अच्छे समाज के दो पहलू गुरू और शिष्य
हिंदू संस्कृति और परंपरा में गुरू संकल्पना का अनन्यसाधारण महत्त्व है। आध्यात्मिक साधना करने वाले साधकों को गुरू की महिमा पूर्णत: ज्ञात होती है। इस विषय में यह भी कहा जाता है कि, गुरू की ओर मनुष्यबुद्धि से नहीं देखना चाहिए, गुरू ही साक्षात परब्रह्म होता है, इसी भावना से उनकी सेवा करनी चाहिए और आज्ञापालन करना चाहिए।