भारतीय लोकतंत्र की जड़ें बहुत गहरी एवं व्यापक है

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देश में लोकतंत्र की दिशा-दशा पर जारी विमर्श के मध्य यह जानना आवश्यक है कि भारत न केवल विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, अपितु वह लोकतंत्र की जननी है। लोकतंत्र भारत की आत्मा है। वह आम भारतीयों की साँसों और संस्कारों में रचा-बसा है। भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों एवं…

कैसे भी नरेंद्र मोदी को रोका जाये ?

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अब यह सवाल भारत के भीतर और बाहर चर्चित है, द संडे गार्जियन ने एक बहुत बड़ा खुलासा किया है। अखबार कहता है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए नई दिल्ली से लेकर लंदन तक गतिविधियां चल रही हैं। अखबार ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा…

तंत्र में गण की संपूर्ण प्रतिष्ठापना का लक्ष्य बाकी है

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भारत इस मायने में अनूठा है जहां स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस अलग-अलग मनाए जाते हैं। 15 अगस्त, 1947 को हम अंग्रेजों की दासता से स्वतंत्र अवश्य हुए पर  26 जनवरी ,1950 को गणतंत्र यानी अपना तंत्र अपनाया। सामान्य शब्दों में गण का अर्थ आमजन तथा तंत्र का व्यवस्था है।…

लोकतांत्रिक चेहरों पर एकशाही की मासूमियत

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लोकतंत्र का शिखर तलहटी को थोड़ा-थोड़ी सरकाता रहता है। न बर्फ खिसके, न वोट बैंक। परिवार उठता चला जाए। साधारण सीं झोंपड़ी से निकलकर हजारों करोड़ की मिलकियत कैसे बन जाती है! पर चेहरे पर जनवाद लहलहाता है।   

रसातल की ओर जाती राजनीति

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इससे पहले पीएम मोदी और शरद पवार की अलग-अलग मुद्दों को लेकर कई बार मुलाकात भी हो चुकी है। जिसके बाद दोनों नेताओ एक दूसरे की तारीफ भी की थी लेकिन फिलहाल हवा का रुख बदला-बदला सा नजर आ रहा है

जनतंत्र के पहरेदार

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देश के उज्ज्वल चरित्र पर गर्व करते हुए मैं बाहर आ गया और देश के विकास के प्रति आश्वस्त हो गया। इन वेद-शास्त्रों से भी जो आश्वस्त न हो, उसे क्या आप भारतीय कहेंगे?

स्वतंत्रता के साढ़े छह दशक कहां से कहां तक पहुँचे हम

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स्वतंत्रता शब्द सुनते ही एक अलग प्रकार का आनंद होता है, इस आनंद को अभिव्यक्त करने का सभी का अलग-अलग अंदाज हो सकता है।

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