हौसलों की उड़ान
एक दिन अचानक पुल का एक हिस्सा ढह गया। वह दर्दनाक हादसा अनेक मजदूरों के संग गीतिका के बापू को भी निगल गया। गीतिका की आंखों में क्रोध उतर आया। वह सविता से कहने लगी, मां, ये इंजीनियर, ओवरसीयर, ठेकेदार घूस खाकर खराब माल लेते हैं। न इन्हें मजदूरों का खयाल है, न देश का। कितने मजदूर अपनी जान से हाथ धो बैठे, पर इन बेशर्मों को शर्म कहां है? इनकी तिजोरियां भर गईं। अब करेंगे मजदूरों की लाशों पर अय्याशी।