दिखावा तन ढंकने से ज्यादा जरूरी है…

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भौतिक जीवन हम सब पर इतना अधिक हावी हो चुका है कि हमने शरीर ढंकने वाले वस्त्रों को भी शानोशौकत की वस्तु बना लिया है। महंगे कपड़े और उनके दुहराव से बचने की प्रवृत्ति बेमतलब का बोझ लाद रही है। आवश्यकता है कि पश्चिम के अनुकरण के नाम पर बहने की बजाय भारतीय परिवेश और मौसम के अनुकूल कपड़ों का चयन करें।

बदला नहीं बदलाव

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राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय महिलाओं के बढ़ते मजबूत कदम जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उनके तेजी से बढ़ते प्रभाव को दर्शाते हैं। कुछ कर गुजरने का यह जज्बा राष्ट्र और समाज की प्रगति के सार्थक मोड़ों का द्योतक है। यही सच्चा नारीवाद है जो अपने पिछड़ेपन के लिए किसी वर्ग पर आरोप लगाने की बजाय अपनी प्रगति के दम पर उस रेखा को छोटा करने का प्रयास करता है।

काम करे मशीन शरीर करे जिम

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People on Treadmills
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आधुनिकता के नाम पर हम सुविधाभोगी और परजीवी होते जा रहे हैं। अपने पूर्वजों के विपरीत मेहनत करने की प्रवृत्ति से जी चुराने की वजह से हमारे शरीर में तमाम शारीरिक बीमारियां घर करती जा रही हैं और उनसे छुटकारा पाने के लिए डॉक्टर हमें जिम ‘ज्वाइन’ करने की सलाह देते हैं जबकि  ज्यादातर मामलों में हम अपनी जीवन शैली में बदलाव करके शरीर फिट रख सकते हैं।

जब ब्राजील ने जर्मनी की दीवार ढहा दी 

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कान के निचले हिस्से से भी दो इंच तक की कलमों वाला यह खिलाड़ी अपनी टीम को लगभग अपने बूते पर फाइनल में लेकर आया था। वह तो लीग मैच में आयरलैंड के रोबी कीन ने पता नहीं कहां से दीवार में हल्की सी छेंद कर दी थी वरना दुनिया भर की सारी आंधियां इससे टकराकर वापस लौट जाती थीं।

भारत की बेटी जिसने एवरेस्ट विजय की

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प्रख्यात अंग्रेजी लेखक सर सलमान रुश्दी ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रेन’ में लिखते हैं कि, तारीख और समय बहुत मायने रखते हैं।  आज भी हम इन दोनों की बात करेंगे क्योंकि तारीखों के साथ ही साथ समय भी इतिहास का हिस्सा होता है। हां, तो हम बात करते हैं। दिन और समय नोट…

मधुमक्खी से संचालित होता है प्रकृति का चक्र

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आज पांचवा विश्व मधुमक्खी दिवस है। पर्यावरण प्रणाली में मधुमक्खियों के महत्व और उनके संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से हर वर्ष 20 मई को विश्व मधुमक्खी दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इसे मनाने का प्रस्ताव स्लोवेनिया के बीकीपर्स एसोसिएशन के नेतृत्व में 20 मई 2017 को संयुक्त राष्ट्र के सम्मुख रखा गया था, जबकि…

कहानी वैक्सीन के जन्मदाता की

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2019 की शुरुआत में पूरी दुनिया एक नयी बीमारी कोविड-19 की चपेट में आ गयी थी। साल के उत्तरार्ध में लगभग हर बड़े देश और दवाओं पर अनुसंधान करने वाली कम्पनी को उपचार के तौर पर बस एक ही विकल्प दिखाई दे रहा था। सबको पता था कि इस बीमारी…

…ऑस्कर, नाम तो सुना ही होगा !!

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विश्व का शायद ही कोई कोना हो जहां इंसान  रहते हों और फिल्में ना देखी  जाती हों। कहीं बड़े धूमधाम से बनती हैं और लोग उनके रिलीज होने का महीनों या सालों इंतजार करते हैं, तो कहीं पर लोग तमाम प्रतिबंधों के बावजूद चोरी-छिपे देख ही लेते हैं। कट्टप्पा ने बाहुबली…

जब 24 साल पहले भारत ने दुनिया को चौंकाया था

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अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में वर्तमान सरकार ने अभी कामकाज संभाला ही था कि 11 और 13 मई को भारत ने एक ऐसा कारनामा कर दिखाया कि पूरी दुनिया दंग रह गई। उस समय भारत पर अंतरराष्ट्रीय दबाव काफी ज्यादा था, लेकिन तत्कालीन प्रधान मंत्री  ने तय किया कि किसी भी हाल में परीक्षण…

जगा देश का वीर सपूत, बापा का बीर बबर जागा

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 उन्होंने राष्ट्रप्रेम, सर्वधर्म सद्भाव, सहिष्णुता, करुणा, स्वाधीनता के लिए युद्ध, नीतिगत आदर्शों की पालना, मानवाधिकारों की सुरक्षा, स्त्री सम्मान, पर्यावरण एवं जल संरक्षण सर्वसामान्य को आदर तथा साहित्य एवं संस्कृति के प्रति सम्मान में बहुत योगदान दिया तथा विश्ववल्लभ और व्यवहार आदर्श जैसे दो ग्रथों की रचना भी करवाई। उन्होंने देश की सम्रद्धि बनाए रखने के लिए प्रताप ने धातुओं की खदानों की सुरक्षा की ओर प्रमुखता से ध्यान दिया। महाराणा की समाधि चावंड के निकट बान्डोली गांव में है।

तबला वादन को नई उंचाई देने वाले किशन महाराज

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विद्यार्थी जीवन से ही मेरा संकटमोचन मंदिर जाने का क्रम रहा है। आज भी गांव जाने पर कोशिश रहती है कि हर शनिवार को अपने दर्शन कर सकूं। 1995 से लेकर 1999 तक मैं साइकिल से जाता रहा था।  इसी दौरान पिपलानी कटरा में साइकिल की बड़ी दुकान के सामने…

भगवान को फ़िल्मी परदे पर उतारने वाले दादासाहेब फालके

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1910 का क्रिसमस का दिन। हिंदुस्तान में अंग्रेजी राज की आर्थिक राजधानी बंबई रौशनी से नहायी थी। सत्ताधारियों के भगवान के जन्मदिन का त्यौहार हर किसी को लुभा रहा था। अभी वह दौर नहीं आया था कि अंग्रेजियत के बहिष्कार का नारा माहौल में घुला हो। लाल-बाल-पाल का गरम दल अभी…

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