सुरों की यात्रा में संतुष्ट हूं – पद्मश्री पं. उल्हास कशालकर

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अपने गायन में ग्वालियर, आगरा, जयपुर तीनों परिवारों की परम्परा को आगे बढ़ाया और संगीत को एक अलग ऊंचाई पर ले गए। यदि कोई  गायन सुनकर संगीत की समृद्धि का अनुभव करना चाहता है, तो उसे पंडीत उल्हास कशालकर के गायन को अवश्य सुनना चाहिए। पं. उल्हास कशालकर की इस संगीतमय पृष्ठभूमि पर उन्हें मिले पदम्श्री पुरस्कार, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार एक बहुत बड़ा और सार्थक सम्मान हैं। आप अपने सुमधुर शास्त्रीय गायन के माध्यम से भारतीय शास्त्रीय गायन परम्परा में अपना विशिष्ट स्थान बना चुके है।

पर्यावरण समस्या : मानव के अंतर्मन के सूखेपन की उपज

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विकास के नाम पर मानव प्रकृति का शोषण कर पृथ्वी के वातावरण को जहरीला बनाता जा रहा है। प्रकृति का कोई भी स्रोत इससे अछूता नहीं है। अगर मानव अब भी नहीं चेता तो जलवायु परिवर्तन की चुनौती को रोक पाना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए विश्व के प्रत्येक मानव, खासकर विकसित राष्ट्रों का कर्तव्य बनता है कि इस दिशा में सार्थक प्रयत्न करें ताकि आने वाली पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित रहे।

प्रकाशमान यात्रा का सशक्त संदेश : भारतीय संस्कृति

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हिंदी विवेक मासिक पत्रिका के ’सांस्कृतिक भारत’ दीपावली विशेषांक के साहित्यिक प्रयास के संदर्भ में आपकी सटीक प्रतिक्रियाओं की हमें प्रतीक्षा रहेगी। पुन: आप सभी पाठकों, हितचिंतकों, विज्ञापनदाताओं, लेखकों आदि को दीपावली एवं नूतन वर्ष की पुनः शुभकामनाएं। धन्यवाद।

कब चेतेंगे नदियों के दोषी

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औद्योगीकरण और विकास के नाम पर हमने अपनी नदियों को न केवल उपेक्षित कर दिया है, बल्कि चरम पराकाष्ठा तक प्रदूषित कर रखा है। इसका नकारात्मक प्रभाव दिख रहा है लेकिन फिर भी हमारी पीढ़ी चेत नहीं रही है। सरकारी स्तर पर भी कोई व्यापक कार्य नहीं किया गया। अभी भी समय है कि हम सब जागें और आने वाली पीढ़ी के लिए प्रदूषण मुक्त जीवन की दिशा में कार्य करने के लिए आगे बढ़ें।

स्वभाषा और हिंदी भारी न हो कोई पलड़ा

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स्व भाषा प्रेम के नाम पर अन्य भाषाओं के प्रति दुराग्रह पालने की प्रवृत्ति के कारण भारतीय भाषाओं और उनके लालित्य का ह्रास हो रहा है। सरकारी और सामाजिक स्तर पर भारतीय भाषाओं के विकास और संवर्धन के सार्थक प्रयास भी नहीं हो रहे हैं जबकि आवश्यक है कि बड़े पैमाने पर विज्ञान, तकनीक जैसे विषयों पर गम्भीर लेखन हो ताकि स्वभाषा का विकास हो सके।

‘नव भारत’ निर्माण करने का अवसर

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स्वतंत्रता के 75 वर्षों के पश्चात् भी अगर देश का बुद्धिजीवी समाज हीन भाव से ग्रसित है तो उसका सर्व प्रमुख कारण हमारी शिक्षा नीति रही जिसमें हमें पश्चिम का भक्त होना सिखाया गया। पर पिछले एक दशक से जनमानस में स्व का भाव जाग्रत हुआ है क्योंकि प्रधान मंत्री ने अपने हर क्रिया-कलाप से राष्ट्र के स्व को जगाने का प्रयास किया है।

गौरवशाली देश का प्रतीक समर्थ परिवार

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समाज में लोगों की सामाजिक स्थिति उस परिवार पर निर्भर करती है जिससे वे आते हैं। इसलिए, हम लोगों की पारिवारिक पृष्ठभूमि पर अधिक महत्व देते हैं। समाज का निर्माण व्यक्तियों से होता है और व्यक्तियों को उच्च स्तर का बनाने का उत्तरदायित्त्व परिवार पर रहता है। विद्वानों ने परिवार को व्यक्तियों को ढालने वाली प्रयोगशाला बतलाया है।

जिहादी दंगों की नींव में झांककर देखो

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देशभर में रामनवमी और हनुमान जयंती जैसे त्योहारों की शोभायात्रा पर हुई पत्थरबाजी की घटनाएं जिहादी विचारों से प्रेरित हैं। भारतीय मुसलमानों को समझना होगा कि उनका धर्म भले ही इस्लाम है पर देश में रह रहा प्रत्येक व्यक्ति भारतीय संस्कृति का अंग है और उन्हें इसे आत्मसात  करते हुए अलगाववादी मानसिकता से बाहर निकलना चाहिए।

तिब्बतियों का आत्मक्लेश

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चीन के आक्रामक दावे को तिब्बतियों ने कभी स्वीकार नहीं किया है। वे चीन से संघर्ष कर रहे हैं। चीन ने दावा किया कि तिब्बत चीन का अभिन्न हिस्सा है। भारत सहित किसी ने भी इस दावे का कड़ा विरोध नहीं किया है, इसलिए तिब्बती संघर्ष अकेले चल रहा है।

सामाजिक शक्ति केन्द्र बनें गोशाला

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विगत 25 वर्षों से गोसेवा का कार्य नियमित रूप से करनेवाले गिरीश भाई शाह ने समस्त महाजन संस्था के माध्यम आदर्श गांव की संकल्पना को न केवल सबके सामने प्रस्तुत किया है वरन वे स्वावलंबी गोशाला और स्वावलंबी गांव बनाने के लिए रोड मैप भी तैयार कर चुके हैं। गोपालन और गोसंरक्षण के संदर्भ में उनके कुछ मौलिक विचार हैं जो उन्होंने इस साक्षात्कार के माध्यम से सभी के समक्ष प्रस्तुत किए हैं।

आग शिद्दत की सारे जहां में ना फैले

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साम्राज्यवाद, विस्तारवाद और खुद की रक्षा के लिए परमाणु शस्त्र संपन्न होने के पागलपन से कल तीसरा महायुद्ध ना हो। वह परमाणु युद्ध होगा जो संपूर्ण विश्व को विनाश की गहराइयों में लेकर जाएगा? रूस और यूक्रेन के युद्ध से निर्माण हुई स्थिति अब किस करवट बदलेगी? इस बात से…

स्त्री विमर्श: विभिन्न आयामों का दृष्टिकोण

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जब स्त्री शोषण के खिलाफ स्त्री विमर्श जगाकर एक स्वर में समस्या का सही हल ढूंढ़ने का प्रयास करने लगी तब एक वर्ग स्त्रियों को ही विरोधी बनाने लगा। उपभोक्तावादी संस्कृति, भौतिकवादी संस्कृति के खेलें में आत्मनिर्भरता के नाम पर, आजादी के नाम पर स्त्रियों को उपभोग की वस्तु धीरे-धीरे कब बना दिया गया पता ही नहीं चला। स्त्रियों को घरों से निकालकर बाजारवादी संस्कृति की चंगुल में बड़े चतुराई से फंसा दिया गया है।

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