पर्यटन: राज्य की आय का प्रमुख स्रोत

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राज्य के पर्यटन विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार राज्य के 327 मुख्य पर्यटन स्थलों के लिए 176 पर्यटक आवास गृह, 33 रैन बसेरे, 5619 निजी होटल तथा पेइंग गेस्ट एवं 895 धर्मशालाएं उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त होम स्टे के रूप में भी पर्यटकों के लिए बड़ी संख्या में आवासीय व्यवस्थाएं बनाई गईं हैं, जहां अतिथि के रूप में स्थानीय रीति-रिवाजों व रहन-सहन के साथ ग्राम्य जीवन का आनन्द लिया जा सकता है।

पर्यटन नहीं तीर्थाटन

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जिस प्रकार मक्का या वैटिकन सिटी पूरे विश्व में अकेले हैं, उसी प्रकार श्री बद्रीनाथ केदारनाथ धाम व हिन्दू धर्म के अन्य धाम भी अपनी तरह के अकेले हैं, जिनका कोई अन्य विकल्प नहीं है। इनको स्विट्जरलैड, थाईलैंड बनाकर सैकेंडरी बना कर यहां पश्चिमी पर्यटन पनपाकर इनकी मोनोपली को क्यों तोड़ें? और सैकेंडरी क्यों बने?

उत्तराखंड बनेगा वैश्विक पर्यटन केंद्र – सतपाल महाराज, पर्यटन मंत्री

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इंसान जब अपने आप में खुशी और शांति को तलाश करता है, तो उत्तराखंड के हरिद्वार और ऋषिकेश में जरुर आता है। हमें विश्वास है, संपूर्ण विश्व उत्तराखंड की ओर भविष्य में अपनी आध्यात्मिक शांति के लिए आएगा। उत्तराखंड राज्य के लिए यह बड़ी उपलब्धि होगी। उत्तराखंड के लोग अत्यंत सहज और सहयोग देने के लिए तत्पर होते हैं। निकट भविष्य में वे पूरे विश्व के लोगों को अपनत्व देंगे और विश्व का अपनत्व लेंगे।

भावी परिदृष्य

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एक ओर मैदानी क्षेत्रों के लोग कृषि को सम्मान की दृष्टि से देखते हैं, जबकि पहाड़ों में इस व्यवसाय को उपेक्षित या हेय दृष्टि से देखा जाने लगा। इस कारण से भी उत्तराखंड के लोगों ने अपने प्राचीन व परंपरागत व्यवसाय को अपनाने की अपेक्षा शहरों में जाकर नौकरी करना उपयुक्त समझा। इसलिए हमें चाहिए कि हम लोगों के मन में अपनी खेती, पशुपालन व परंपरागत व्यवसाय को अपनाने के प्रति पुनः आकर्षण उत्पन्न करें।

गौ रक्षा मेरा धर्म

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श्री मनोहरलाल जुयाल की जीवन यात्रा सचमुच में बहुत अद्भुत है। देहरादून में आकर व्यापार की तरफ रुख किया। अपनी मेहनत और लगन से धीरे-धीरे उन्होंने तरक्की करनी शुरू की और आज वे देहरादून के नामचीन होटलों के मालिक हैं। उन्होंने मायादेवी एज्युकेशन फाउंडेशन के माध्यम से उच्च विद्या का प्रसार करने में अपना योगदान दिया हैं। साथ में गौ भक्त मनोहरलाल यह उनकी विशेष पहचान हैं।

रोजगार से स्वावलम्बन की ओर

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स्वरोजगार हेतु सरकारी सहायता पा लेना चक्रव्यूह तोड़ने से कम उपलब्धि नहीं कही जाएगी, वैसे भी हमारे प्रवासी युवा सामान्य पृष्ठभूमि से वास्ता रखते हैं। स्वरोजगार की सभी कार्यवाहियां स्वीकृति एवं प्रशिक्षण आदि न्याय पंचायत स्तर पर होनी चाहिए।

संस्कृत  साहित्य  परम्परा

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कुमाऊं और गढ़वाल में कई ऐसे साक्ष्य प्राप्त हुए हैं जिनसे यह स्पष्ट हो जाता है कि उत्तराखंड में संस्कृत साहित्य की परंपरा मौजूद थी। इन साक्ष्यों तथा ऐतिहासिक धरोहरों में से अधिकतर बहुत ही जीर्ण-क्षीर्ण स्थिति में हैं। इन धरोहरों का रखरखाव तथा संस्कृत का प्रचार-प्रसार इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि उत्तराखंड की द्वितीय राज्यभाषा भी संस्कृत है।

पलायन या प्रगति

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स्वतंत्र राज्य बनने से लेकर अब तक उत्तराखंड न तो अपने विकास की उचित दिशा का चयन कर पाया है और न ही गम्भीरतापूर्वक चिंतन। यदि उत्तराखंड-वासियों ने अपनी स्वार्थपरता से मुक्त होकर, यहां की भौगोलिक स्थितियों-परिस्थितियों पर विचार करके, इसके विकास के लिए व्यवहारिक योजनाएं-परियोजनाएं बनाई होतीं तो उत्तराखंड देश का आदर्श राज्य बन सकता था।

उत्तराखंड जन्मभूमि : मुंबई कर्मभूमि

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वर्षों से पहाड़ी लोगों की मेहनत और इमानदारी की दुनिया कायल रही है। महाराष्ट्र को हम पहाड़ी अपना ही समझते हैं, हमारे यहां बहुत से लोगों के पुरखे महाराष्ट्र से ही गये हैं। ये कथन हैं भारत विकास परिषद, कोंकण प्रांत के अध्यक्ष महेश शर्मा के।

सवाल अभी जिंदा हैं

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निरंतर हो रहे पलायन को रोकने के लिये जरूरी था कि पहाड़ों में आधारभूत औद्योगिक ढांचा तैयार करते हुए रोजगारपरक उद्योग स्थापित किये जाते। स्वरोजगार की योजनाएं सही ढंग से ईमानदारी से लागू की जातीं। कौशल विकास योजनाओं पर बल देते हुए क्षेत्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप कार्य योजना तैयार की जाती मगर ऐसा नहीं हुआ। नतीजा राज्य बनने के बाद एक ओर पहाड़ के गांव के गांव खाली होते चले गए और दूसरी ओर देहरादून, हल्द्वानी और हरिद्वार में बड़े पैमाने पर दूसरे राज्यों से भी पलायन कर लोग पहुंचने लगे।

शौर्य और बुध्दिमत्ता की प्रतीक उत्तराखंड की नारी

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समय की मांग है कि गांवों में रह रही अभावग्रस्त मातृशक्ति के हित में सरकार और समाजसेवियों द्वारा उसी ईमानदारी से पहल हो जैसी आजादी से पहले या उसके बाद के शुरुआती दौर में हो रही थी। परिस्थितियां थोड़ा भी अनुकूल हुईं तो पलायन के भयावह संकट पर भी काबू पाने का माद्दा रखती है उत्तराखंड की नारी। विषम आर्थिक और भौगोलिक परिस्थितियों ने यदि यहां नारी के जीने की राह मुश्किल की है तो उनसे लड़ने का हौसला भी दिया है।

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