चैत्र शुक्ल प्रतिपदा : हिंदू नववर्ष का महत्व

प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक दिवस : प्रभु राम ने भी इसी दिन को लंका विजय के बाद अयोध्या में राज्याभिषेक के लिये चुना।
लंका विजय के पश्चात विभीषण और सुग्रीव के साथ। पुष्पक विमान द्वारा विदेहकुमारी सीता को वन की शोभा दिखाते हुए योद्धाओं में श्रेष्ठ श्रीरामचन्द्र जी ने किष्किन्धा मे पहुँचकर अंगद को, जिन्होंने लंका के युद्ध में महान् पराक्रम दिखाया था, युवराज पद पर अभिषिक्त किया।
इसके पश्चात लक्ष्मण तथा सुग्रीव आदि के साथ श्रीरामचन्द्र जी जिस मार्ग से आये थे, उसी के द्वारा अपनी राजधानी अयोध्या की ओर प्रस्थित हुए।तत्पश्चात अयोध्यापुरी के निकट पहुँचकर श्रीराम ने हनुमान को दूत बनाकर भरत के पास भेजा।
जब वायुपुत्र हनुमान जी भरत की सारी चेष्टाओं को लक्ष्य करके उन्हें श्रीरामचन्द्रजी के पुन: आगमन का प्रिय समाचार सुनाकर लौट आये, तब श्रीरामचन्द्रजी नन्दिग्राम में आये।
वहाँ आकर श्रीराम ने देखा भरत चीरवस्त्र पहने हुए हैं, उनका शरीर मैल से भरा हुआ है और वे श्रीराम की चरण-पादुकाएँ आगे रखकर कुश आसन पर बैठे हैं। लक्ष्मण सहित पराक्रमी श्रीरामचन्द्रजी भरत तथा शत्रुघ्न से मिलकर बहुत प्रसन्न हुए। भरत और शत्रुघ्न को भी उस समय बड़े भाई से मिलकर तथा विदेहकुमारी सीता का दर्शन करके महान् हर्ष प्राप्त हुआ।
फिर भरतजी ने बड़ी प्रसन्नता के साथ अयोध्या पधारे हुए भगवान श्रीराम को अपने पास धरोहर के रूप में रखा हुआ अयोध्या का राज्य अत्यन्त सत्कारपूर्वक लौटा दिया। और चैत्र शुक्ल एकम् (प्रतिपदा) के पवित्र दिन श्रीराम का राज्याभिषेक संपूर्ण हुआ ।

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