सुरों की यात्रा में संतुष्ट हूं – पद्मश्री पं. उल्हास कशालकर
अपने गायन में ग्वालियर, आगरा, जयपुर तीनों परिवारों की परम्परा को आगे बढ़ाया और संगीत को एक अलग ऊंचाई पर ले गए। यदि कोई गायन सुनकर संगीत की समृद्धि का अनुभव करना चाहता है, तो उसे पंडीत उल्हास कशालकर के गायन को अवश्य सुनना चाहिए। पं. उल्हास कशालकर की इस संगीतमय पृष्ठभूमि पर उन्हें मिले पदम्श्री पुरस्कार, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार एक बहुत बड़ा और सार्थक सम्मान हैं। आप अपने सुमधुर शास्त्रीय गायन के माध्यम से भारतीय शास्त्रीय गायन परम्परा में अपना विशिष्ट स्थान बना चुके है।