बात कुछ भी नहीं थी मगर …..!
मैं बेबात कुछ नहीं बात होते हुए भी ज्ञानी जी से उलझ गया। ऐसे ज्ञानी आपके इर्द-गिर्द भी होंगे, आप संभलोगे? कृपया ज्ञानी जी की तरह बेबात मुझसे सवाल नहीं उठाएं, मैंने सारे उत्तर इसमें दे दिए हैं।
मैं बेबात कुछ नहीं बात होते हुए भी ज्ञानी जी से उलझ गया। ऐसे ज्ञानी आपके इर्द-गिर्द भी होंगे, आप संभलोगे? कृपया ज्ञानी जी की तरह बेबात मुझसे सवाल नहीं उठाएं, मैंने सारे उत्तर इसमें दे दिए हैं।
सांप्रदायिक राजनीति की विभीषिका पर शोधोपरांत प्रोफेसर डॉ. अलकेश चतुर्वेदी द्वारा लिखित एवं इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत द्वारा प्रकाशित पुस्तक “सांप्रदायिक राजनीति का इतिहास”, वर्तमान बदलते परिद़ृश्य में जनमानस के लिए अमूल्य निधि के रूप में उपलब्ध है।
ऐसी एक धारणा है कि प्राचीन भारतीय विचारसंपदा याने संसार से दूर भागना, सक्रिय जीवन की अपेक्षा निवृत्त जीवन बिताना, मृत्यु का- मोक्ष का विचार करना, निष्क्रियता को प्रधानता देने वाला तत्त्वज्ञान है| वास्तव में यह गलत धारणा है| सक्रियता, उद्यमशीलता,दीर्घोद्योग, पुरुषार्थ एवं पराक्रम इन गुणों का समर्थन तो प्राचीन भारतीय विचारकों ने न केवल किया ही वरन वैसा जीवन प्रत्यक्ष में जी कर दिखाया|
हास्य, विनोद, लेखन, काव्य, शेरोशायरी में मन से रम जाने वाले आलोक जी दिल के बहुत खुले थे। वे केवल पोथीनिष्ठ विचारक नहीं थे। इसीलिए प्रत्यक्ष अनुभव के कारण अपनी विचारधारा में होने वाला बदलाव उन्होंने विचारपूर्वक स्वीकार किया।
‘कांग्रेस मुक्त भारत दल’ की संचालन समिति वाले कई बार वहां गए, पर राहुल बाबा से भेंट नहीं हुई। इससे उनका निश्चय और द़ृढ़ हो गया कि जब बाबा देश को ‘कांग्रेस से मुक्त’ कराने में इतनी रुचि ले रहे हैं, तो चाहे एक महीना लगे या एक साल, पर अध्यक्ष हम उन्हें ही बनाएंगे, किसी और को नहीं।
देश की त्रासदी तो यह है कि शोएबुल्लाह खान तो देशवासियों के मानस पटल से भुला दिए गए; परंतु दूसरी ओर देशद्रोही निजाम, उनके सर्वोच्च प्रशासक अलीयावर जंग या निज़ाम की तरफ से इंग्लैण्ड और राष्ट्रसंघ में भारत के विरुद्ध आवाज उठाने वाले पाक-परस्त रज़ाकारों को नेहरूवादी राजसत्ता में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुए।
पर्दे पर होने वाली झमाझम बारिश दर्शकों को खूब सुहाती है और दर्शकों को जो पसंद है वही दिखाकर उनका मनोरंजन करना फिल्मवालों को सुहाता है। चाहे जो भी हो दर्शकों के मनोरंजन के लिए ही सही फिल्मों में झूठी बारिश हमेशा होती रहे।
जीवन रस को पोषण देने वाला, बल देने वाला अमृत रस है बारिश। यह चारों तरफ से मानव का जीवन समृद्ध सम्पन्न करती है। इसमें हास्य, करुण, दुःख, आनंद सब कुछ शामिल होता है। शायद इसीलिए बारिश हमारे जीवन का अविभाज्य हिस्सा बन जाती है। मराठी काव्यविश्व में बारिश के इन सभी रूपों को प्रस्तुत किया गया है।
किसी राजनीतिक विश्लेषक ने कहा है कि दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है; पर काफी समय से कांग्रेस के लिए लखनऊ के ही रास्ते बंद हैं। ऐसे में अपने बलबूते पर वह दिल्ली कैसे पहुंचे? जीवन-मरण जैसा यह बड़ा प्रश्न मैडम जी के सामने है। वे कई साल से कोशिश में हैं कि राहुल बाबा थोड़ा संभल जाएं और कुछ समझ जाएं; पर जो समझ जाए, वह पप्पू कैसा?
मशहूर शायर निदा फाज़ली हिंदी, उर्दू और गुजराती में लिखते थे। वे देश में एकात्मता के उद्घोषक थे। भारत का विभाजन उन्हें मंजूर नहीं था। विभाजन के बाद उनके माता-पिता पाकिस्तान चले गए, लेकिन उन्होंने हिंदुस्तान में ही रहना पसंद किया। उनके जाने से सूनापन तो आया; लेकिन उनकी शायरी एकात्मता और भाईचारे की रौनक जगाती ही रहेगी।
रामचंद्र नारायण द्विवेदी को जानते हैं आप? क्या? नहीं जानते? अच्छा; आपने वह गाना सुना है; ऐ मेरे वतन के लोगों? हां ! यह गाना तो आपका फेवरिट गाना होगा। किसने लिखा था, याद है? बिल्कुल ठीक! प्रदीप! यही हैं हमारे रामचंद्र नारायण द्विवेदी! जिनका तखल्लुस था ‘प्रदीप’। फिल्मी दुनिया में वे इसी नाम से जाने जाते थे।
‘‘मेरी तो आपसे इस दीपावली के मौके पर यही गुजारिश है कि आप ‘लक्ष्मी नंबर दो’ और ‘गृहलक्ष्मी नंबर दो’ का विचार ही मन में न लाएं और ‘विरहाकुल लक्ष्मी नंबर एक’ को नमन करें, पूजा करें।’’