देवतुल्य पर्जन्य
वेदकाल, जो साहित्य की गंगोत्री है, उसमें प्रकृति के विविध रूपों को देवत्व प्रदान कर उसकी आराधना की जाती थी। पर्जन्य नाम से वर्षा ऋतु की प्रशंसा करने वाले वैदिक ऋषियों ने इसे पितृतुल्य माना है। स्वयं को पृथ्वी माता का पुत्र कहला कर ये ऋषि पर्जन्य हमारा पिता है, वह हमारी रक्षा करें, जैसी सदिच्छा व्यक्त करते हैं।