आत्मनिर्भरता एकांगी विचार नहीं है

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कोरोना संकट, इस दौरान सेवा कार्यों, आत्मनिर्भर भारत, राम मंदिर से उत्पन्न आत्मसम्मान की भावना आदि अनेक विषयों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह मा. भैयाजी जोशी से ‘हिंदी विवेक’ की विशेष भेंटवार्ता के महत्वपूर्ण अंश यहां प्रस्तुत हैं-

जनसंख्या वृद्धि पर सबके लिए समान नीति हो

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समाज का एक तबका परिवार नियोजन अपनाए और दूसरा तबका न अपनाए तो विवेकहीन जनसंख्या वृद्धि हो जाती है। अतः सभी के लिए समान जनसंख्या नीति व उसके लिए कानून बनाने की आवश्यकता है। यह धर्म का मुद्दा नहीं है। कोई भी धर्म परिवार नियोजन के खिलाफ नहीं है; यहां तक कि इस्लाम भी।

आत्मनिर्भरता से ही बनेगा नया भारत

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देश को सामाजिक, आर्थिक विकास एवं पारदर्शी और जवाबदेह शासन प्रदान करने के लिए मोदी सरकार प्रतिबद्ध है। आत्मनिर्भर भारत इस तरह नए भारत की ही संकल्पना है। मोदी जी के नेतृत्व में भारत के सतत विकास के पथ पर आगे बढ़ने और नई ऊंचाइयों को छूने की उम्मीद है।

यह विश्वास जगाओ कि हम कर सकते हैं -आचार्य रमेशभाई ओझा

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‘हिंदी विवेक’ आत्मनिर्भर भारत वेब शृंखला में प्रसिद्ध धर्म गुरु आचार्य रमेशभाई ओझा से देश के आध्यात्मिक माहौल पर विस्तार से हुई भेंटवार्ता के कुछ महत्वपूर्ण सम्पादित अंश यहां प्रस्तुत हैं।

शिक्षा का भविष्य और भविष्य की शिक्षा

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नई शिक्षा नीति का उद्देश्य ज्ञान आधारित जीवंत समाज का विकास रखा गया है जिसे प्राप्त करने के लिए विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों को पर्याप्त लचीला बनाया जाएगा। यह भारतीय शिक्षा पद्धति को राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना के अनुरूप संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था को लोकतांत्रिक बनाने के प्रयास की अभिव्यक्ति है।

नई शिक्षा नीति आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बढ़ता कदम

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लगभग 35 वर्षों बाद नई जीवनानुकूल शिक्षा प्रणाली आ रही है। नई शिक्षा नीति में ऐसे छात्रों का निर्माण होगा, जो भारत की जड़ों से जुड़े रहें और आधुनिकता के साथ भी कदम मिलाए। इसलिए इस नीति का स्वागत ही किया जाना चाहिए, क्योंकि यह आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बढ़ा एक और महत्वपूर्ण कदम है।

आत्मनिर्भर भारत

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एक हजार वर्ष पहले, वैश्विक बाजार में, हम जिस शिखर को छू रहे थे, उसकी ओर जाने का मार्ग अब दिखने लगा है। यह ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’, हमारे देश का चित्र और हमारा भविष्य बदलने की ताकत रखता है।

आत्मनिर्भर भारत का गंतव्य

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अलग-अलग कुशल समूह यह सामाजिक पूंजी है। उसे कुशलता से उत्पादन क्षेत्र में उपयोग किया जाना चाहिए। फिर हमें ध्यान में आएगा कि हमारी उत्पादन क्षमता अपार है। हमारी बराबरी विश्व का कोई भी देश नहीं कर सकता। आत्मनिर्भर भारत का यह अंतिम गंतव्य स्थान है।

आत्मनिर्भर भारत: घोषणा नहीं कृति आवश्यक

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देश के आत्मनिर्भर होने का अर्थ है जितना हम आयात करते है उससे कुछ गुना अधिक निर्यात अवश्य हो। जितना हम विदेशों से लें उससे अधिक उन्हें देने की क्षमता विकसित करें। आत्मनिर्भर बनने की दिशा की ओर बढ़ते समय यह अतिविश्वास भी न रखें कि हम सब कुछ कर सकते हैं और यह न्यूनगंड भी न पालें कि भारत में कुछ हो ही नहीं सकता। ये दोनों ही विचार हमारी राह का रोड़ा बन सकते हैं। हमें हमारे बलस्थान और कमजोर पक्ष दोनों पर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा।

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