संघ जीने वाला स्वयंसेवक

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अटल जी एक संवेदनशील व्यक्ति के रूप में सदैव हमारे स्मरण में रहेंगे। ऐसे व्यक्ति सैकड़ों वर्षों के बाद जन्म लेते हैं। इस शतक में उनके समान और कोई नहीं है। अटल जी अटल जी थे। संघ को वाकई जीने वाले स्वयंसेवक थे। अटल जी संघ के स्वयंसेवक थे। हम…

अपना द़ृष्टिकोण स्पष्ट करता संघ

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देश के सबसे बड़े और प्रभावशाली सांस्कृतिक संघटन ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ‘ ने ‘भविष्य का भारत-संघ का द़ृष्टिकोण‘ विषय के तारतम्य में अपना द़ृष्टिकोण स्पष्ट पारदार्शिता के साथ प्रस्तुत किया है। किसी देशव्यापी संगठन द्वारा विभिन्न राष्ट्रीय मुद्दों और अनुत्तरित प्रश्नों पर अपना नजरिया जनता के सामने उजागर करना एक…

संघ कार्य का क्रमशः विकसित होता आविष्कार

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“संघ कार्य और विचार सर्वव्यापी और सर्वस्पर्शी बन रहा है, बढ़ रहा है। इसके पीछे मूल हिंदू चिंतन से प्रेरित युगानुकूल परिवर्तनशीलता और ‘लचीली कर्मठता’ ही शायद कारण है। हर चुनौती को अवसर समझ कर उसके अनुरूप प्रशिक्षण तथा संगठनात्मक रचना खड़ी करने की संघ की परम्परा भारत की उसी परम्परा का परिचायक है जो अपने मूल शाश्वत तत्व को बिना छोड़े बाह्य रचना एवं ढांचे में युगानुकूल परिवर्तन करता रहा है।

दो भाषण, आशय एक

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संघ के तृतीय वर्ष समापन समारोह को लेकर कांग्रेसी और वामपंथी भले ही हो-हल्ला करते रहे पर उस मंच पर पूर्व राष्ट्रपति ने राष्ट्रवाद और भारत की गौरवशाली परंपरा को याद करते हुए ऐतिहासिक मंतव्य रखा. मोहनजी भगवत के हिंदी में दिए गए और प्रणबदा के अंगरेजी में दिए गए…

रा.स्व.संघ प्रतिनिधि सभा का प्रस्ताव भारतीय भाषाओं के संरक्षण एवं संवर्द्धन की आवश्यकता

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अ. भा. प्रतिनिधि सभा बहुविध ज्ञान को अर्जित करने हेतु विश्व की विभिन्न भाषाओं को सीखने की समर्थक है। लेकिन, प्रतिनिधि सभा भारत जैसे बहुभाषी देश में हमारी संस्कृति की संवाहिका, सभी भाषाओं के संरक्षण एवं संवर्द्धन को परम आवश्यक मानती है।

सेवा कार्य स्वयंसेवक करते हैं, संघ नहीं

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के बाद से ही सेवा कार्यों के प्रति विशेष जोर दिया गया। डॉ. हेडगेवारजी के जन्मशती वर्ष १९९० में सेवा क्षेत्र को एक कार्य विभाग के रूप में नया आयाम दिया गया। आगे चलकर ‘सेवाभारती’ ने मानव सेवा के नए मूल्य स्थापित किए। संस्था के अब तक के प्रवास एवं उतार-चढ़ाव को लेकर संघ के पूर्व अखिल भारतीय सेवा प्रमुख सुहासराव हिरेमठ ने अमोल पेडणेकर के साथ लम्बी बातचीत की। प्रस्तुत हैं उसी लम्बी बातचीत के संपादित अंश:

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर सार्थक विहंगम दृष्टि

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वैसे तो ‘संघ’ शब्द के कई पर्याय हैं; मसलन वृंद, समुदाय, समूह, गण, झुंड इत्यादि। पर इस शब्द का प्रयोग करने पर सबसे पहली जो तस्वीर हम सबकी आंखों में आती है, वह है भगवा ध्वज तले सफेद व खाकी पहिरावे में ‘नमस्ते सदा वत्सले...’ की मधुरिमा से आलोकित स्वयंसेवकों का समूह जो निःस्वार्थ भाव से जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपने आपको समर्पित करते हुए राष्ट्र भावना को सार्थकता प्रदान करते हैं। अपने प्रवास के ९ दशकों में तमाम कठिनाइयों, दबावों तथा प्रतिबंधों को परे करते हुए विश्व का सबसे बड़ा स्वयंस

चलो केरल! अ.भा.वि.प. का अभियान

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केरल में कम्युनिस्टों की राजनीतिक हिंसा से पीड़ित परिवारों को संबल प्रदान करने के लिए अ.भा.विद्यार्थी परिषद की ओर से आगामी ११ नवम्बर को ‘चलो केरल!’ अभियान का आयोजन किया जा रहा है। इसमें देशभर से छात्र शामिल होंगे। यह अभूतपूर्व व ऐतिहासिक होगा। प्रस्तुत है इस अभियान का विवरण और संघ स्वयंसेवकों पर माकपा के हमलों की कारण मीमांसा... हाल ही में ३ सितम्बर को जब १०.३० बजे टी.वी. पर केन्द्र में बनने वाले मंत्रियों का शपथ ग्रहण समारोह देख रहा था, सब के परिचय में उनके जीवन की किसी बड़ी उपलब्धि का उल्ल

संघ की संकल्पना

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संघ दो स्तंभों पर खड़ा है, सिद्धांत और स्वयंसेवक। इसमें स्वयंसेवक का मह़त्व बहुत अधिक है, इसलिए अधिक है कि वह संघ अपने जीवन में जीता है। संघ जीने वाले ऐसे लाखों स्वयंसेवक सारे देशभर में हैं। उनके संपर्क में आने वाले लोग उनके व्यवहार से संघ को समझते हैं। राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ की कथा एक बीज का वटवृक्ष कैसे बना इसकी कथा है। बीज डॉ. हेडगेवार जी का जीवन है और वृक्ष है पूरे देशभर में और विश्व में फैला संघकार्य। अपने-आप में यह एक अचंभे में डालने वाली घटना है। विश्व का सब से बड़ा एनजीओ है आरएसएस। डॉ. केशव बली

 सहज मार्गक्रमण की आवश्यकता

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 ‘जो शास्त्र सम्मत है वही टिकाऊ है| गैलीलियो के सिद्धांत शास्त्र सम्मत थे, इसीलिए टिके| उनके विरोधी नहीं बचे| संघ विरोधियों की समझ में नहीं आया इसलिए हीन भावना पालने की कोई आवयकता नहीं है| ...जिन सिद्धांतों पर संघ आजतक चला, बढ़ा; वह शास्त्रीय स्वरूप संघ कार्यकर्ताओं व शुभचिंतकों की समझ में आ जाए तो उसका अधिक परिणामकारक उपयोग हो सकता है|’’

आद्य प्रचारक मोरुभाऊ

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संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार द्वारा महाराष्ट्र के बाहर भेजे गए तीन प्रचारकों में से मोरुभाऊ मुंजे एक थे। उन्होंने संघ में विभिन्न दायित्वों का निर्वहन किया। उनका कार्य आज भी स्वयंसेवकों के लिए एक मिसाल है। मोरेश्वर राघव उपाख्य मोरुभाऊ मुंजे को पूजनीय डॉ.

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