फ्यूज़न साइंस ऑफ ह्यूमनबीइंग

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Genetic manipulation and DNA modification concept.
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जेनेटिक्स एंड एपीजनेटिक्स : प्रत्येक मनुष्य दो कोशिकाओं से निर्मित है -एक शुक्राणु और एक अंडाणु। यह हर बच्चा जानता है। Zygot बनता है इनसे। फिर मात्र तीन माह में ये लगभग 200 ट्रिलियन कोशिकाओं के समूह में बंट जाता है। सभी विशेषज्ञ कोशिकाएँ। कोई भी कोशिका सामान्य नहीं। हर…

पुल गिरने से पहले संकेत देगा स्मार्टफ़ोन

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वैसे तो शासन-प्रशासन द्वारा समय-समय पर पुराने पुलों की मजबूती विशेषज्ञ इंजीनियरों, तकनीशियनों द्वारा निर्धारित की जाती है, फिर भी लापरवाही और सटीक जानकारी नहीं मिल पाने के कारण कभी-कभी चूक हो जाने के कारण समय पर उनकी मरम्मत नहीं हो पाती। जिसके कारण मोरबी जैसी दुर्घटनाओं के चलते बड़ी संख्या में मौतें होती हैं।  आशा की जाती है कि इन शोधकर्ताओं द्वारा स्मार्टफोन के माध्यम से विकसित इस तकनीक से नए और पुराने विशेषतया जोखिम भरे जर्जर पुलों की कंपन अर्थात मोडल फ्रीक्वेंसीज़ की वास्तविक स्थिति की पहचान हो जाने और समय पर मरम्मत करने से उन्हें दुर्घटनाग्रस्त होने से बचाने के साथ-साथ बड़ी संख्या में लोगों के जीवन को बचाया जा सकेगा। अतः, इस तकनीक को और विकसित करने तथा दुनिया भर में सुलभ बनाने की आवश्यकता है।

वैश्विक नवाचार सूचकांक में भारत 40वें स्थान पर आया

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हालांकि दुनिया में वैज्ञानिक और अभियंता पैदा करने की दृष्टि से भारत का तीसरा स्थान है। लेकिन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संबंधी साहित्य सृजन में केवल पाश्चात्य लेखकों का ही बोलबाला है। पश्चिमी देशों के वैज्ञानिक आविष्कारोंसे ही यह साहित्य भरा पड़ा है। भारत में भी इसी साहित्य का पाठ्य पुस्तकों में अनुकरण है। इस साहित्य में न तो हमारे प्राचीन वैज्ञानिकों की चर्चा है और न ही आविष्कारों की। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि हम खुद न अपने आविष्कारको को प्रोत्साहित करते हैं और न ही उन्हें मान्यता देते हैं। इन प्रतिभाओं के साथ हमारा व्यवहार भी कमोबेश उपहासपूर्ण अभ्रद रहता है।

भारत का 5G की दुनिया में प्रवेश

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5G उपरोक्त सारी क्रांतियों को बौना साबित करेगा. 4G के मुक़ाबले इसकी स्पीड 100 गुना होगी. यानी पलक झपकते 3 घंटे की मूवी 3 सेकण्ड में आपके मोबाइल में डाउनलोड हो जाएगी. डॉक्टर रोबोटिक सर्जरी कर सकेंगे. 3D वीडियो कॉलिंग की कल्पना शायद साकार हो जाएगी. 

श्राद्ध और पितृपक्ष का वैज्ञानिक महत्व

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इस प्रकार से देखा जाए तो पितृपक्ष और श्राद्ध में हम न केवल अपने पितरों का श्रद्धापूर्वक स्मरण कर रहे हैं, बल्कि पूरा खगोलशास्त्र भी समझ ले रहे हैं। श्रद्धा और विज्ञान का यह एक अद्भुत मेल है, जो हमारे ऋषियों द्वारा बनाया गया है। आज समाज के कई वर्ग श्राद्ध के इस वैज्ञानिक पक्ष को न जानने के कारण इसे ठीक से नहीं करते। कुछ लोग तीन दिन में और कुछ लोग चार दिन में ही सारी प्रक्रियाएं पूरी कर डालते हैं। यह न केवल अशास्त्रीय है, बल्कि हमारे पितरों के लिए अपमानजनक भी है। जिन पितरों के कारण हमारा अस्तित्व है, उनके निर्विघ्न परलोक यात्रा की हम व्यवस्था न करें, यह हमारी कृतघ्नता ही कहलाएगी।

