प्रकृति बेचारी, विकास की मारी, हर चुनाव हारी!

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सच में प्रकृति की अनदेखी वो बड़ी भूल है जो पूरी मानवता के लिए जीवन, मरण का सवाल है। बस वैज्ञानिकों तक ज्वलंत विषय की सीमा सीमित कर कर्तव्यों की इतिश्री मान हमने वो बड़ी भूल या ढिठाई की है जिसका खामियाजा हमारी भावी पीढ़ी भुगतेगी। इसे हम जानते हैं,…

वीरमाता गौरादेवी : ‘चिपको आंदोलन’ की जननी

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आज पूरी दुनिया लगातार बढ़ रही वैश्विक गर्मी से चिन्तित है। पर्यावरण असंतुलन, कट रहे पेड़, बढ़ रहे सीमेंट और कंक्रीट के जंगल, बढ़ते वाहन, ए.सी, फ्रिज, सिकुड़ते ग्लेशियर तथा भोगवादी पश्चिमी जीवन शैली इसका प्रमुख कारण है।  हरे पेड़ों को काटने के विरोध में सबसे पहला आंदोलन पांच सितम्बर,…

बड़े जल संकट की तरफ बढ़ रही है दुनिया

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भारत मे सदियों से जल संरक्षण की महत्ता रही है। हमारे देश में तो नदी ,तालाब और कुँआ पूज्यनीय रहें हैं लेकिन पिछले 100 सालों में कथित विकास के नाम पर हमनें भूजल और जल के स्रोतों को इतना दोहन किया कि पूरी दुनियाँ पीने के पानी की किल्लत से…

सूखती नदियां, मिटते पहाड़ हमें कहां ले जाएंगे?

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प्रदूषित होती नदियां जितनी चिन्ता का विषय हैं उससे बड़ी चिन्ता वो मानव निर्मित कारण हैं जो इनका मूल हैं। निदान ढूंढ़े बिना नदियों के प्रदूषण से शायद ही मुक्ति मिल पाए। भारत में अब इसके लिए समय आ गया है जब इसके लिए जागरूक हुआ जाए। लोग स्वस्फूर्त इस…

जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे और हमारे नौनिहालों की दशा

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आज हम एक ऐसे दौर में पहुँच गए हैं। जहां जलवायु परिवर्तन एक गम्भीर समस्या बनती जा रही है और इसकी परिणीति हम सबके सामने है।जलवायु परिवर्तन के लिए बच्चे सबसे कम ज़िम्मेदार हैं लेकिन वे ही इसका सबसे अधिक कुप्रभाव झेल रहें हैं और आने वाले दिनों में भी…

जलवायु परिवर्तन परिषद परिणाम नेट जीरो ?

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  इस परिषद में पर्यावरणविदों को एक नया शब्द मिला है, नेट जीरो। इसकी संकल्प पूर्ति के लिए आधी सदी शेष है। यूरोप का ‘नेट जीरो’ लक्ष्य 2050 है तो चीन का 2060 अपेक्षित है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सन 2070 तक ‘नेट जीरो’ के रूप में कार्बन मुक्त करने का उद्देश्य सामने रखा है। नेटजीरो की संकल्पना क्या वास्तविकता में परिवर्तित हो सकती है? या यह मात्र स्वप्न देखने जैसा ही रहेगा? इस पर भी चर्चा हो रही है। 

जलवायु परिवर्तन पर अतिवादी विचारों से बाहर आने की जरूरत

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ब्रिटेन के ग्लासगो में आयोजित संयुक्त राष्ट्रसंघ के पर्यावरण सम्मेलन या काॅप 26 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई नेता भाग ले रहे हैं । सबकी नजर यहां नेताओं के भाषणों तथा होने वाले निर्णयों पर होगी । पिछले कम से कम 40 वर्षों से पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन संपूर्ण…

प्राकृतिक आपदा और प्रशासन का ‘मिस मैनेजमेंट’

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मनुष्य होते हुए हमने नदियों, झीलों, तालाबों और जंगलों सबके साथ हर स्तर का दुराचार किया है तो प्रकृति किसी न किसी रूप में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करेगी ही। हालांकि ग्लोबल वार्मिंग के चलते प्राकृतिक आपदाएं तो आती रहेंगी लेकिन इससे निपटने के लिए शासन-प्रशासन का मिस मैनेजमेंट भी काफी हद तक जिम्मेदार है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि आपदाओं से निपटने हेतु दूरदृष्टि का परिचय देते हुए जो सुरक्षा इंतजाम किये जाने चाहिए, उसकी पूर्व तैयारियां आज भी नहीं दिखाई देती।

पर्यावरण परिवर्तन एक वैश्विक संकट

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पृथ्वी के चारों ओर कई सौ किलोमीटर की मोटाई में व्याप्त गैसीय आवरण को ‘वायुमण्डल’ कहा जाता है। पृथ्वी की आकर्षण शक्ति के कारण ही यह वायुमण्डल उसके साथ टिका हुआ है।

पर्यावरणवादी नहीं पर्यावरण विचारी बनें

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प्रतिवर्ष 5 जून को अन्तरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस मनाया जाता है । 5 जून 1972 को स्टाकहोम में ‘मानव और पर्यावरण’ विषय पर अन्तरराष्ट्रीय परिषद आयोजित की गयी थी। अत: प्रतिवर्ष 5 जून को अन्तरराष्ट्रीय पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।

भगवान महावीर ने दी थी ग्लोबल वार्मिंग की चेतावनी

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जैन धर्म के सिद्धांत के अनुसार छठे आरा (काल) में सूर्य की किरणें अत्यंत उग्र हो जाने से अनाज की तंगी उत्पन्न होगी और जीने के लिए प्रजा को मांसाहार पर निर्भर रहना पड़ेगा। ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा आजकल जीवन के हर क्षेत्र में हो रही है। ऐसा माना जा रहा है कि आधुनिक काल में मंहगाई और अनाज की जो समस्या उत्पन्न हुई है, वह भी ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव के कारण ही है।

सुद़ृढ फर्यावरण हेतु आव्हान: फुनर्निर्माण

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किसी निरुफयोगी वस्तु का आकार बदलकर उसे फुन: उफयोगी बनाने को ही फुनर्निर्माण कहते हैं। दूसरे शब्दों में इसे फुनरुज्जीवन भी कहा जाता है।

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