धनतेरस — लोक में ऐसा प्रचलन है कि इस दिन स्वर्ण, चांदी, तांबे की खरीदी करना शुभ होता है। इसलिए लोग जमकर आभूषण इत्यादि खरीदते हैं। आइए! समझते हैं धनतेरस क्या है? धनतेरस में दो शब्द है पहला है धन जिस का सामान्य अर्थ लगाया जाता है पैसा रुपया सोना चांदी आदि और तेरस का अर्थ है त्रयोदशी। “धनतेरस” के दिन त्रयोदशी तिथि होती है। कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस मनाया जाता है। पर त्रयोदशी को स्वर्ण आदि आभूषण खरीदने से क्या लाभ और शुभ? क्या साल भर ज्वेलरी की दुकानें बंद रहती है? क्या दूसरे दिन खरीदना अशुभ है? नहीं? फिर धनतेरस का क्या मतलब?
धन का सबसे पहला अर्थ है – शरीर, “पहला सुख निरोगी काया, दूसरा सुख घर में हो माया”, माया तो दूसरे स्थान पर है। पहली संपत्ति तो हमारा शरीर है। आपसे कोई आपके शरीर का कोई अंग मांग ले बदले में कई लाख रुपए देने की बात कहे तो आप कदापि नहीं मानेंगे। इसका मतलब पहला धन तो आपका शरीर ही है। इससे बड़ा कुछ नहीं है अब रहा धनतेरस से क्या मतलब है? आयुर्वेद के बहुत बड़े ऋषि हुए हैं – महर्षि धन्वंतरि। उन्होंने बताया शरीर रूपी धन। उन्होंने शरीर को सबसे बड़ा धन बताया है। इसलिए पहला धन तो शरीर है यदि आप स्वस्थ रहें, निरोग है तो संपत्ति और भी कमा सकते हैं। आपका सुंदर स्वास्थ्य ही आपका धन है। धन्वंतरि के स्मरण में हम त्रयोदशी को “धनतेरस” मनाते हैं। शरद ऋतु में शरीर का ध्यान रखना यह आयुर्वेद के अनुसार भी बहुत जरूरी है। क्योंकि शरद ऋतु में ध्यान रखा गया शरीर पूरे साल भर स्वस्थ रहता है। “जीवेम शरदः शतम्” इस मंत्र के भाग में शरद शब्द का उल्लेख है अर्थात् हम सौ वर्ष तक जिए हम सौ शरद ऋतु देखें। शरद ऋतु की उपेक्षा करके कोई व्यक्ति सौ वर्ष तक नहीं जी सकता। इसीलिए हमारा पहला धन शरीर है। परंतु व्यक्ति संपत्ति कमाने के लिए इस अनमोल शरीर और मानव जन्म को दांव पर लगा देता है। फिर शरीर ठीक करने के लिए पूरी संपत्ति को गवां देता है। इसलिए आइए असली धन को समझें और धनतेरस ऐसे ही मनाएं।