सोशल मीडिया का बढ़ता शिकंजा
सम्पूर्ण सतर्कता, सावधानी और सोशल मीडिया का ज्ञान हो तो सोशल मीडिया के माध्यम से बड़-बड़े कार्य करना भी संभव है। केवल तय यह करना है, कि इस शिकंजे में फंसते चले जाना है या सोशल मीडिया का नया जाल खुद के हाथ से बुनना है।
सम्पूर्ण सतर्कता, सावधानी और सोशल मीडिया का ज्ञान हो तो सोशल मीडिया के माध्यम से बड़-बड़े कार्य करना भी संभव है। केवल तय यह करना है, कि इस शिकंजे में फंसते चले जाना है या सोशल मीडिया का नया जाल खुद के हाथ से बुनना है।
आदि काल से हरियााणा अत्यन्त समृद्ध एवं सुद़ृढ़ धार्मिक सांस्कृति का पोषण करता रहा है। इसके प्रत्येक गांव में मन्दिर मिलेगा जहां पर किसी साधु सन्यासी, वैरागी अथवा महन्त का वास है। इन मन्दिरों के नाम आदि काल से कृषि भूमि की व्यवस्था है। गांव में इसे आश्रम-आसन(गद्दी) या आवाड़े के नाम से जाना जाता है।
हरियाणा में पहली संघ शाखा 1937 में शाहबाद में प्रारंभ हुई। सन् 1949 से 1977 तक संघ-कार्य में निरंतरता रही; परंतु विकास की गति धीमी रही। सन् 1977 के आपातकाल के पश्चात् संघ-कार्य तेजी से बढ़ा तथा संघ और समाज एकरूप होते दिखाई देते हैं। आज हरियाणा में संघ का कार्य सर्वव्यापी और सर्वस्पर्शी बन गया है।
हरियाणा की महिलाओं ने जीवन के हर क्षेत्र में अपना परचम लहराया है। इनमें सफल डॉक्टर, इंजीनियर, कॉर्पोरेट, एडवोकेट, न्यायाधीश, पुलिस अधिकारी शामिल हैं। साइना नेहवाल जैसी श्रेष्ठ खिलाड़ी, दो बार एवरेस्ट शिखर पादाक्रांत कर चुकी संतोष यादव, सुषमा स्वराज जैसी सक्षम राजनीतिज्ञ, जुही चावला जैसी अभिनेत्रियां हरियाणा से ही हैं। विश्व पटल पर भारत का नाम चमकाने वाली अंतरिक्ष परी कल्पना चावला का नाम कौन भुला सकता है?
जो काम सरकार नहीं कर पा रही है वह काम खापें कर रही हैं। वास्तव में खाप हमारी महान प्राचीन संस्कृति एवं परंपराओं को बचाने का एक कारगर जरिया है। दूसरे शब्दों में खाप हमारी महान प्राचीन परम्पराओं की ध्वजारोही भी है। लेकिन इन्हें और सक्षम बनाने के लिए समय के अनुसार खापों को भी बदलना होगा।
बीसवीं सदी में आधुनिक शिक्षा, सरकारी नौकरियों के कारण हरियाणा में जातिगत दूरियां और कम हुई हैं। इनके अतिरिक्त आर्य समाज, सनातन धर्म सभा एवम् पिछले कई दशकों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आदि सामाजिक संस्थाओं के प्रयासों से जातिवाद बहुत कम हुआ है और समन्वयता बढ़ी है।
हरियाणवी फिल्म ‘चंद्रावल’ ने सफलता व प्रसिद्धि का जो इतिहास रचा है, उसे कोई अन्य हरियाणवी फिल्म दोहरा नहीं पाई। अब ‘पडी-द ऑनर’ फिल्म को दो राष्ट्रीय व पांच अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार एवं ‘सतरी’ फिल्म को भी ‘बेस्ट हरियाणवी फिल्म’ का पुरस्कार मिलने से हरियाणवी सिनेमा के सुनहरे दिन आने की उम्मीद जगी है।
हरियाणा पौराणिक, पुरातात्विक एवं ऐतिहासिल धरोहरों को समेटे हुए हैं। कौरव-पांडवों की युद्धस्थली कुरुक्षेत्र को कौन भूल सकता है? किसे याद नहीं होगा कि कृष्ण ने यहीं अर्जुन को उपदेश के रूप में हमें महान ग्रंथ गीता का सार्वदेशिक उपहार दिया है। लुप्तप्राय सरस्वती तो यहीं से होकर गुजरती है। अरावली पहाड़ियों की खिलती हरितिमा यहीं है। जरा बैग उठाए और निकल पड़े इस अद्भुत दृश्य को...
हरियाणा आदि-मानव की जन्मभूमि होने के साथ-साथ आदि सभ्यता का भी पोषक रहा है। प्राचीन परम्परा के अनुसार हरियाणा को सृष्टि का जन्म स्थल माना जाता है। ...विदित है कि मानव जाति का आविर्भाव सर्वप्रथम यहीं हुआ और हरियाणा क्षेत्र की ही पावन नदियों-दृषद्वती एवं सरस्वती की घाटियों में राजनीतिक एवं सांस्कृतिक चेतना जागृत हुई।
हरियाणा राज्य बहुराष्ट्रीय कम्पनियों, बड़े व्यापारिक घरानों, विदेशी निवेशकों, अनिवासी भारतीयों तथा लघु-स्तरीय उद्यमियों से पर्याप्त निवेश आकर्षित कर पाने में सफल रहा है। यह एक निवेशक मित्र राज्य के रूप में उभरा है तथा कुशल, प्रेरित तथा अपेक्षाकृत सस्ती मानवश्रमशक्ति प्रदान करता है।
हरियाणा के रोड़ महाराष्ट्र के मराठों के वंशज ही हैं। पानीपत के तीसरे युद्ध में पराजित होने पर बचे हुए मराठा सैनिक कुरुक्षेत्र के जंगल में अपनी पहचान छिपा कर रहने लगे, क्योंकि चारों ओर दुश्मन होने से महाराष्ट्र लौटना संभव नहीं हुआ। रोड़ों और मराठों के बीच शक्लों, रिती-रिवाजों में गजब की समानता और बोली में मराठी शब्दों की बहुतायत से दोनों के एक होने के तथ्य की पुष्टि होती है।
आजादी के पूर्व और बाद का हरियाणा का इतिहास युद्ध, शौर्य और बलिदान से भरा हुआ है। आजादी के पूर्व के काल पर गौर करें तो सतलुज के इस पार यही भारत का प्रवेश द्वार था और इस कुरु प्रदेश ने हर बाह्य आक्रमणकारियों से लोहा लिया। इस तरह भारत की रक्षा में इस क्षेत्र का अभूतपूर्व एवं ऐतिहासिक योगदान रहा है।