देवतुल्य पर्जन्य

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वेदकाल, जो साहित्य की गंगोत्री है, उसमें प्रकृति के विविध रूपों को देवत्व प्रदान कर उसकी आराधना की जाती थी। पर्जन्य नाम से वर्षा ऋतु की प्रशंसा करने वाले वैदिक ऋषियों ने इसे पितृतुल्य माना है। स्वयं को पृथ्वी माता का पुत्र कहला कर ये ऋषि पर्जन्य हमारा पिता है, वह हमारी रक्षा करें, जैसी सदिच्छा व्यक्त करते हैं।

तड़पता पंजाब

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पाकिस्तान की शह पर पंजाब में खेला जा रहा खेल भारत को अंदर से खोखला करने का षड्यंत्र है। तभी तो हरित क्रांति से लहलहाता पंजाब अब गर्दुलों का अड्डा बनता जा रहा है। नशे के कारण वहां का हर जिला प्रभावित है। हाल की ‘उड़ता पंजाब’ फिल्म में भी यही दिखाया गया है। यथार्थ की हम कब तक अनदेखी करेंगे?

दलित राजनैतिक ‘भ्रांति’ को समझें

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दलितों को शातिर राजनीतिक नेताओं द्वारा उत्पन्न ‘राजनैतिक भ्रांतियों’ से अपने को बचाना चाहिए। ....दलितों को अगर अपने हालात में सुधार करना है तो राजनैतिक जंजीरों को तोड़ना होगा। जब तक ‘राजनैतिक ठगी’ वाले विचारों को दरकिनार करके दलित स्वयं अपने सुधार के लिए तैयार नहीं होते तब तक दलितों के हालात नहीं सुधरेंगे।

पानी पाने का कानूनी अधिकार

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हाल में जारी ‘राष्ट्रीय जल ढांचा विधेयक 2013’ के प्रारूप में पहली बार सामान्य व्यक्ति को पानी पाने का कानूनी अधिकार दिया गया है। प्रारूप में गरीब तबके, अनुसूचित जातियों/जनजातियों, महिलाओं तथा अन्य कमजोर वर्गों को जल विकास की इस प्रक्रिया में शामिल करने का प्रावधान है। इसमें जनसहयोग से जल उपयोग, संरक्षण एवं संवर्धन पर अधिक बल दिया गया है। सबका साथ, सबका विकास!

उत्तर प्रदेश में बनेंगे नए राजनीतिक समीकरण

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अगले वर्ष हो रहे उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों की भाजपा ने युद्ध स्तर पर तैयारी आरंभ कर दी है। नीतिश कुमार सपा, रालोद, जदयू तथा कांग्रेस के महागठबंधन का प्रयोग दोहराना चाहते हैं। कांग्रेस को तो किसी न किसी का पिछलग्गू होकर अपनी लाज बचानी होगी। सपा का अकेले दम पर चुनाव लडऩे का दंभ काम नहीं आएगा। बसपा पुनः सत्ता के सपने देख रही है। इससे स्पष्ट है कि चुनाव के पूर्व कई चौंकाने वाले राजनीतिक समीकरण सामने आ सकते हैं।

बहुत उम्मीद है सर्वानंद से

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असम के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल को पता है कि वे सत्ता में आ चुके हैं और अब कांग्रेस को कोसने की जगह सभी को साथ लेकर विकास की राह में आगे बढ़ना होगा, तभी चुनाव वादों को पूरा किया जा सकता है। आरोप-प्रत्यारोप से विपक्ष को कठघरे में खड़ा किया जा सकता है, लेकिन जनता के भरोसे पर खरा नहीं उतरा जा सकता है। फिर भी बांग्लादेशी घुसपैठियों से राहत पाना और असमी अस्मिता की रक्षा करना उनके लिए एक बड़ी चुनौती होगी।

असम में हिंदू जागरूकता का परचम

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हाल में हुए पांच राज्यों के चुनावों ने हिंदुओं की राजनीतिक जागरूकता को रेखांकित किया है। असम में भाजपा का सत्ता में आना और केरल जैसे राज्य में उसके मोर्चे को मिले वृद्धिगत वोट इसके साक्ष्य हैं। विशेष रूप से असम में आई जागरूकता का प्रभाव भविष्य में बंगाल में भी दिखाई दे सकता है। लेकिन इस आपाधापी में कांग्रेस के बेहाल ने लोकतंत्र में सबल विपक्ष पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।

भारत अमेरिका रिश्तों में नया अध्याय

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ओबामा-मोदी वार्ता के बाद भारत को अमेरिका का प्रमुख रक्षा साझेदार बनाने की बात जिन शब्दों में कही गई है, उससे साफ है कि आने वाले सालों में भारत- अमेरिका के रक्षा रिश्तें न केवल सैनिक साजो-सामान हासिल करने के लिए गहरे होंगे; बल्कि रणनीतिक स्तर पर भी दोनों देश चीन विरोधी अभियान में एकसाथ होंगे।

चाबहार समझौता विश्व शांति का भी मार्ग

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ईरान के चाबहार बंदरगाह के भारत द्वारा विकास के समझौते से इतिहास में एक नया अध्याय लिखा गया है। चीन द्वारा पाकिस्तान में विकसित किए जा रहे ग्वादर बंदरगाह की यह काट तो है ही, लेकिन इससे भारत के व्यापार में आने वाली समुद्री परिवहन दिक्कतें भी दूर होगी। चाबहार के विकास के साथ भारत, पाकिस्तान को टाल कर, सीधे भूमध्य सागर के देशों तक पहुंच सकेगा और इससे मध्यपूर्व व यूरोप के देशों में उसका दबदबा बढ़ जाएगा।

५० वर्ष कि अस्वस्थ शिवसेना

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शिवसेना के राज्यसभा सदस्य संजय राउत ने महाराष्ट्र के औरंगाबाद में कहा कि ‘भाजपा सरकार निजामशाही का बाप है।’ इस कहने को मुंबई और ठाणे महापालिकाओं के चन्द महीनों में होने वाले चुनावों के संदर्भ में देखना चाहिए; क्योंकि भाजपा ने इन चुनावों के जरिए इन महापालिकाओं पर कब्जा करने का संकल्प किया है। शिवसेना की दुखती नस भी यही है। शिवसेना भी यहां अपनी सत्ता चाहती है।

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