विश्वकर्मा: अखिल विश्व के कर्ताधर्ता

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हे सुव्रत ! सुनिए, शिल्पकर्म (इसमें हजार से अधिक प्रकार के अभियांत्रिकी और उत्पादन कर्म आएंगे) निश्चित ही लोकों का उपकार करने वाला है। शारीरिक श्रमपूर्वक धनार्जन करना पुण्य कहा जाता है। उसका उल्लंघन करना ही पाप है, अर्थात् बिना परिश्रम किये भोजन करना ही पाप है। यह व्यवस्था सामान्य है, विशेष में यही है कि धर्मशास्त्र की आज्ञानुसार किये गए कर्म का फल पुण्य है और इसके विपरीत किये गए कर्म का फल पाप है। यही कारण है कि संत रैदास को नानाविध भय और प्रलोभन दिए जाने पर भी उन्होंने धर्मपरायणता नहीं छोड़ी, अपितु धर्मनिष्ठ बने रहे। लेखक ने जो पुस्तक की समीक्षा लिखी है वह अत्यंत तार्किक और गहन तुलनात्मक शोध का परिणाम है जिसका दूरगामी प्रभाव होगा। उचित मार्गदर्शन के अभाव में, धनलोलुपता में अथवा आर्ष ग्रंथों को न समझने के कारण आज के अभिनव नव बौद्ध और मूर्खजन की स्थिति और भी चिंतनीय है। वामपंथ और ईसाईयत में घोर शत्रुता रही, अंबेडकर इस्लाम के कटु आलोचक रहे और साथ इस इस्लाम और ईसाइयों के रक्तरंजित युद्ध अनेकों बार हुए हैं, किन्तु वामपंथ, ईसाईयत, इस्लाम एवं शास्त्रविषयक अज्ञानता, ये चारों आज एक साथ सनातनी सिद्धांतों के विरुद्ध खड़े हो गए हैं। 

पितरों की प्रसन्नता का महापर्व है श्राद्ध पक्ष

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       प्रतिवर्ष आश्विन कृष्ण पक्ष में पितरों की प्रसन्नता अर्थात् अपने परिवार के किसी भी उम्र के दिवंगत स्त्री-पुरुषों की आत्माओं की तप्ति हेतु श्रद्धा पूर्वक किए जाने वाले भोजनादि कर्म "श्राद्ध" कहलाते हैं। कन्या राशि के सूर्य में किए जाने वाले श्राद्धकर्म महालय पार्वण श्राद्ध कहलाते  हैं। इस बार 10 सितंबर से 25 तक सोलह दिन श्राद्ध रहेंगे। श्राद्धों में सभी शुभ कार्य वर्जित कहे गए हैं। श्राद्धों में तिथि का बढ़ना और नवरात्रि में तिथि का घटना अशुभ कारक है। गो, गंगा, सन्त, ब्राह्मण, देवताओं के प्रति सम्मान भाव रखने और दान-पुण्य करने से निश्चित ही विपदाओं से मुक्ति मिलती है और आत्मबल की अभिवृद्धि के साथ सर्वत्र शान्ति होती है। दिवंगत पितरों के प्रति श्राद्धादि कर उन्हें जीवन्त बनाए रखना भारत की उदात्त सभ्यता और संस्कृति का विश्व में उत्कृष्टतम निदर्शन है।

हवन पर वैज्ञानिक रिसर्च और लाभ

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फ़्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की। जिसमें उन्हें पता चला की हवन मुख्यतः आम की लकड़ी पर किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है।जो कि खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओं को मारती है ।तथा वातावरण को शुद्ध करती है। इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला।

मंदिर में घंटे… हमारे दिमाग के लिए “एन्टीडोट्स”

