयों का इंतजाम कर लिया है। थोड़े रुपये कम पड़ रहे हैं। क्या करूं कुछ समझ नहीं आ रहा। क्या तुम कुछ रुपये या जेवर ला सकोगी?’ आरती के पास तो अपनी पॉकेट मनी ही थी। वह बोली ‘मैं हजार रुपए ला सकती हूं।’ रिज़वान बोला ‘इससे क्या होगा? कुछ गहने या रुपये ला सको तब मुंबई में रहने का इंतजाम हो सकेगा।’

आरती के सिर पर प्यार का भूत सवार था। उसने अपनी मां के कुछ गहने और रुपए चुराए और रिज़वान के साथ चली गयी।
रिज़वान और उसके दोस्त पहले से ही वहां थे। विवाह से पहले मौलाना ने आरती का धर्म परिवर्तित कराया। दोस्तों ने उन्हें मुबारकबाद दी। दोनों की एक नई जिंदगी शुरू हो गई थी।

रिज़वान ने बड़ी खुशी से आरती से कहा ‘आरती! तुम कितनी लकी हो मेरे लिए। जैसे ही तुम मेरे जिंदगी में आईं, मुझे एक ़फैक्टरी में जॉब भी मिल गया। आई लव यू।’

जॉब मिलने की खबर से आरती का प्यार और भी बढ़ गया था। उसे लग रहा था कि इस दुनिया में उससे अधिक खुश कोई हो ही नहीं सकता।
रिज़वान उसे हर वह चीज़ लाकर देता, जिसकी उसे चाह होती। दिन और रात खुशी से बीतते जा रहे थे। शेर-ओ-शायरी और तारीफों के पुल पर इठलाती आरती स्वयं को स्वर्ग लोक की अप्सरा ही समझने लगी थी।

आरती के माता-पिता आरती के अचानक गायब हो जाने से महीने तक उसे शहर-शहर ढूंढ रहे थे। जब उन्हें पुलिस द्वारा आरती के मुंबई में होने की सूचना मिली, तब वे उसे घर वापस लाने के लिए वहां पहुंचे। रिज़वान से विवाह की बात जानकर माता-पिता का संसार तो पल भर में लुट गया था। उन्हें लग रहा था, जैसे किसी ने अचानक उनकी ऑक्सीज़न ही बंद कर दी हो।

आरती की मां विनीता ने रोते हुए कहा ‘आरती! यह क्या कर दिया? तूने तो हमारी इज्जत मिट्टी में मिला दी।’
आरती तो ढीठ सी हो गई थी। उस पर अपने माता-पिता के दुख का कोई प्रभाव नहीं था।

आरती के पिता सुरेश ने उसे साम, दाम, दंड, भेद सभी तरीकों से समझाना चाहा पर उस पर कोई असर नहीं हुआ।
दोनों बालिग थे। अतः कोई जोर जबरदस्ती भी नहीं की जा सकती थी।

माता-पिता अपना सा मुंह लिए घर वापस आ गये। उनके पास रोने के अलावा कुछ नहीं बचा था। समाज के ताने सुन कर उन्होंने घर से निकलना ही बंद कर दिया था। जिंदगी में उनकी प्यारी लाड़ली ऐसे दिन दिखायेगी, उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था। आरती की मां विनीता तो इस सदमें को बर्दाश्त ही नहीं कर पाई। तीन महीने बाद ही उनको दिल का दौरा पड़ा और वह स्वर्ग सिधार गई। पिता शहर छोड़कर दूसरे शहर में जा बसे थे।

आरती और रिज़वान की महकती, चहकती जिंदगी में एक वर्ष बाद उनके घर में एक नन्ही सी प्यारी बेटी ने जन्म लिया था। आरती बेटी के साथ व्यस्त रहने लगी थी और रिज़वान देर से घर आने लगा था। अचानक आरती को रिज़वान का व्यवहार रूखा लगने लगा था। वह ज्यादा समय से घर से दूर रहता।

एक दिन आरती किसी काम से मॉल गई तब उसने रिज़वान को अपराधी से दिखाई देने वाले लोगों से बात करते देखा। वह बुरी तरह डर गई थी। उसे लगा था कि उसके पति को कुछ गुंडों ने घेर लिया है पर जब उसने देखा कि रिज़वान तो उनसे हंस कर बातें कर रहा है, वह छिपकर उनकी बातें सुनने लगी थी। उसे यह समझते देर नहीं लगी कि वे लोग लड़कियों को बेचने की बात कर रहे हैं। उसका दिल बैठ गया। क्या रिज़वान यह धंधा करता है, पर उसने तुरंत ही सोचा उसका रिज़वान कोई गलत काम नहीं कर सकता।

पर जो भी हो, उसके मन में शंका तो जागृत हो ही गई थी। वह जानना चाहती थी, उसके पति से उन लोगों का क्या संबंध है? दिन गुजरते जा रहे थे। आरती छिप कर रिज़वान का मोबाइल देखती, सारे मेसेज पढ़ती। वह उसकी असलियत पता करने की कोशिश में लग गई थी। रिज़वान ने उसे अपनी शिक्षा और जॉब के विषय में भी सब गलत बताया था। आरती समझ गई थी कि वह प्यार के नाम पर ठगी जा चुकी है। धीरे-धीरे उसे पता लग गया था कि वह वास्तव में लड़कियों को प्रेमजाल में फंसाता है, उनका धर्म बदलवाता है और फिर उन्हें किसी शेख के हाथ बेच देता है।

