सांप्रदायिक राजनीति की विभीषिका

Continue Readingसांप्रदायिक राजनीति की विभीषिका

सांप्रदायिक राजनीति की विभीषिका पर शोधोपरांत प्रोफेसर डॉ. अलकेश चतुर्वेदी द्वारा लिखित एवं इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत द्वारा प्रकाशित पुस्तक “सांप्रदायिक राजनीति का इतिहास”, वर्तमान बदलते परिद़ृश्य में जनमानस के लिए अमूल्य निधि के रूप में उपलब्ध है।

      कार्यदक्ष जीवन की प्रेरणास्पद यादें

Continue Reading      कार्यदक्ष जीवन की प्रेरणास्पद यादें

ऐसी एक धारणा है कि प्राचीन भारतीय विचारसंपदा याने संसार से दूर भागना, सक्रिय जीवन की अपेक्षा निवृत्त जीवन बिताना, मृत्यु का- मोक्ष का विचार करना, निष्क्रियता को प्रधानता देने वाला तत्त्वज्ञान है| वास्तव में यह गलत धारणा है| सक्रियता, उद्यमशीलता,दीर्घोद्योग, पुरुषार्थ एवं पराक्रम इन गुणों का समर्थन तो प्राचीन भारतीय विचारकों ने न केवल किया ही वरन वैसा जीवन प्रत्यक्ष में जी कर दिखाया|

नास्तिकता से धार्मिकता की ओर कविश्रेष्ठ आलोक भट्टाचार्य की जीवन यात्रा

Continue Readingनास्तिकता से धार्मिकता की ओर कविश्रेष्ठ आलोक भट्टाचार्य की जीवन यात्रा

हास्य, विनोद, लेखन, काव्य, शेरोशायरी में मन से रम जाने वाले आलोक जी दिल के बहुत खुले थे। वे केवल पोथीनिष्ठ विचारक नहीं थे। इसीलिए प्रत्यक्ष अनुभव के कारण अपनी विचारधारा में होने वाला बदलाव उन्होंने विचारपूर्वक स्वीकार किया।

कांग्रेस मुक्त भारत दल

Continue Readingकांग्रेस मुक्त भारत दल

‘कांग्रेस मुक्त भारत दल’ की संचालन समिति वाले कई बार वहां गए, पर राहुल बाबा से भेंट नहीं हुई। इससे उनका निश्चय और द़ृढ़ हो गया कि जब बाबा देश को ‘कांग्रेस से मुक्त’ कराने में इतनी रुचि ले रहे हैं, तो चाहे एक महीना लगे या एक साल, पर अध्यक्ष हम उन्हें ही बनाएंगे, किसी और को नहीं।

विश्वसनीय दस्तावेज

Continue Readingविश्वसनीय दस्तावेज

देश की त्रासदी तो यह है कि शोएबुल्लाह खान तो देशवासियों के मानस पटल से भुला दिए गए; परंतु दूसरी ओर देशद्रोही निजाम, उनके सर्वोच्च प्रशासक अलीयावर जंग या निज़ाम की तरफ से इंग्लैण्ड और राष्ट्रसंघ में भारत के विरुद्ध आवाज उठाने वाले पाक-परस्त रज़ाकारों को नेहरूवादी राजसत्ता में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुए।

नकली बारिश में असली मनोरंजन

Continue Readingनकली बारिश में असली मनोरंजन

पर्दे पर होने वाली झमाझम बारिश दर्शकों को खूब सुहाती है और दर्शकों को जो पसंद है वही दिखाकर उनका मनोरंजन करना फिल्मवालों को सुहाता है। चाहे जो भी हो दर्शकों के मनोरंजन के लिए ही सही फिल्मों में झूठी बारिश हमेशा होती रहे।

अमृत रस है बारिश

Continue Readingअमृत रस है बारिश

जीवन रस को पोषण देने वाला, बल देने वाला अमृत रस है बारिश। यह चारों तरफ से मानव का जीवन समृद्ध सम्पन्न करती है। इसमें हास्य, करुण, दुःख, आनंद सब कुछ शामिल होता है। शायद इसीलिए बारिश हमारे जीवन का अविभाज्य हिस्सा बन जाती है। मराठी काव्यविश्व में बारिश के इन सभी रूपों को प्रस्तुत किया गया है।

रंज लीडर को बहुत है मगर …….

Continue Readingरंज लीडर को बहुत है मगर …….

 किसी राजनीतिक विश्लेषक ने कहा है कि दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है; पर काफी समय से कांग्रेस के लिए लखनऊ के ही रास्ते बंद हैं। ऐसे में अपने बलबूते पर वह दिल्ली कैसे पहुंचे? जीवन-मरण जैसा यह बड़ा प्रश्न मैडम जी के सामने है। वे कई साल से कोशिश में हैं कि राहुल बाबा थोड़ा संभल जाएं और कुछ समझ जाएं; पर जो समझ जाए, वह पप्पू कैसा?

शायर निदा फाज़ली

Continue Readingशायर निदा फाज़ली

मशहूर शायर निदा फाज़ली हिंदी, उर्दू और गुजराती में लिखते थे। वे देश में एकात्मता के उद्घोषक थे। भारत का विभाजन उन्हें मंजूर नहीं था। विभाजन के बाद उनके माता-पिता पाकिस्तान चले गए, लेकिन उन्होंने हिंदुस्तान में ही रहना पसंद किया। उनके जाने से सूनापन तो आया; लेकिन उनकी शायरी एकात्मता और भाईचारे की रौनक जगाती ही रहेगी।

ऐ मेरे वतन के लोगों..

Continue Readingऐ मेरे वतन के लोगों..

      रामचंद्र नारायण द्विवेदी को जानते हैं आप? क्या? नहीं जानते?      अच्छा; आपने वह गाना सुना है; ऐ मेरे वतन के लोगों? हां ! यह गाना तो आपका फेवरिट गाना होगा। किसने लिखा था, याद है? बिल्कुल ठीक! प्रदीप! यही हैं हमारे रामचंद्र नारायण द्विवेदी! जिनका तखल्लुस था ‘प्रदीप’। फिल्मी दुनिया में वे इसी नाम से जाने जाते थे।

विरहाकुल लक्ष्मी नंबर एक

Continue Readingविरहाकुल लक्ष्मी नंबर एक

 ‘‘मेरी तो आपसे इस दीपावली के मौके पर यही गुजारिश है कि आप ‘लक्ष्मी नंबर दो’ और ‘गृहलक्ष्मी नंबर दो’ का विचार ही मन में न लाएं और ‘विरहाकुल लक्ष्मी नंबर एक’ को नमन करें, पूजा करें।’’

डिसकवर द अर्जुन इन यू(अपने अंदर के अर्जुन को खोजो)

Continue Readingडिसकवर द अर्जुन इन यू(अपने अंदर के अर्जुन को खोजो)

भगवद् गीता को समय की सीमा में बांधा नहीं जा सकता। अर्थात इसकी प्रासंगिकता सार्वकालिक है। आवश्यकता इस बात की है कि समय के अनुरूप उसकी बार-बार व्याख्या की जाए। बाल गंगाधर तिलक ने इसकी व्याख्या अपने समय-परिस्थिति के अनुसार की तो ओशो ने अपन

End of content

No more pages to load