इंदौर की चर्चित फिल्मी हस्तियां

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मुंबई का बच्चा कहलाता है इंदौर। मुंबई स्थित ग्लैमर वर्ल्ड में इंदौर शहर के भी कुछ सितारों ने अपनी जगमगाहट दिखाई है। इनमें लता मंगेशकर, अमीर खान, सलमान खान जैसे बड़े नाम शामिल हैं। इस आलेख में इंदौर में जन्मे प्रमुख कलाकारों के साथ-साथ उन्हें भी शामिल किया गया है,…

धुंधलाता दादा साहेब फालके का स्वप्न

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भारतीय फिल्मों के पितामह दादासाहब फालके भारतीय संस्कृति धर्म, परम्परा के संवाहक थे। उनकी पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ ने लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया था। उन्होंने भारत को सिनेमा के सशक्त माध्यम का परिचय कराया। उस समय उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि, आगे चलकर बॉलीवुड फिल्में हमारी संस्कृति पर…

बॉलीवुड का नाम बदलकर होना चाहिए ‘भारतीय सिनेमा’

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उज्जैन शहर में आयोजित दो दिवसीय शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल में सोमवार को समापन समारोह में शामिल हुए बॉलीवुड अभिनेता संजय मिश्रा ने कहा कि अब बॉलीवुड नाम हटाने की आवश्यकता है. सिर्फ एक ही नाम भारतीय सिनेमा होना चाहिए. उन्होंने शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल में  विजेता प्रतिभागियों को पुरस्कृत भी किया.…

भारतीय फिल्मों को क्यों नहीं मिलता आस्कर अवार्ड?

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भारत के लिए आस्कर अवार्ड हमेशा से एक सपना रहा है जो सच्चे अर्थों में इस साल पूरा हुआ है जिसके कारण समूचे भारतीय फिल्म उद्योग में खुशी का माहौल है। 95 वें एकेडमी अवार्ड समारोह में इसी 12 मार्च की रात लास एंजिल्स के डोल्बी थियेटर में जब कार्तिकी…

अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारतीय संगीत का प्रभाव

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गीत और संगीत मनुष्य मन को रसपूर्ण बनाते हैं। लेकिन दोनों में एक आधारभूत अंतर भी है। गीत का अर्थ होता है। अर्थ बुद्धि के माध्यम से मूल शब्दों के भाव को प्रकट करता है। गीत भी ध्वनि है। लेकिन उसका अर्थ बौद्धिक कार्रवाई से निकलता है। संगीत में ध्वनियों…

मनोरंजन जगत में स्त्री का विकृत चित्रीकरण

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पिछले दो दशकों से फिल्मों और टीवी में महिलाओं के नकारात्मक चित्रण को बढ़ावा दिया जा रहा है। साथ ही, अश्लील वेशभूषा और हावभाव का बढ़ता प्रयोग भी हमारे युवाओं को गुमराह कर रहा है। समाज के प्रबुद्ध वर्ग को आगे आकर इनके विरुद्ध खड़ा होना चाहिए ताकि पर्दे पर…

नहीं रहे बॉलीवुड के ‘कलेंडर’

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एक “मासूम” सा दिखने वाला हाँड़-मांस का व्यक्ति सपनों की “मंडी” में आकर “उड़ान” भरने की जिद पालता है और “वो सात दिन” उसकी ज़िन्दगी बदल देते हैं। “सागर” से गहरी उसकी अदाकारी से अवाम “मोहब्बत” करने लगती है। उसका “जलवा” ऐसा बिखरा कि लोगों को उसके होने से “गुदगुदी”…

फेक नैरेटिव के युग में काशी का सार्थक शब्दोत्सव

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संस्कृति, हिन्दुत्व और आधुनिकता' पर बोलते हुए जवाहरलाल नेहरू विवि की कुलपति प्रो शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने कहा कि आधुनिक हिन्दूत्व और हमारी भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी ताकत हमारी इंटीग्रल यूनिटी है। वहीं अब्राहमिक मजहबों के पास सिंथेटिक यूनिटी है। इसलिए उन्हें धर्मांतरण की आवश्यकता पड़ती है। हमें इसकी…

प्रेम कथाओं के फिल्मकार शक्ति सामन्त

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हिन्दी फिल्में केवल हिन्दी क्षेत्रों में ही नहीं, तो पूरे भारत में लोकप्रिय हैं। इतना ही नहीं, इन्होंने देश से बाहर भी हिन्दी को लोकप्रिय किया है। फिल्मों को इस स्तर तक लाने में जिन फिल्मकारों का महत्वपूर्ण योगदान है, उनमें शक्ति सामंत का नाम बड़े आदर से लिया जाता…

पठान का विरोध राजनीतिक या सामाजिक

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शाहरुख खान की फिल्म ‘पठान’ के गाने बेशर्म रंग ने बॉलीवुड की समाज विरोधी मानसिकता को ही प्रदर्शित किया है। उन्हें अब भी लगता है कि वे बहुसंख्यक विरोधी भावों का जहर फैलाकर पैसे पीटेंगे। पर अब जितनी जल्दी वे लोग चेत जाएं, उतना ही अच्छा है अन्यथा समाज जाग्रत हो चुका है। लोग भावनाओं का अपमान सहन करने के लिए कत्तई तैयार नहीं हैं।

बॉलीवुड की लुटिया डुबोती फ़िल्में

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हिन्दी सिनेमा के निर्माताओं और निर्देशकों को यह समझना होगा कि किसी भी अच्छी फ़िल्म बनाने के लिये सबसे महत्वपूर्ण तत्व है एक अच्छी कहानी। उन्हें साहित्य जगत से रिश्ता बनाना चाहिये। ऐसी बहुत सी रचनाएं समय-समय प्रकाशित होती रहती हैं जो सिनेमा को नवीनता प्रदान कर सकती हैं। हिन्दी…

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