एक दिन आरती ने रिज़वान से सच कह दिया था ‘मैं जान चुकी हूं कि आप क्या करते हो, मैंने आपके हैदराबाद वाले दोस्तों की बातें मोबाइल में रिकॉर्ड कर ली हैं। कहो तो तुम्हें सुना दूं। मैं तुम्हारी अगली शिकार मीतू उर्फ शकीला के विषय में भी जान चुकी हूं।’

रिज़वान अपने झूठ की पर्तों को खुलते हुए देख बौखला सा गया था। उसके मुखौटों की धज्जियां उड़ चुकी थीं। वह अब अपने असली रूप में आरती के सामने प्रकट हो चुका था। उसका प्यार अब गाली और थप्पड़ में बदल चुका था।

उसने आरती को गाली देते हुए धक्का दिया और कहा ‘बदचलन औरत! अभी तो तेरा धर्म बदलवाया है, ज़्यादा बक-बक करेगी तो शेख के हाथ बेच दूंगा। फिर सड़ती रहना। तेरी जैसी गिरी हुई, बेवकूफ़ लड़कियों से ही तो मैं धन कमाता हूं और हुस्न के मजे लेता हूं।’
रिज़वान की असलियत अब उसके ही मुख से आरती के सामने आ चुकी थी। जिस रिज़वान को वह अपना जीवनसाथी समझ रही थी, वही धोखेबाज निकला। आरती को लगा था स्वर्णिम महल से उठा कर उसे किसी ने गर्त में डाल दिया हो।

उस दिन आरती को अपने माता-पिता बहुत याद आए थे। रिज़वान के प्रेम में अंधी हो कर उसने तो अपने माता-पिता से ही रिश्ता तोड़ लिया था और पढ़ाई भी बीच में छोड़ दी थी। आरती को समझ नहीं आ रहा था कि वह रिज़वान जैसे राक्षस से कैसे बदला ले। छोटी सी बच्ची को लेकर कहां जाये।

उसने रोते रोते अपने पिता को फोन किया ‘पापा! प्लीज मुझे माफ कर दीजिएगा। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है।’
बेटी की रोती हुई आवाज़ सुनकर पिता को बहुत गुस्सा आया।

उन्होंने आरती से कहा ‘हमारे लिए तुम मर चुकी हो, अपने दुख-दर्द सब रिज़वान से बांटो। तुमने तो अपनी करतूतों से अपनी मां की जान भी ले ली। अब क्या लेना चाहती हो?’

मां की मृत्यु का समाचार इस तरह सुनकर आरती का मन दहाड़ें मारकर रोने के लिए कर रहा था, पर उसने अपने आप को संभाला, क्योंकि वह पब्लिक बूथ से बात कर रही थी। उसने पापा से कहा ‘पापा, मैं बहुत बड़ी मुसीबत में हूं। प्लीज मुझे आने के लिए मना मत करिए। मैं कल आपके पास पहुंच रही हूं।’

बेटी की इतनी घबराई हुई आवाज़ सुनकर कुछ ही पल में आरती के पिता सुरेश का मन पिघल गया था। वे बेटी से कुछ न बोले पर उनका क्रोध आंसुओं में परिवर्तित हो गया था।

आरती रिज़वान के घर पहुंचने से पहले ही घर से चुपचाप निकल गई। पिता के घर पहुंचकर उसने रोते-रोते पिता को सारी कहानी सुनाई। वह अपनी मूर्खता पर बड़ी शर्मिंदा थी।

सुरेश के सामने एक बड़ी समस्या आन खड़ी थी, अब क्या करें? बेटी की सुरक्षा का प्रश्न सामने था। उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट की। तलाक के कागजात तैयार करवाए और फिर जिंदगी तीन साल के लिए कोर्ट कचहरी के नाम हो गई थी। तारीखों पर तारीख लगती रहतीं। रुपया भी पानी की तरह बहता जा रहा था। पर अंत भला तो सब भला। आरती केस जीत गई थी। उसका धर्म भी पुनः बदल गया था। आरती के पिता सुरेश ने आरती की जिंदगी की सच्चाई बताकर विपुल के साथ उसका विवाह करवा दिया था। वह विपुल के साथ बहुत खुश रहने लगी थी।
नदी के बहाव की तरह आरती भावों में बहती जा रही थी। तभी उसे लगा कि सानवी लौट आई है। उसने निर्णय किया कि वह अपनी बेटी को प्यार से समझाएगी। उसने उस दिन अपनी पूरी कहानी सानवी को सच-सच सुनाई और कहा बेटा ‘मुझे और तुझे तो विपुल ने संभाल लिया। बेटा, प्रेम करना कोई गुनाह नहीं है, प्रेम में जाति-धर्म, ऊंच-नीच का भी बंधन नहीं है, पर जीवन भर के साथ के लिए जिंदगी में सही निर्णय लेना बहुत जरूरी है, जो तुम्हें लेना है। सच्चा प्यार, विश्वास, संस्कार, परिवार, रीति-रिवाज आदि ये सब वैवाहिक जीवन के आधार हैं। बेटा, अपना जीवन साथी बहुत सोच समझकर चुनना। प्यार में कहीं ठग मत जाना। इस बात पर ध्यान देना कि असली प्यार और आकर्षण में बहुत अंतर होता है। प्यार में त्याग होता है; आकर्षण शारीरिक होता है। प्यार दिल की गहराइयों से किया जाता है। बेटा, मेरी जैसी गलती मत करना।’ यह सब कहते हुए उसकी आंखों से आंसुओं की दो बूंद पलकों में आकर सिमट गई। जीवन की यह कहानी सुनकर सानवी भी बेचैन हो उठी थी। अब निर्णय उसे करना था।

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