कोरोना से निपटने में योगी का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

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कोरोना संक्रमण की दूसरी अप्रत्याशित लहर आने के बावजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूरी हिम्मत और विवेक से प्रतिकूल परिस्थितियों में मुकाबला किया और प्रदेशवासियों के मनोबल को अपने वक्तव्यों से मजबूती देते रहे। योगी जी ने कहा कि आपदा की स्थिति में हमें अतिरिक्त संवेदनशील होने की जरूरत होती है।

कोरोना काल में अंकित ग्राम द्वारा की गई सेवा

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निश्चित रूप से इस मार्ग पर चलने से चित्त की प्रसन्नता और परमात्मा के सानिध्य का अनुभव होता है कई एडजेस्टमेंट वाले दानदाता छूट जाते है, तो परमात्मा की कृपा से अनेक कठिनाईयों के बाद नई व्यवस्था हो जाती है। संस्था ने 35 एसी के समय भी किसी प्रकार का एडजस्टमेंट नही किया परिणाम स्वरूप 50 करोड़ के एकझम्शन में से 1.50 करोड़ भी एकत्र नही कर सके।

कोरोना संकट और आत्मनिर्भरता 

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इस कोरोना महामारी से भारत के लिए दो बड़े सबक हैं। पहला सभी मामलों में हम आत्मनिर्भर बने। दूसरा, जीवन रक्षक दवाओं के शोध व विकास पर ज्यादा ध्यान देना। कोरोना संकट न केवल हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था को नया आकार देगा बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था, राजनीति और संस्कृति को भी नए तरह से गढ़ेगा।

प्राकृतिक आपदा और प्रशासन का ‘मिस मैनेजमेंट’

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मनुष्य होते हुए हमने नदियों, झीलों, तालाबों और जंगलों सबके साथ हर स्तर का दुराचार किया है तो प्रकृति किसी न किसी रूप में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करेगी ही। हालांकि ग्लोबल वार्मिंग के चलते प्राकृतिक आपदाएं तो आती रहेंगी लेकिन इससे निपटने के लिए शासन-प्रशासन का मिस मैनेजमेंट भी काफी हद तक जिम्मेदार है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि आपदाओं से निपटने हेतु दूरदृष्टि का परिचय देते हुए जो सुरक्षा इंतजाम किये जाने चाहिए, उसकी पूर्व तैयारियां आज भी नहीं दिखाई देती।

सीपीईसी को लेकर पाकिस्तान में असंतोष और विरोध

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इस गलियारे को ऊपरी तौर पर केवल व्यापारिक दृष्टि से एक व्यापार संबंधी नया रूट खोलने के रूप में प्रदर्शित किया जा रहा है मगर तथ्य यह है कि सीपीईसी के कारण चीन की पकड़ इस क्षेत्र में जबरदस्त ढंग से मजबूत हो जाएगी और इससे सामरिक संतुलन बिगड़ेगा। खासकर अरब सागर में चीनी विस्तारवाद के लिए ग्वादर एक नया आधार बनेगा। 

तालिबान और भारत के तथाकथित सेक्युलर

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कल्पना कीजिए अगर किसी हिन्दू संगठन ने ऐसा किया होता तो देश के सेक्युलर बुद्धिजीवियों ने कैसा रुदन मचा दिया होता? आज इन बुद्धिजीवियों और तुष्टिकरण की राजनीति के झंडावरदारों को अफगानी महिलाओं और बच्चों पर हो रहा बर्बर अत्याचार नजर नहीं आ रहा है क्योंकि वहां उनकी सेलेक्टिव सेक्युलरिज्म की थ्योरी फिट बैठती है।

अफगानिस्तान की हलचल का भारत पर प्रभाव

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अफगानिस्तान में तालिबान का वर्चस्व स्थापित हो चुका है। राष्ट्रपति अशरफ गनी, उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह और उनके सहयोगी देश छोड़कर चले गए हैं।

भारत को बचना होगा तालिबानी सोच से

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अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों में भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ अफगानिस्तान के लोग शरणार्थी बनकर जा सकते हैं। क्योंकि पाकिस्तान की हालत किसी से छुपी नही है और चीन सांस्कृतिक दृष्टि से और सीमाओं की दूरी की दृष्टि से अफगानिस्तान से इतना दूर है कि वहां जाना अफगानिस्तान के लोगों को नहीं सुहाएगा। ऐसे में उन्हें भारत आना ही सबसे आसान लगेगा।

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