भोग्य नहीं अब योग्य हूं
आज की नारी समय की मांग के अनुरूप बनाने का प्रयास कर रही है। नगरीय, महानगरीय, भौतिकवादी और भूमंडलीय संस्कृति में महिला सशक्तिकरण का एक प्रभावशाली दौर चल रहा है।
आज की नारी समय की मांग के अनुरूप बनाने का प्रयास कर रही है। नगरीय, महानगरीय, भौतिकवादी और भूमंडलीय संस्कृति में महिला सशक्तिकरण का एक प्रभावशाली दौर चल रहा है।
१. ऋक्, यजुः, साम और अथर्व - ये चार मंत्र संहिताएं ही ‘वेद’ हैं। इन चार मंत्र संहिताएं ही ईश्वर-प्रणीत अथवा अपौरुषेय ज्ञान-पुस्तकें हैं। इन चार के अतिरिक्त जो भी पुस्तकें हैं -मान्य या अमान्य, वे सब मनुष्यों द्वारा रचित अर्थात् पौरुषेय हैं।
मोदी सरकार ने महिलाओं के सर्वांगीण विकास के लिए विभिन्न कदम उठाए हैं। ग्रामीण से लेकर शहरी और कामकाजी महिलाओं तक सभी का इन योजनाओं में ध्यान रखा गया है।
इसी सूची में भगत सिंह के दादा जी अजीत सिंह का नाम भी आता है। भगत सिंह कहा था कि मेरे दादा जी ने जनेऊ के समय मुझे देश को भी समर्पित कर दिया था। भगत सिंह जलियांवाला कांड को देख कर अत्यंत भावुक हुए और उनका खून खौल पड़ा। उन्होंने नौजवान भारत सभा बनाई और चंद्रशेखर आज़ाद, सुखदेव और राजगुरु से मिल कर लाला लाजपत राय की हत्या का बदला सैंडर्स को गोली मार कर लिया।
गौतम बुद्ध को इसीलिए वेदों के विरुद्ध आवाज उठानी पडी। लेकिन स्वामी दयानंद सरस्वती ने वेदों का सही और युक्तिसंगत अर्थ करके समाज में चल रही उन भ्रांतियों का द़ृढ़ता से निराकरण किया। आर्य समाज के जो दस नियम उन्होंने बनाए हैं वे भी मनुष्य मात्र के लिए उपयोगी हैं। इनमें कहीं संकुचितपन की झलक देखने को नहीं मिलेगी। यदि कहीं आर्य समाज के कार्यक्रमों में संकुचितपन की कोई गंध मिलेगी तो वह आर्य समाजी कार्यकर्ताओं का अपना दोष तो हो सकता है, स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा प्रतिपादित आर्य समाज के सिद्धांतों का दोष नहीं कहा जा सकता।
वैदिक ज्ञान विज्ञान के तत्वों को संसार के समक्ष अपने विशुद्ध रूप में रख कर इस विषयक अज्ञान को दूर करने का श्रेय अधिकांश में वेदों के परम आचार्य महर्षि दयानंद को ही है। आर्य समाज की स्थापना उन्होंने वेदों के इसी सत्य ज्ञान के प्रसार-प्रचार के लिए की थी।
हमें महर्षि देव दयानंद सरस्वती के रूप में एक ऐसी विद्युत अग्नि के दर्शन हुए जिसने अपनी कड़कती प्रखर प्रज्ञा के प्रहार से वेद-ज्ञान को आवृत करने वाले घने काले बादलों को खण्ड़-खण्ड़ करके अस्तित्वहीन ही कर दिया। वेद ईश्वरीय ज्ञान है, इस पर आशंका के बादल छंट गए।
महर्षि दयानंद का ‘सत्यार्थ प्रकाश’ एक अद्भुत ग्रंथ है। इसमें उन्होंने शैतान व्यक्ति से पाप करवाता है इस भ्रांति कोे उखाड़ फेंका। वे कहते हैं, जीव कर्म करने में स्वतंत्र व फल के भोगने में ईश्वर की व्यवस्था के अधीन है। यही सत्यार्थ का नया प्रकाश है।
काकड़वाड़ी आर्य समाज वर्षों तक वैदिक धर्म प्रचार का केन्द्र रहा और अब भी है। मुंबई प्रदेश आर्य प्रतिनिधि सभा का दफ्तर यही है। आर्य प्रतिनिधि सभा के संन्यासी एवं महोपदेशक का विश्राम स्थान भी यही स्थल है। सभा के अधिकारी एवं आर्य समाज के पदाधिकारी प्राय: इसी समाज के नेता रहे।उत्तर प्रदेश के उपदेशक एवं आर्य समाज के प्रमुख नेता
महर्षि दयानंद ने वेद की पुनः संस्थापना का अद्भुत कार्य किया और युगों से पड़े हुए रूढ़िग्रस्त विचारों को पल मात्र में छिन्न-भिन्न कर दिया। जो कार्य कोई अन्य न कर सका वह कार्य महर्षि दयानंद ने विश्व कल्याण के लिए कर दिया।
किसी आतंकवादी हमले के बाद केवल एक दिन प्रतीकात्मक देशभक्ति प्रदर्शित कर शेष दिन हम उसी पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच खेलते हैं और पाकिस्तानी कलाकारों की फिल्में देखने में मशगूल रहते हैं। आपकी एक दिन की राष्ट्रभक्ति जगाने के लिए जवानों को शहीद होना पड़ता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति…
मानव अल्पज्ञ है। एक मात्र परमात्मा ही सर्वज्ञ है। मानव को जहां विचार और कर्म की स्वतंत्रता दी गई है, वहां अल्पज्ञता जनित भूलों और निर्णयों के बचाव व परिमार्जन के लिए उसे ईश्वरीय ज्ञान वेद पर आश्रित रहने का भी परामर्श दिया गया है। इसीलिए सत्य का ग्रहण और असत्य का परित्याग करके विद्या का प्रकाश अविद्या का नाश करना आवश्यक ठहराया गया है। धर्म के निरूपण की विधि देव, स्मृतियां (वेदानुकूल) के आदेश उपदेश, सत्पुरुषों का आचरण और अपनी पवित्र अंतरात्मा की आवाज निर्धारित की गई है