भारी न पड़ जाए अतिआत्मविश्वास

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कर्नाटक में भाजपा की हार के बाद कांग्रेस खेमे में आनंद का और भाजपा में चिंतन मनन का दौर चल रहा है। चुनाव परिणाम आने के बाद ये होना स्वाभाविक ही है। जब भी कोई पार्टी चुनाव हारती है तो हार के कारणों पर चिंतन किया जाता है। राजनीतिक विश्लेषक…

हत्या एक, प्रश्न अनेक

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पूर्व विधायक, सांसद, बाहुबली नेता और माफिया अतीक और उसके भाई अशरफ को जब साबरमती से उत्तर प्रदेश लाया जा रहा था तब मीडिया और आम जनता को हर पल यह लग रहा था कि विकास दुबे की तरह इसका भी एनकाउंटर कर दिया जाएगा। इसलिए मीडिया ने उसकी ‘किसी…

टुकड़े-टुकड़े होते रिश्ते

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भारतीय समाज कभी भी नृशंस नहीं रहा। युद्ध के अलावा सामान्य जीवन में किसी की हत्या करना पाप की श्रेणी में गिना जाता था। हमारे संस्कारों, मूल्यों में किसी को दुख पहुंचाना ही बहुत बड़ी बात होती थी, हत्या करने का विचार तो सामान्य लोगों को छूता भी नहीं था।…

ठाकरे…बस नाम ही ‘बाकी’ है

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एक समय मातोश्री में बैठे बालासाहेब ठाकरे की आवाज पूरे देश में गूंजती थी, क्योंकि उनकी बातें और विचार समाज में उत्साह का संचार करते थे। वे अपने विचारों से समझौता न करने के लिए प्रसिद्ध थे, परंतु उद्धव ने राजनीतिक लाभ के लिए पूरी विचारधारा को ताक पर रख…

खुद ही खुद को गढ़ना होगा…

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हर वर्ष 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। कई वर्षों से यह भारत में भी मनाया जा रहा है। हालांकि यह भारत की सांस्कृतिक देन नहीं है क्योंकि जन्मदिन, विवाह वर्षगांठ, जन्मतिथि और पुण्यतिथि के अलावा हमारे यहां व्यक्ति विशेष से सम्बंधित दिवस नहीं होते। महिला दिवस…

विषय का विशिष्ट ज्ञान ही विज्ञान

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विज्ञान ने हमारे जीवन को किस सीमा तक प्रभावित कर रखा है इसका वर्णन करना कठिन है क्योंकि जन्म लेने से लेकर मृत्यु तक हमारे चारों ओर जो भी घटित होता है वह विज्ञान के अलावा कुछ नहीं है। देखा जाए तो ‘विज्ञान’ शब्द की उत्पत्ति बहुत बाद में हुई…

बॉलीवुड के बेशर्म रंग

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‘बेशर्म रंग’ वैसे तो शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण अभिनीत नई फिल्म पठान का एक गीत मात्र है, जिसे लेकर पिछले कई दिनों में कई चर्चाएं हुई हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में बॉलीवुड का ही रंग ‘बेशर्म’ हो चला है। एक समय था जब फिल्मों को समाज का आईना कहा जाता था, फिल्म बनाने वालों…

ग़ड़रिया बने हिंदू समाज

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लैंड जिहाद के माध्यम से ये लोग हिंदुओं की भूमि को हथियाने के लिए तरह-तरह के रास्ते अपनाते रहते हैं। किसी की जगह पर हरा कपड़ा डालकर मजार बना देना और धीरे-धीरे उसके आस-पास चबूतरा बना कर वह जमीन हथिया लेना या कैराना जैसी सुनियोजित घटना को अंजाम देना आदि उनके ‘मंसूबों’ को साफ करते हैं।

संस्कृति संजोने हेतु संकल्पित सरकार – वी. सुनील कुमार

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भारत में संस्कृति के विभिन्न आयामों जैसे भाषा, साहित्य, लोकगीत-लोकनृत्य आदि को राजाश्रय हमेशा ही मिलता रहा है। आज लोकतांत्रिक राजव्यवस्था होने के बाद भी प्रत्येक राज्य सरकार अपनी संस्कृति के संवर्धन हेतु विशेष प्रयत्न करती है। कर्नाटक भारत का वह राज्य है जिसे संस्कृति के रक्षक के रूप में जाना जाता है। आइए जानते हैं कर्नाटक के कन्नड़ और संस्कृति विभाग तथा ऊर्जा मंत्री मा. वी. सुनील कुमार जी से कि वे कर्नाटक में संस्कृति रक्षा के लिए क्या प्रयत्न कर रहे हैं।

संस्कृति: बहती धारा हो, रुका पानी नहीं

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संस्कृति ही राष्ट्र की पहचान होती है। उसकी विशालता, प्राचीनता और नवीनता के प्रति आग्रह ही उसे महान बनाती है। भारतीय संस्कृति में ये सभी गुण विद्यमान हैं। इसलिए भारतीय संस्कृति ने तमाम विदेशी संस्कृतियों को अपने में समेटने के साथ ही साथ ज्यादातर बाहरी संस्कृतियों पर व्यापक प्रभाव भी…

ग्रामीण विकास, कल-आज-कल

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भारत की आत्मा उसके ग्रामोें में बसती है। इसलिए यदि भारत की प्राचीन सनातन संस्कृति को बचाए रखना है तो ग्राम की संस्कृति और वहां के निवासियों के शहर की ओर हो रहे पलायन को रोकना ही होगा। इसके लिए आवश्यक है कि एक बार फिर ग्राम का मौलिक विकास नवीन पद्धति के आधार पर लेकिन विशुद्ध भारतीय संस्कृति को बचाए रखते हुए किया जाए। इस संदर्भ में प्रस्तुत है भैयाजी जोशी (अ. भा. कार्यकारिणी सदस्य, रा. स्व. संघ) का साक्षात्कार...

शक्ति सम्पन्न भारत

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पिछले माह की 16 तारीख को भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन की शंघाई सहयोग संगठन की शिखर बैठक में हुई चर्चा में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति पुतिन से कहा था कि ‘यह समय युद्ध का नहीं है’ और पुतिन ने उत्तर में कहा था कि ‘हम आपकी चिंता को समझते हैं और इस दिशा में प्रयास करेंगे।’

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