आखिर क्यों हो रहा है कृषि बिल का विरोध ? NDA की एक मंत्री ने दिया पद से इस्तीफा

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कृषि बिल से एनडीए में फूट किसानों से से जुड़े दो बिल अब केंद्र सरकार के लिए मुसीबत बनने नजर आ रहे है क्योंकि इस बिल के लोक सभा में पारित होने के बाद एनडीए गठबंधन में ही फूट नजर आ रही है। एनडीए गठबंधन की कई पार्टियों ने इस…

देश हार्डवेयर में भी जल्द आत्मनिर्भर बन सकता है

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‘हिंदी विवेक’ द्वारा आरंभ ‘आत्मनिर्भर भारत’ वेब शृंखला के अंतर्गत एक विशेष भेंटवार्ता हैं भारत में सुपर कंप्यूटर के जनक प्रसिद्ध वैज्ञानिक श्री विजय भटकर से। उनसे आईटी के क्षेत्र में हुए तेज बदलावों, और अगले लक्ष्यों समेत कंप्यूटर हार्डवेयर के क्षेत्र में भी तेजी लाने पर विस्तृत बातचीत हुई। उनका कहना है कि सॉफ्टवेयर में हमने बाजी मार ली है, लेकिन हार्डवेयर में बहुत कुछ करना बाकी है। हम आत्मविश्वास दृढ़ करें तो अगले तीन-चार साल में ही इस क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बन सकते हैं। उनके विचारों के कुछ सम्पादित महत्वपूर्ण अंश यहां प्रस्तुत हैं-

आत्मनिर्भरता एकांगी विचार नहीं है

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कोरोना संकट, इस दौरान सेवा कार्यों, आत्मनिर्भर भारत, राम मंदिर से उत्पन्न आत्मसम्मान की भावना आदि अनेक विषयों पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह मा. भैयाजी जोशी से ‘हिंदी विवेक’ की विशेष भेंटवार्ता के महत्वपूर्ण अंश यहां प्रस्तुत हैं-

यह विश्वास जगाओ कि हम कर सकते हैं -आचार्य रमेशभाई ओझा

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‘हिंदी विवेक’ आत्मनिर्भर भारत वेब शृंखला में प्रसिद्ध धर्म गुरु आचार्य रमेशभाई ओझा से देश के आध्यात्मिक माहौल पर विस्तार से हुई भेंटवार्ता के कुछ महत्वपूर्ण सम्पादित अंश यहां प्रस्तुत हैं।

बिन निज भाषा सब सून

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भारतीय जीवन में हिंदी का स्थान केवल भाषा के रूप में नहीं रहा है; वरन् यह हमारी परंपरा और सभ्यता की पहचान रही है, हमारी भावना को मुखर करने का माध्यम रही है, हमारी अभिव्यक्ति का साधन रही है और संकट काल में हमारी शक्ति रही है। परस्पर संबंधों को अधिक मजबूत बनाने के लिए हिंदी संभाषण से अधिक प्रभावी माध्यम और कोई नहीं है।

कालातीत तत्वज्ञानी आधुनिक ॠषि विनोबा भावे 

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महाराष्‍ट्र की संस्कृति का, साहित्य का प्रवाह निरंतर बहते हुए हम देख रहे हैं। विशिष्ट चरण पर आकर स्थिर हुए समाज जीवन को महाराष्ट्र के संत साहित्य ने विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक मोड़ देने में सहायता की है। बारहवीं सदी से सोलहवीं सदी तक लगभग चार सौ वर्षों की अवधि में अनेक संतों की मालिका ही महाराष्ट्र में निर्माण हुई।

आत्मनिर्भर भारत

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एक हजार वर्ष पहले, वैश्विक बाजार में, हम जिस शिखर को छू रहे थे, उसकी ओर जाने का मार्ग अब दिखने लगा है। यह ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’, हमारे देश का चित्र और हमारा भविष्य बदलने की ताकत रखता है।

आत्मनिर्भर भारत का गंतव्य

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अलग-अलग कुशल समूह यह सामाजिक पूंजी है। उसे कुशलता से उत्पादन क्षेत्र में उपयोग किया जाना चाहिए। फिर हमें ध्यान में आएगा कि हमारी उत्पादन क्षमता अपार है। हमारी बराबरी विश्व का कोई भी देश नहीं कर सकता। आत्मनिर्भर भारत का यह अंतिम गंतव्य स्थान है।

आत्मनिर्भर भारत: घोषणा नहीं कृति आवश्यक

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देश के आत्मनिर्भर होने का अर्थ है जितना हम आयात करते है उससे कुछ गुना अधिक निर्यात अवश्य हो। जितना हम विदेशों से लें उससे अधिक उन्हें देने की क्षमता विकसित करें। आत्मनिर्भर बनने की दिशा की ओर बढ़ते समय यह अतिविश्वास भी न रखें कि हम सब कुछ कर सकते हैं और यह न्यूनगंड भी न पालें कि भारत में कुछ हो ही नहीं सकता। ये दोनों ही विचार हमारी राह का रोड़ा बन सकते हैं। हमें हमारे बलस्थान और कमजोर पक्ष दोनों पर अपना ध्यान केंद्रित करना होगा।

देश के सर्वोच्च पद की गरिमा बढानेवाले : प्रणव मुखर्जी

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पूर्व राष्ट्रपति  प्रणब मुखर्जी जी के व्यक्तित्व के बारे में जब हम सोचते हैं तो एक बात खुलकर सामने आती है , व्यक्ति की राजकीय विचारधारा का रंग किसी भी प्रकार का हो। लेकिन वह व्यक्तित्व की विशेषताओं और कर्तृत्व  के कारण हमेशा सभी से उभर कर उपर आता है। कुछ लोग अपने कर्तृत्व के कारण बड़े होते हैं, और इसी कारण उन्हें पद भी बड़े-बड़े मिलते हैं। ऐसे थे पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी  जिन्होंने अपने अलौकिक कार्य से देश के सर्वोच्च पद की प्रतिष्ठा बढाई थी। ऐसे स्वर्गीय प्रणब मुखर्जी को हिंदी विवेक परिवार भावपूर्ण श्रद्धांजली अर्पित करता है।

देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का निधन

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देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का सोमवार को राजधानी दिल्ली में निधन हो गया वह काफी समय से सांस लेने की तकलीफ से जूझ रहे थे।

नेतृत्व का प्रेरणा केंद्र और उसका प्रभाव

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स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आत्मविश्वास से भरा सम्बोधन सुनने के बाद देश की जनता के मन में एक चैतन्यमय आत्मविश्वास निर्माण हुआ है। यह उद्बोधन ऐसे नेता का था जिसका अधिष्ठान राष्ट्र विचारों से जुड़ा है, इसलिए देश के जनमन में विचारों की लहरें उठना स्वाभाविक ही है।

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