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इस तरह... जब घंटे को बजाया जाता है तो.... उसकी ध्वनि हमारे .... दिमाग में दोनों भागों ( दाहिना और बांया अर्थात चेतन और अवचेतन) मस्तिष्क पर असर डालती है.  और... हमें तनावमुक्त कर देती है... साथ ही... इसके सात सेकेण्ड तक रहने वाली प्रतिध्वनि.... हमारे शरीर में मौजूद सातों चक्र को भी जागृत कर देती है.... जिससे हम तरोताजा महसूस करने लगते हैं. इस तरह... मंदिर में मौजूद घंटे.... हमारे दिमाग को तनाव रहित कर... शरीर को तरोताजा बनाती है. दूसरे शब्दों में... मंदिर में मौजूद घंटे... हमारे दिमाग के लिए ""एन्टीडोट्स"' का काम करती है.

न्यूटन नही, भास्कराचार्य ने की गुरुत्वाकर्षण की खोज

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अर्थात् पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है। पृथ्वी अपनी आकर्षण शक्ति से भारी पदार्थों को अपनी ओर खींचती है और आकर्षण के कारण वह जमीन पर गिरते हैं। पर जब आकाश में समान ताकत चारों ओर से लगे, तो कोई कैसे गिरे? अर्थात् आकाश में ग्रह निरावलम्ब रहते हैं क्योंकि विविध ग्रहों की गुरुत्व शक्तियाँ संतुलन बनाए रखती हैं। ऐसे ही अगर यह कहा जाय की विज्ञान के सारे आधारभूत अविष्कार भारत भूमि पर हमारे विशेषज्ञ ऋषि मुनियों द्वारा हुए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ! सबके प्रमाण उपलब्ध हैं ! आवश्यकता स्वभाषा में विज्ञान की शिक्षा दिए जाने की है।

“रॉकेट्री- द नम्बी इफेक्ट” से उठते ज्वलंत प्रश्न

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उनकी देशसेवा का उन्हें इनाम मिला वो भी बदनामी, 1994 में पचास दिन की भयानक यातनाओं वाली जेल, पांच वर्ष सुप्रीम कोर्ट की लड़ाई और बदले में केवल पचास लाख का मुआवजा। इसके साथ ही उनकी पत्नी का शॉक के कारण मानसिक रोगी हो जाना। बच्चों का समाज में जीना दूभर हो जाना। इन सबके पीछे मीडिया ने भी गलत खबरें दे-देकर नमक-मिर्च लगाकर और उनके परिवार को जिल्लत भरी जिंदगी जीने को मजबूर किया। फिल्म में उनका एक कथन है- "मैं यातनाएं सह लूंगा लेकिन झूठे आरोपों को नहीं मानूंगा। आगे आप कहेंगे कि बोफोर्स और...भी तुमने ही किया, मान लो"। 2019 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।

स्वतंत्रता संग्राम और विज्ञानविदों की गौरव गाथा

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महेंद्रलाल सरकार, बीरबल साहनी, जगदीश चंद्र बोस, सत्येंद्र नाथ बोस, रूचिराम साहनी, पी.सी.राय, सी.वी.रामन, प्रमथनाथ बोस, मेघनाद साहा, विश्‍वेश्‍वरैया आदि वैज्ञानिक सेनानियों के कारण ही स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय विज्ञान और वैज्ञानिकों की भूमिका बहुत प्रखर रूप से उभर कर सामने आई। वर्ष 1940 में सीएसआईआर की स्‍थापना करने वाले शांति स्‍वरूप भटनागर का मानना था कि गुलामी के कारण देशवासि‍यों में साहसिक प्रवृत्ति की भावना कमजोर पड़ गई है। देश के वैज्ञानि‍क क्षितिज में नई प्रतिभाओं एवं नवीन खोज को प्रेरित करने के उद्देश्‍य से उनके मार्गदर्शन में अनेक नई प्रयोगशालाओं की स्‍थापना का मार्ग प्रशस्‍त हुआ। माना जाता है कि उनके व्‍यक्तित्‍व के निर्माण में रूचिराम साहनी का महत्‍वपूर्ण योगदान था जिन्‍होंने अपना पूरा जीवन स्‍कूल और कॉलेजों में विज्ञान की लोकप्रियता और विज्ञान शिक्षण में सुधार के लिए समर्पित कर दिया था।

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