जयंती विशेष: लक्ष्मणराव इनामदार से नरेंद्र मोदी को क्यों है इतना लगाव?

संघ का प्रत्येक स्वयंसेवक उन्हें ‘वकील साहब’ के नाम से जानता था जबकि संघ के बाहर के लोग उन्हें लक्ष्मणराव इनामदार के नाम से जानते थे। वह बहुत ही सरल जीवन व्यतीत करते थे और पूरा जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया था, वैसे तो उन्होंने बहुत सारे स्वयंसेवकों को शिक्षा दी और देश सेवा के लिए उन्हें प्रेरित किया लेकिन उनमें से पीएम नरेंद्र कुछ खास लोगों में से थे जो बहुत अधिक प्रभावित हुए और उसका उदाहरण आज पूरा देश देख रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की कई पुस्तकों में भी लक्ष्मणराव इनामदार और उनके बीच के रिश्ते को दर्शाया गया है जो दोनों लोगों के बीच की नजदीकियों को बताता है। पीएम मोदी को उनके अनुशासन के लिए जाना जाता है और कहा जाता है कि यह अनुशासन उन्होंने वकील साहब से ही सीखा था।  
लक्ष्मणराव इनामदार का जन्म 21 सितंबर 1917 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के एक गांव में हुआ था। इनका परिवार काफी बड़ा था लेकिन सभी लोग एक साथ रहते थे जिससे इनामदार में सभी को साथ लेकर चलने की भावना पैदा हुई और वह आखिरी समय तक पूरे देश को एक साथ लेकर चलने में बदल गयी। ‘इनामदार’ शब्द को लेकर कहा जाता है कि लक्ष्मणराव के पूर्वज कृष्णराव खटावदार ने छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ काम किया था और राष्ट्र की सेवा की थी। छत्रपति शिवाजी के पुत्र संभाजी महाराज ने खुश होकर उन्हें इनाम के तौर पर कुछ भूमि और ‘सरदार’ की उपाधि दे दी जिसके बाद से यह परिवार ‘इनामदार’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
लक्ष्मणराव जी ने अपनी शिक्षा महाराष्ट्र से ही पूरी की लेकिन संघ में उनका कार्यक्षेत्र गुजरात रहा। सन 1943 में उन्होंने पुणे से वकालत की पढ़ाई पूरी की और उसी समय यह संघ से जुड़े। संघ परिवार उन्हें इतना पसंद आया कि फिर वह मुड़कर पीछे नहीं गए और धीरे धीरे राष्ट्र सेवा में लीन हो गये। 1952 में लक्ष्मणराव को गुजरात का प्रांत प्रचारक बनाया गया जिसके बाद वहां संघ शाखा तेजी से बढ़ने लगी और मात्र 4 सालो में 150 से अधिक शाखा लगने लगी। गुजरात में संघ काम की नींव डालने वालों में से एक लक्ष्मणराव जी थे और उन्हें वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गुरु भी माना जाता है और इस बात का उल्लेख कई पुस्तकों में भी मिलता है। नरेंद्र मोदी जब संघ के प्रचारक बने तब इनामदार प्रांत प्रचारक की भूमिका थे और यहां पर दोनों के बीच में एक खास रिश्ता देखा गया।
सन 1973 में उन्हें संघ की तरफ से क्षेत्र प्रचारक का दायित्व मिला जिसके बाद उनका कार्यक्षेत्र बढ़ गया और वह गुजरात के साथ साथ महाराष्ट्र, विदर्भ और नागपुर में भी प्रवास करने लगे। इस दौरान उन्हें अखिल भारतीय व्यवस्था प्रमुख का भी दायित्व दिया गया। उन्होंने अपना हर दायित्व बखूबी निभाया और सभी के लिए एक मिसाल बनते गये। संघ कार्य जैसे जैसे बढ़ता जा रहा था वैसे ही उनका शरीर भी अब वृद्धावस्था की तरफ चल चुका था और 1983 तक उनकी तबियत खराब होने लगी जिसके बाद उनका इलाज शुरू हुआ। इस दौरान तमाम संपन्न स्वयंसेवकों ने उनका इलाज कराने की इच्छा जाहिर की लेकिन उन्होंने मना कर दिया और अंत में 15 जुलाई 1985 को कैंसर की वजह से पुणे में उनका निधन हो गया।
 
दुनिया में एक अच्छा इंसान बनना सबसे कठिन पूर्ण चुनौती होती है लेकिन कुछ लोगों में ऐसी आदत होती है कि वह सभी के प्रिय हो जाते है और लक्ष्मणराव जी भी कुछ ऐसे ही इंसान थे। संघ कार्य के दौरान वह सभी छोटे व बड़ों का ध्यान रखते थे जो भी स्वयंसेवक किसी कारणवश संघ से दूर गया था वह उससे भी मिलते थे और उसकी किसी भी परेशानी या दुख में शरीक होते थे। सभी लोगों का ध्यान रखने के साथ साथ वह खुद का भी काफी ध्यान रखते थे इसके लिए वह प्रतिदिन व्यायाम, प्राणायाम, योग और साप्ताहिक उपवास भी रखते थे इससे न सिर्फ उनका शरीर स्वस्थ था बल्कि मन से भी हमेशा तरोताजा रहते थे। 

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