पूर्वोत्तर में भाजपा की बयार
पूर्वोत्तर में मोदी हवा अब अंधड़ की भांति चल रही है। 2014 से अधिक सीटों पर भाजपा के जीतने की संभावना है। यह अभूतपूर्व बयार है।
पूर्वोत्तर में मोदी हवा अब अंधड़ की भांति चल रही है। 2014 से अधिक सीटों पर भाजपा के जीतने की संभावना है। यह अभूतपूर्व बयार है।
दक्षिणी राज्यों में कांग्रेस क्षेत्रीय दलों की पिछलग्गू बनकर अपनी दशा सुधारने की कोशिश कर रही है, वहीं भाजपा खाता खुलवा कर भविष्य की राजनीतिक रणनीति का नक्शा तैयार करने में लगी है। कर्नाटक में भाजपा हावी है ही, अन्य राज्यों में भी जड़ें जमाई जा रही हैं।
सन 2027 और उसके बाद भी कुंभ मेले का केंद्र बिंदु मूल रामकुंड यानी रामघाट ही रहने वाला हैं। रामकुंड एवं लक्ष्मण कुंड को एकरूप किया गया है। इस कुंड का और विस्तार किया जाएगा। शाही मार्ग को चौड़ा करके न्यूनतम 30 मीटर यानी 100 फुट बनाया जाएगा। गोदावरी मैया तक पहुंचने वाली अन्य सड़कें भी चौड़ी कर जाएगी।
पूरे देश के लोकसभा चुनाव पर गौर करें तो भाजपा के नेतृत्व में एनडीए के विजय की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। भाजपा को उत्तर में हो रहे घाटे को इस बार पूरब पूरा करते दिखाई दे रहा है।
अभी तक हुए मतदान से बहुमत किस दिशा में जा रहा है इस बारे में एकदम कोई स्पष्ट निष्कर्ष निकालना कठिन है। यह पूरा चुनाव दो विपरीत विचारधाराओं के बीच का चुनाव बन गया है। विपक्षी दलोंं की भूमिका से इस चुनाव का मूल स्वर नरेन्द्र मोदी हटाओ और नरेन्द्र मोदी को बनाए रखो बन चुका है।
मध्य भारत के मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओड़िशा में भाजपा को बहुत अधिक मेहनत करनी होगी। सीटें थाली परोस कर सामने नहीं आने वाली।
आज जिस प्रकार समाज में राष्ट्रीय विचारों की, देशभक्ति की, सेना के प्रति आदर की प्रबल भावना दिखाई देती है, उसका ही प्रतिबिम्ब फिल्मों में भी दिखता है।
गांधीजी की अपने बड़े पुत्र हरिलाल से कभी नहीं पटी। इससे हरिलाल व्यसनों और नशे के अधीन हो गए। मां से उनके अंतिम क्षणों में मिलने आए हरिलाल के पैर इतने लड़खड़ा रहे थे कि दो लोगों को उन्हें पकड़कर बाहर ले जाना पड़ा। हरिलाल की मौत हुई तब उनकी पहचान थी- सिफलिस रोगी, मुर्दा नं.8। गांधीजी के जीवन की इससे बड़ी शोकांतिका और क्या होगी?
यह सम्पादकीय जब तक आप तक पहुंचेगा तब तक तीसरे या चौथे चरण का मतदान हो चुका होगा। भारत की सत्रहवीं लोकसभा के लिए प्रचार भी आधा रास्ता तय कर चुका होगा। हर राजनीतिक दल अपने प्रतिस्पर्धी की कमोबेशी उजागर कर चुका है। अब जनता परिणामों के प्रति उत्कंठा रखती है। ये परिणाम कैसे होंगे? कौन जीतेगा? अगली लोकसभा में बलाबल कैसे होगा? इस बारे में चर्चा धीरे-धीरे गर्म होती जाएगी।